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टैक्स बचाने के जुगाड़ से राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को होगा नुक़सान?

एक कुशल और सफल कारोबारी होने का दम भरने वाले और उसे राष्ट्रपति पद की दावेदारी की सबसे बड़ी योग्यता के रूप में पेश करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के पहले दो वर्षों में हर साल मात्र 750 डॉलर आयकर भरा है। अमेरिका के प्रतिष्ठित अख़बार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के इस ख़ुलासे ने राष्ट्रपति चुनाव में एक नया मुद्दा जोड़ दिया है, जो ट्रंप के लिए चुनौती बन सकता है।
अख़बार के मुखपृष्ठ समेत पूरे छह पन्नों पर छपी लगभग 45 पृष्ठ लंबी खोजी रिपोर्ट में राष्ट्रपति ट्रंप के पिछले बीस सालों के आयकर का ख़ुलासा और विश्लेषण किया गया है, जिससे पता चला है कि उन्होंने पिछले 18 में से 11 वर्षों में एक पाई भी आयकर में नहीं दी है।
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कारोबारी राष्ट्रपति की कर-कारगुज़ारियाँ

ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले बीस वर्षों में कोई कमाई नहीं की है। वह अमेरिका के बड़े अमीरों में अपनी गिनती कराने और अपनी अमीरी का खुला प्रदर्शन करने का शौक रखते हैं। मैनहैटन के बेहद मँहगे इलाक़े में स्थित उनके आलीशान अपार्टमेंट के साज़ो-सामान पर उन्होंने सोना जड़ा रखा है। निजी विमानों में चलते हैं। आलीशान नौकाओं में सैर करते हैं। आराम करने के लिए न्यूयॉर्क से एक घंटे की दूरी पर 200 एकड़ में फैला महल ख़रीदा है और मायामी के समुद्रतट पर उनका अपना गोल्फ़ कोर्स और आरामगाह है।
टैक्स भरने के मामले में डोनल्ड ट्रंप अमेरिका के औसत मज़दूर से भी पीछे हैं। औसत निम्न मध्यवर्गीय अमरीकी साल में कम से कम 2,200 डॉलर आयकर भरता है।

42 करोड़ डॉलर का कारोबार

अपनी सालाना आमदनी का हिसाब-किताब देते हुए उन्होंने ख़ुद बताया है कि पिछले साल उनकी कंपनियों ने 42 करोड़ डॉलर से ज़्यादा का कारोबार किया। अमेरिका में इस स्तर का कारोबार चलाने वाले लोग हर साल औसतन ढाई करोड़ डॉलर आयकर देते हैं। पूर्व राष्ट्रपतियों की बात करें तो राष्ट्रपति ओबामा और बुश दोनों ने हर साल औसतन एक लाख डॉलर से ज़्यादा आयकर दिया था। केवल पूर्व राष्ट्रपति निक्सन ने 1970 में 792 डॉलर और 1971 में 878 डॉलर टैक्स भरा था, जिसका ख़ुलासा होते ही राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया था। 

राष्ट्रपति ओबामा, बुश और निक्सन ट्रंप की तरह कारोबारी नहीं थे और उनकी आमदनी भी ट्रंप की तुलना में बहुत कम थी। इसके बावजूद ट्रंप केवल 750 डॉलर चुका कर आयकर विभाग से कैसे बच गए, आयकर दस्तावेज़ से निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:

घाटे में चलती कंपनियाँ

राष्ट्रपति ट्रंप के कारोबार में कुल मिलाकर 500 के आस-पास कंपनियाँ हैं, जिनमें से मुट्ठी भर ही ऐसी हैं जो मुनाफ़े में चलती हैं। ज़्यादातर कंपनियाँ घाटे में चलती रही हैं। इसकी वजह से ट्रंप को तीन बार घाटे वाली कंपनियों का दिवाला भी निकालना पड़ा है, ताकि उनकी निजी संपत्ति बची रहे।

ज़्यादातर कंपनियों में घाटे की मुख्य वजह राष्ट्रपति ट्रंप के ग़लत फ़ैसले रहे हैं। मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियों के मुनाफ़े की रक़म हाथ लगते ही ट्रंप बिना पूर्वयोजना के गोल्फ़ कोर्स, ज़मीनें और होटल ख़रीदने लगते हैं, जो आगे चल कर घाटे का सौदा साबित होते हैं।
उनके ज़्यादातर गोल्फ़ कोर्स, आरामगाहें और होटल घाटे में चल रहे हैं।

