नेपाल में जेन जेड प्रोटेस्ट
नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोमवार को हजारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। काठमांडू में कर्फ्यू लगाकर सेना तैनात की गई है। कुछ प्रदर्शनकारियों ने संसद परिसर में घुसने की कोशिश की। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस, पानी की बौछार की और गोलियां भी चलाईं। इस हिंसक कार्रवाई में कई लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। काठमांडू के बानेश्वर और अन्य अस्थिर क्षेत्रों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया, और सेना को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवासों के बाहर तैनात किया गया। प्रदर्शन अब काठमांडू से बाहर अन्य शहरों में भी फैल गए हैं, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई है। यह आंदोलन शुरू में सरकार द्वारा लगाए गए सोशल मीडिया बैन के खिलाफ था, लेकिन इसके पीछे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असंतोष जैसी वजहें भी हैं।
यह पहली बार है जब नेपाल के GenZ युवाओं ने इस तरह सड़कों पर उतरकर संगठित प्रदर्शन किया। इस आंदोलन में राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों को शामिल होने से मना किया गया, जिससे यह पूरी तरह युवा-नेतृत्व वाला आंदोलन बन गया। प्रदर्शनकारी राष्ट्रीय झंडे और 'युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ' जैसे नारे लिखे प्लेकार्ड लेकर सड़कों पर उतरे।
नेपाल सरकार ने 4 सितंबर 2025 को फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप, एक्स और सिग्नल जैसे 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। इसका कारण इन कंपनियों का सरकार के 2023 में लागू ‘सोशल मीडिया उपयोग नियमन निर्देशिका 2080’ का पालन न करना बताया गया। इस निर्देशिका के तहत सभी सोशल मीडिया कंपनियों को नेपाल में रजिस्ट्रेशन, शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना ज़रूरी था।
प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इस बैन का बचाव करते हुए कहा, 'राष्ट्र की स्वतंत्रता और गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता। कुछ लोगों की नौकरियों के नुकसान से ज़्यादा अहम देश का सम्मान है।' हालाँकि, इस बैन ने GenZ यानी 26 साल से कम उम्र के युवाओं में भारी आक्रोश पैदा किया। ये सोशल मीडिया को अपनी बोलने की आज़ादी, नेटवर्किंग और आजीविका का प्रमुख साधन मानते हैं।
प्रदर्शनकारियों ने 'भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया नहीं' और 'सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटाओ' जैसे नारे लगाए।
नेपाल में भ्रष्टाचार एक पुरानी समस्या है और प्रदर्शनकारी इसे सरकार की सबसे बड़ी विफलता मानते हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि भ्रष्टाचार में बड़े-बड़े नेता और नौकरशाह शामिल हैं। नेपाल के लगभग सभी वरिष्ठ नेता किसी न किसी तरह के भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हैं। 2006 से यह प्रथा चली आ रही है कि अगर कोई नीतिगत निर्णय लिया जाता है तो राजनेताओं को जाँच से छूट दी जाती है।
प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली पर एक चाय बागान को व्यावसायिक भूखंडों में बदलने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने के लिए अवमानना का मुकदमा चल रहा है। तीन अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों, माधव नेपाल, बाबूराम भट्टाराई और खिल राज रेग्मी पर सरकारी ज़मीन निजी व्यक्तियों को देने के घोटाले का आरोप है।
तीन बार प्रधानमंत्री रहे प्रचंड के खिलाफ शिकायतें लंबित हैं कि 2006 के अंत में शुरू हुई शांति प्रक्रिया के दौरान माओवादी छापामारों को संयुक्त राष्ट्र की निगरानी वाली छावनियों में रखे जाने के दौरान उनके लिए निर्धारित धन का दुरुपयोग करके कथित तौर पर अरबों डॉलर कमाए गए। देउबा पर विमान खरीद में अवैध कमीशन लेने का आरोप है। उनकी पत्नी आरज़ू राणा देउबा वर्तमान में नेपाल की विदेश मंत्री हैं और उनपर भी सवाल उठ रहे हैं।
नेपाल में बवाल: प्रदर्शनकारी संसद में घुसे
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने में सोशल मीडिया एक प्रमुख मंच था और बैन को इसे दबाने की कोशिश के रूप में देखा गया। सोशल मीडिया पर पोस्टों में कहा जा रहा है कि सांसदों द्वारा जनता को 'मूर्ख' कहने और विशेषाधिकारों की मांग करने की बात सामने आई, जिसने जनता के गुस्से को और भड़काया।
नेपाल की 3 करोड़ की आबादी में से 1.5 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं और यह कई युवाओं के लिए नौकरी, शिक्षा और नेटवर्किंग का साधन है। बैन ने इन अवसरों को सीमित कर दिया। बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक अवसरों की कमी ने युवाओं में निराशा पैदा की है।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में नेपाल की आर्थिक वृद्धि में तेज़ी आई। हालाँकि, यह वृद्धि पूरी तस्वीर पेश नहीं करती। रोज़गार सृजन धीमा है, जलवायु संबंधी कमज़ोरियों और प्राकृतिक आपदाओं से बढ़ी असमानता बहुत ज़्यादा है और कई युवा देश छोड़ रहे हैं।
विश्व बैंक की इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नेपाल की निर्भरता रेमिटेंस पर है, लेकिन इसका देश में गुणवत्तापूर्ण रोज़गार में कोई योगदान नहीं रहा है। नेपाल के कार्यबल का 82 प्रतिशत हिस्सा अनौपचारिक रोज़गार में है। सोशल मीडिया पर 'बेरोजगारी, मूर्खतापूर्ण वित्तीय नीतियाँ, और भ्रष्टाचार' को प्रदर्शनों की एक वजह बताया गया।
बढ़ते कर और खराब वित्तीय प्रबंधन जैसी सरकार की नीतियों ने जनता में असंतोष को बढ़ाया।
सोशल मीडिया बैन को युवाओं ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना। ‘हामी नेपाल’ जैसे समूहों ने इसे डिजिटल अधिकारों का उल्लंघन बताया। प्रदर्शनकारी इसे सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति का प्रतीक मानते हैं, जो उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रही है।
प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया, जिसने आंदोलन को और तेज़ किया।
प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने बैन को जायज़ ठहराते हुए कहा कि यह 'साइबर अपराध, फर्जी खबरें और भ्रामक सामग्री' को रोकने के लिए जरूरी था। हालांकि, बड़े प्रदर्शनों को देखते हुए सरकार ने आपातकालीन सुरक्षा बैठक बुलाई है। काठमांडू में कर्फ्यू और सेना की तैनाती से स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
यह आंदोलन अब सिर्फ़ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंदोलन नेपाल की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे सकता है। काठमांडू और अन्य शहरों में स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है, और प्रदर्शनकारियों ने बैन हटाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने की मांग की है। यह देखना बाकी है कि क्या सरकार इन मांगों को मानती है या यह आंदोलन और उग्र रूप लेगा।