चुनाव आयोग कानों में तेल डाले बैठा रहा। जिस तरह उसने पीएम मोदी के साम्प्रदायिक भाषणों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उसी तरह इस मामले में भी किया गया। चुनाव आयोग ने जब देखा कि मामला अदालत में चला गया है और कोर्ट एक्शन के लिए कह सकता है तो आयोग शनिवार 18 मई को सक्रिय हुआ। आयोग ने उसी दिन पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार को उनकी पार्टी द्वारा कथित तौर पर टीएमसी को निशाना बनाने वाले विज्ञापनों पर दो अलग-अलग कारण बताओ नोटिस जारी किए। आयोग ने बीजेपी नेता को अगले दिन शाम 5 बजे तक अपना जवाब देने को कहा था।
चुनाव आयोग तय समय में टीएमसी की शिकायतों को सुनने में पूरी तरह विफल रही है। यह अदालत आश्चर्यचकित है कि चुनाव खत्म होने के बाद शिकायतों का समाधान तय समय में करने में भारत का चुनाव आयोग विफल हुआ है। यह अदालत निषेधाज्ञा आदेश (स्टे) पारित करने के लिए बाध्य है।
टीएमसी के खिलाफ लगाए गए आरोप और प्रकाशन पूरी तरह से अपमानजनक हैं और निश्चित रूप से इसका उद्देश्य प्रतिद्वंद्वियों का अपमान करना और व्यक्तिगत हमले करना है। इसलिए, उक्त विज्ञापन सीधे तौर पर एमसीसी के विरोधाभासी होने के साथ-साथ याचिकाकर्ता और भारत के सभी नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है। स्वतंत्र, निष्पक्ष और बेदाग चुनाव प्रक्रिया के लिए, भाजपा को अगले आदेश तक ऐसे विज्ञापन प्रकाशित करने से रोका जाना चाहिए।
चुनाव आयोग ने 28 मार्च को चुनाव आचार संहिता जारी की थी। जिसमें कहा गया था कि "अन्य राजनीतिक दलों की आलोचना, जब की जाएगी, उनकी नीतियों और कार्यक्रम, पिछले रिकॉर्ड और काम तक ही सीमित होगी", और "अन्य दलों या उनके कार्यकर्ताओं की आलोचना असत्यापित आधार पर नहीं की जाएगी" आरोप या विकृति से बचा जाएगा।''