नेपाल में प्रदर्शन कर रहा Gen Z पूर्व CJI सुशीला कार्की को अंतरिम पीएम बनाना चाहता है। उनके नाम का यह प्रस्ताव बुधवार को एक वर्चुअल बैठक में हजारों युवाओं द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया। कार्की को उनकी निष्पक्षता और राजनीतिक दलों से दूरी के कारण इसके लिए चुना गया। कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं। उन्होंने अभी तक इस प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव रमन कुमार कर्ण ने रॉयटर्स को पुष्टि की कि युवा संगठनों ने उन्हें सेना और अन्य पक्षों से बातचीत के लिए चुना है।

नेपाल में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सोशल मीडिया प्रतिबंध के ख़िलाफ़ Gen Z द्वारा शुरू किए गए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा है। अब युवा कार्यकर्ता पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करना चाह रहे हैं।
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इसको लेकर बुधवार सुबह एक वर्चुअल बैठक हुई। इसमें 4,000 से अधिक युवा शामिल हुए। 'यूथ अगेंस्ट करप्शन' जैसे Gen Z संगठनों ने नेतृत्व के मुद्दे पर चर्चा की। Gen Z 26 साल से कम उम्र के युवाओं को कहा जाता है और उनके आंदोलन को Gen Z प्रोटेस्ट कहा जा रहा है। शुरुआत में काठमांडू के मेयर बालेन शाह को पसंदीदा उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन प्रतिभागियों ने बताया कि उनसे संपर्क करने की बार-बार की गई कोशिशों के बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। नेपाली मीडिया ने Gen Z के एक प्रतिनिधि के हवाले से कहा कि चूँकि उन्होंने हमारे फ़ोन कॉल नहीं उठाए, इसलिए चर्चा दूसरे नामों पर केंद्रित हो गई। सबसे ज़्यादा समर्थन सुशीला कार्की को मिला है।

कार्की से पहले इस प्रस्ताव के साथ संपर्क किया गया था और कथित तौर पर उन्होंने समर्थन के तौर पर कम से कम 1000 लिखित हस्ताक्षर मांगे थे। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अब उन्हें 2,500 से ज़्यादा हस्ताक्षर मिल चुके हैं, जो माँग से कहीं ज़्यादा है। 

युवाओं ने जोर दिया कि कोई भी राजनीतिक दल से जुड़ा युवा नेतृत्व चर्चा में शामिल न हो और निष्पक्ष व्यक्ति को चुना जाए।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव ने पुष्टि की कि कार्की का नाम सेना और अन्य जुड़े लोगों से बातचीत के लिए पेश किया जाएगा। एक युवा कार्यकर्ता ने कहा, 'कार्की जी निष्पक्ष हैं, राजनीति से दूर रहीं और भ्रष्टाचार विरोधी फैसलों के लिए जानी जाती हैं। वे अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगी, ताकि निष्पक्ष चुनाव हो सकें।' बैठक में कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तावित किया गया, लेकिन अभी कोई औपचारिक सबमिशन नहीं हुआ है। नेपाली अखबार कान्तिपुर के अनुसार, सहमति लगभग बन चुकी है, लेकिन अंतिम निर्णय बाकी है।

सुशीला कार्की कौन हैं?

65 वर्षीय सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं। उन्होंने 2016 में इतिहास रचा जब उन्हें यह पद मिला। 2017 में सेवानिवृत्ति के बाद वे राजनीति से दूर रहीं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। 2017 में नेपाली कांग्रेस और माओवादी सेंटर द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, लेकिन जन दबाव और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से इसे वापस ले लिया गया। 

कार्की भ्रष्टाचार विरोधी फैसलों के लिए प्रसिद्ध रही हैं। 2012 में उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों में जय प्रकाश गुप्ता को दोषी ठहराने का आदेश दिया, जिससे वे नेपाल में भ्रष्टाचार के लिए जेल जाने वाले पहले मंत्री बन गये थे। बता दें कि सुशीला कार्की ने 1975 में वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने 1978 में काठमांडू के त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। युवा उन्हें 'निष्पक्ष नेता' मानते हैं, जो संवैधानिक संकट सुलझा सकती हैं।
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हालाँकि, कार्की प्रमुख दावेदार के रूप में उभरीं, लेकिन वर्चुअल मीटिंग में कई अन्य प्रमुख नामों पर भी चर्चा हुई। प्रतिभागियों ने नेपाल विद्युत प्राधिकरण के प्रमुख कुलमन घीसिंग, युवा नेता सागर ढकाल और धरान के मेयर हरका संपांग का ज़िक्र किया। एक यूट्यूबर, रैंडम नेपाली को भी काफ़ी समर्थन मिला। हालाँकि, उन्होंने कहा कि वह तभी आगे बढ़ेंगे जब कोई और व्यक्ति इस पद को स्वीकार नहीं करेगा।

राजनीतिक नेता क्या चाहते हैं?

कार्की के प्रस्ताव का सामना राजनीतिक दलों से है। नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल यानी यूएमएल ने पहले ही इसे 'युवाओं की अराजकता' बताया है। पूर्व पीएम ओली ने कहा, 'न्यायपालिका को राजनीति में न घसीटा जाए।' राष्ट्रपति पौडेल ने संवैधानिक समाधान का आह्वान किया, लेकिन सेना ने शांति बनाए रखने को कहा। नेपाल आर्मी चीफ़ ने राष्ट्र को संबोधित कर कहा, 'अगर हिंसा जारी रही तो निर्णायक कार्रवाई होगी।'
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नेपाल संकट: Gen Z का विद्रोह

नेपाल में 4 सितंबर 2025 को सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, टिकटॉक, यूट्यूब, एक्स और लिंक्डइन समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने से विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। नेपाल की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा युवाओं का है, जहां बेरोजगारी दर 12.6 प्रतिशत से अधिक है और प्रति व्यक्ति आय मात्र 1400 अमेरिकी डॉलर सालाना है। ऐसे में कई युवाओं के लिए सोशल मीडिया आजीविका का साधन भी था। प्रदर्शनकारियों ने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, आर्थिक असमानता और नेताओं के परिवारों की विदेशी लग्जरी लाइफ पर निशाना साधा। 

प्रदर्शन शांतिपूर्ण रूप से शुरू हुए, लेकिन 8 सितंबर को काठमांडू, पोखरा, विराटनगर और अन्य शहरों में पुलिस की बर्बर कार्रवाई ने हिंसा को बढ़ावा दिया। आंसू गैस, वॉटर कैनन, रबर बुलेट्स और असली गोलियों का इस्तेमाल किया गया। इसमें कई लोगों की मौत हो गई और 200 से अधिक घायल हुए। 9 सितंबर को प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन पर हमला कर आग लगा दी, सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक दलों के मुख्यालयों और मंत्रियों के निजी आवासों को नुकसान पहुंचाया। पूर्व गृह मंत्री रवि लामिछाने समेत कई कैदी जेल ब्रेक में छूट गए। प्रधानमंत्री ओली को इस्तीफा देना पड़ा। सोशल मीडिया प्रतिबंध मंगलवार को हटा लिया गया, लेकिन युवाओं का गुस्सा शांत नहीं हुआ।