पाकिस्तान आतंकवाद को पालता-पोषता है, यह अब पाकिस्तान के मंत्री-नेता ही कबूल क्यों करने लगे हैं? जानिए, पाक के रक्षा मंत्री के बाद अब बिलावल भुट्टो ने क्या कबूल किया है।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के बाद अब पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों का इतिहास होने का सनसनीखेज बयान दिया है। उन्होंने माना कि पाकिस्तान का आतंकी संगठनों के साथ 'अतीत' रहा है। स्काई न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में भुट्टो ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि यह कोई रहस्य है कि पाकिस्तान का आतंकवादी संगठनों के साथ एक इतिहास रहा है।'
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी का यह कबूलनामा पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने भी आतंकी समूहों को समर्थन और वित्त पोषण में पाकिस्तान की संलिप्तता को स्वीकार किया था। यह घटनाक्रम भारत-पाकिस्तान संबंधों, क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मामले में अहम है।
बिलावल भुट्टो का यह बयान जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के लगभग 10 दिन बाद आया है। हमले में 26 लोगों की जान गई थी। आतंकी हमले को पाकिस्तान से जुड़े लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन ने अंजाम दिया था। इस हमले ने भारत-पाकिस्तान के बीच पहले से तनावपूर्ण संबंधों को और गंभीर कर दिया। भारत ने इसके जवाब में कड़े क़दम उठाए, जिसमें पाकिस्तानी नागरिकों के लिए अल्पकालिक वीज़ा रद्द करना और सार्क वीज़ा छूट योजना को निलंबित करना शामिल है।
बिलावल ने अपने साक्षात्कार में कहा, 'पाकिस्तान ने भी आतंकवाद की पीड़ा झेली है। हमने चरमपंथ की लहरों का सामना किया है, लेकिन इसके कारण हमने सबक़ सीखा और आंतरिक सुधार किए।' उन्होंने यह भी दावा किया कि आतंकवाद अब पाकिस्तान की नीति का हिस्सा नहीं है। हालाँकि, उनका यह बयान कई सवाल उठाता है, खासकर तब जब पाकिस्तान पर लगातार आतंकी संगठनों को पनाह देने और समर्थन देने के आरोप लगते रहे हैं।
बिलावल भुट्टो और ख्वाजा आसिफ जैसे वरिष्ठ नेताओं द्वारा आतंकी संगठनों के साथ पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों को स्वीकार करना एक असामान्य और उल्लेखनीय घटना है। पहले पाकिस्तान ने ऐसे आरोपों को खारिज करते हुए भारत पर दोषारोपण किया था।
इस कबूलनामे को कुछ लोग अंतरराष्ट्रीय दबाव के नतीजे के रूप में देख रहे हैं, खासकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफ़एटीएफ़ जैसे संगठनों द्वारा पाकिस्तान पर आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए लगातार निगरानी के बाद।
हालाँकि, बिलावल का यह दावा कि पाकिस्तान ने 'सुधार' किए हैं और अब आतंकवाद को समर्थन नहीं देता, संदेह के घेरे में है। भारत और अन्य देशों ने बार-बार सबूत पेश किए हैं कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन पाकिस्तान की धरती से संचालित होते हैं।
बिलावल का बयान पाकिस्तान की आंतरिक और विदेश नीति में एक उलझन भरी स्थिति को दिखाता है। एक ओर, यह बयान भारत के साथ तनाव को कम करने और वैश्विक समुदाय के सामने अपनी छवि सुधारने की कोशिश हो सकता है। दूसरी ओर, यह बयान पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रभाव को भी उजागर करता है, जिन पर आतंकी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है।
बिलावल का यह बयान उनकी अपनी राजनीतिक छवि को मज़बूत करने की कोशिश भी हो सकता है। युवा नेता के रूप में वे खुद को सुधारवादी और प्रगतिशील दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह बयान उनकी पार्टी और सरकार के लिए आंतरिक चुनौतियाँ भी पैदा कर सकता है। भारत ने इस बयान को सावधानी के साथ लिया है।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने साफ़ किया है कि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ 'ज़ीरो टॉलरेंस' नीति अपनाएगा। बिलावल के बयान को भारत में कई लोगों ने पाकिस्तान की दोहरी नीति का सबूत माना है, जहां एक ओर वे आतंकवाद को स्वीकार करते हैं, लेकिन दूसरी ओर ठोस कार्रवाई से बचते हैं।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरने की रणनीति अपनाई है और बिलावल का यह बयान भारत के दावों को और मज़बूत करता है। हालाँकि, भारत इस बात से सतर्क है कि यह स्वीकारोक्ति केवल एक रणनीतिक क़दम हो सकता है, न कि वास्तविक नीतिगत बदलाव का संकेत।
यह बयान दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी अहम है। पाकिस्तान का आतंकी संगठनों के साथ ऐतिहासिक संबंध क्षेत्रीय अस्थिरता का एक प्रमुख कारण रहा है। बिलावल का यह दावा कि पाकिस्तान ने सुधार किए हैं, अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगरानी में होगा। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और अन्य देश इस बात पर नजर रखेंगे कि क्या पाकिस्तान वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाता है।
इसके अलावा, यह बयान भारत-पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की संभावनाओं को भी प्रभावित कर सकता है। बिलावल ने एक अन्य अवसर पर कहा था कि पाकिस्तान शांति चाहता है, लेकिन भारत की उकसावे की स्थिति में युद्ध के लिए तैयार है। यह दोहरा रुख दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को और गहरा करता है।
भारत में बिलावल के बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखी गई है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसे पाकिस्तान की 'दोहरी चाल' क़रार दिया, जिसमें वह आतंकवाद को स्वीकार तो करता है, लेकिन जिम्मेदारी से बचता है। कुछ भारतीय टिप्पणीकारों ने इसे पाकिस्तान की सेना और आईएसआई की नीतियों का खुलासा बताया, जो आतंकवाद को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं।
पाकिस्तान के भीतर भी इस बयान ने विवाद पैदा किया है। कुछ लोग इसे सुधार की दिशा में एक साहसिक कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे देश की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला बयान मानते हैं।
बिलावल का यह दावा कि आतंकवाद अब पाकिस्तान की नीति का हिस्सा नहीं है, वहां की सैन्य और राजनीतिक हलकों में बहस का विषय बन सकता है।
बिलावल भुट्टो का यह बयान कि 'पाकिस्तान का आतंकवाद के साथ अतीत रहा है, यह कोई रहस्य नहीं' एक महत्वपूर्ण और अभूतपूर्व कबूलनामा है। यह न केवल पाकिस्तान की नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि भारत और वैश्विक समुदाय के सामने उसकी जवाबदेही को भी रेखांकित करता है। हालाँकि, यह बयान अपने आप में आतंकवाद के ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई की गारंटी नहीं है।
भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाए और आतंकवाद के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्रवाई की मांग करे। दूसरी ओर, पाकिस्तान के सामने चुनौती है कि वह अपने दावों को ठोस कार्यों में बदले और आतंकी संगठनों के ख़िलाफ़ विश्वसनीय क़दम उठाए।