घाटे की तरकीब

ट्रंप साहब कंपनियों के घाटे का प्रयोग टैक्स बचाने में करते आए हैं। वह आपने ऐशो-आराम और शौक पर होने वाले ख़र्च को भी घाटे में जोड़ लेते हैं, जो उनकी मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियों से ज़्यादा हो जाता है जिससे टैक्स अदा करने की नौबत नहीं आती। यही तरक़ीब उन्हें 11 वर्षों तक टैक्स से बचाने में काम आई है।

निजी खर्च भी कंपनी का

ट्रंप कारोबारी ख़र्च को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं, जिसमें 20 प्रतिशत हिस्सा सलाहकारों को दी जाने वाली फ़ीस का होता है। अपने रहन-सहन के ख़र्च को भी कारोबारी ख़र्च में शामिल कर देते हैं, जिससे टैक्स की देनदारी नगण्य सी हो जाती है। मिसाल के तौर पर उन्होंने अपने बाल बनवाने के 70 हज़ार डॉलर के ख़र्च को कारोबारी ख़र्च के रूप में दर्ज किया है।

ट्रंप साहब का सबसे बड़ा मुनाफ़े का कारोबार उनके अपने ब्रांड का कारोबार रहा है। लोकप्रिय टीवी शो अप्रेंटिस उसका एक अहम हिस्सा है जिसने उन्हें लगभग 43 करोड़ डॉलर कमा कर दिए।

राष्ट्रपति बनने के बाद विदेशों से मिलने वाली आमदनी तेज़ी से बढ़ी है जिसे राष्ट्रहितों से टकराव के रूप में भी देखा जा सकता है।
आयकर दस्तावेज़ में यह भी दिखाई देता है कि 2013 के बाद से ट्रंप साहब को कुछ विदेशी स्रोतों से बड़ी रकम मिली है। लेकिन सूचना पूरी न होने की वजह से यह बता पाना मुमकिन नहीं है कि रक़म किस से मिली है और क्यों।

क़र्ज के बोझ से दबा राष्ट्रपति

आयकर दस्तावेज़ से यह भी पता चलता है कि ट्रंप साहब पर लगभग 42 करोड़ डॉलर का कर्ज़ है, जो उन्होंने निजी गारंटी के तहत लिया है। इस कर्ज़ की अदायगी अगले तीन साल के भीतर होनी है। इसलिए यदि ट्रंप साहब चुनाव जीतते हैं तो कर्ज़ का यह बोझ उनके काम में आड़े आ सकता है।

आयकर दस्तावेज़ से कारोबारी ट्रंप की जो तसवीर उभरती है वह साफ़ तौर पर उस तसवीर से एकदम उलटी है, जिसे जनता को दिखा कर वे उसका वोट हासिल करना चाहते हैं। वह दावा करते रहे हैं कि वह एक कुशाग्रबुद्धि और समझबूझ वाले सफल कारोबारी हैं, इसलिए अमेरिका के आर्थिक और सामरिक पुनरुत्थान के लिए उनसे बेहतर उम्मीदवार नहीं हो सकता।
आयकर दस्तावेज़ बार-बार नाकाम होने और घाटे के सौदे करने वाले एक चालबाज़ और 420 कारोबारी की तसवीर बनाते हैं। एक ऐसा कारोबारी जो अपने फ़ायदे के लिए आयकर विभाग और जिस सरकार को वह चलाना चाहता है, उसे ही चूना लगाने से गुरेज़ नहीं करता।

पत्ते नहीं खोलते

इस तसवीर से यह बात भी समझ में आने लगती है कि ट्रंप साहब इतने संसदीय और अदालती दबाव के बावजूद अभी तक अपने आयकर के पत्ते खोलने को राज़ी क्यों नहीं हुए। हालाँकि संविधान इसके लिए बाध्य नहीं करता, लेकिन अपने आयकर का हिसाब-किताब सार्वजनिक करना अमरीकी राष्ट्रपतियों की परंपरा रही है।
ट्रंप साहब ने भी चुनावी मैदान में उतरने से पहले वादा किया था कि वे अपने आयकर के दस्तावेज़ सामने रख देंगे। लेकिन प्रचार शुरू होने के बाद उन्होंने इसके लिए नई-नई शर्तें लगाना शुरू कर दिया।
पहले कहा कि जब हिलेरी क्लिंटन अपने विवादास्पद ईमेल सर्वर को सार्वजनिक करेंगी तब वे अपने आयकर का हिसाब देंगे। उसके बाद कहा कि उनके टैक्स वापसी के एक मामले की छानबीन चल रही है। वह तब तक दस्तावेज़ नहीं दिखा सकते जब तक वह जाँच पूरी नहीं हो जाती।

टैक्स नहीं देना होशियारी!

राष्ट्रपति ट्रंप ने ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए उसे मिथ्या प्रचार बताया है। पिछले वर्षों में हुए घाटे का प्रयोग कर ना के बराबर टैक्स भरने बात पर अपने आप को शाबासी देते हुए ट्रंप साहब ने कहा कि यह तो उनके होशियार और बुद्धिमान होने का प्रमाण है। उनके आयकर वकील ने दावा किया है कि दस्वावेज़ से निकाले गए ज़्यादातर निष्कर्ष ग़लत और निराधार हैं। उनका दावा है कि ट्रंप साहब ने दसियों करोड़ डॉलर टैक्स भरा है। अपने घाटे का और कारोबार में होने वाले ख़र्च का प्रयोग करते हुए अपना टैक्स कम करना कानूनी तौर पर जायज़ है।

यह विडंबना की बात है कि जो व्यक्ति देश की एपल, अमेज़न और गूगल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में कम टैक्स भरने के लिए तरह-तरह धमकियाँ देता रहा हो, वह ख़ुद 11 साल तक आयकर की एक पाई भी न भरे और सत्ता की बागडोर थामने के बाद भी साल में मात्र 750 डॉलर अदा करे!

चुनाव पर असर पड़ेगा?

लेकिन इस विडंबना का मतदाताओं पर कितना और क्या असर होगा यह कहना मुश्किल है। फिलहाल ट्रंप साहब टैक्स कांड पर उठाए जा रहे सवालों से बच रहे हैं। शायद वे मंगलवार की रात को अपने डैमोक्रेटिक पार्टी के प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन के साथ होने वाली पहली टीवी बहस से पहले बात को और बढ़ाना नहीं चाहते।
असल में राष्ट्रपति ट्रंप इतने झूठ इतनी बार बोल कर बच चुके हैं कि आयकर को लेकर बोला गया झूठ उनकी लोकप्रियता में कोई बड़ी सेंध लगा पाएगा यह बात संभव जान नहीं पड़ती। जो नेता देश में कोरोना महामारी से 2,10,000 लोगों की मौत और लगभग 74 लाख लोगों के संक्रमित होने की बात पर शर्मिंदा होने की बजाय शाबासी लेने कोशिश करे और उसके समर्थक उस पर तालियाँ बजाएँ, उस पर टैक्स बचाने की बात का क्या असर हो सकता है?

जिस बात का असर हो सकता है वह है उनकी चतुर-चालाक कारोबारी की छवि का टूटना। उनके 42 करोड़ डॉलर के कर्ज़ का मुद्दा भी चिंता का विषय बन सकता है, क्योंकि इतने बड़े कर्ज़ में दबा राष्ट्रपति देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बन सकता है।
इसी तरह दस्तावेज़ में बड़ी रकम मिलने के जो संकेत मिले हैं वह भी चिंता का कारण बन सकते हैं। जो बाइडन और उनके डेमोक्रैट समर्थक सवाल उठा सकते हैं ट्रंप साहब कहीं किसी रूस जैसी बाहरी ताकत के कर्ज़दार तो नहीं हैं! 

अपनी बेटी को सलाहकार के रूप में बड़ी फ़ीस देकर उसे ख़र्च की मद में दिखाने और ख़र्चों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने की बातों की भी संसदीय छानबीन कराई जा सकती है। ब्रिटन के लगभग एक तिहाई सांसदों के राजनीतिक जीवन 2009 के भत्ता-कांड ने समाप्त कर दिए थे।
लेकिन अमेरिका ब्रिटेन नहीं है। वहाँ लोग टैक्स देने में हेराफेरी से ज़्यादा राजनीतिक तंत्र से आतंकित रहते हैं जिसे ट्रंप समर्थक डीप-स्टेट कहते हैं और मानते हैं डीप-स्टेट ही उनके नेता की छवि धूमिल करने पर तुला है। 

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शिवकांत | लंदन से
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