आर्थिक उथल-पुथल के बीच पाकिस्तान ने रक्षा बजट में 18% की वृद्धि कर इसे 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक कर दिया है। लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया, इसका विश्लेषण जरूरी है।
पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ (बाएं) और पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर (दाएं) । फाइल फोटो
गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए अपने रक्षा बजट में 18% की बढ़ोतरी की है, जिसके बाद देश में सरकार की आर्थिक नीतियों पर तीखी बहस छिड़ गई है। पाकिस्तानी सरकार ने इस साल का रक्षा बजट 2.122 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये (लगभग 7.6 अरब डॉलर) रखा है, जो पिछले साल के मुकाबले काफी अधिक है।
हालांकि, इस फैसले के पीछे सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान की सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए यह कदम जरूरी था, लेकिन अर्थशास्त्रियों और विपक्षी नेताओं का कहना है कि जब देश भयंकर मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और विदेशी कर्ज के संकट से जूझ रहा है, तब रक्षा पर खर्च बढ़ाने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में निवेश किया जाना चाहिए।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई सालों से लगातार डांवाडोल हो रही है। देश में: मुद्रास्फीति 30% से ऊपर पहुंच चुकी है, जिससे आम जनता का जीवन मुश्किल हो गया है। विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 9 अरब डॉलर पर सिमट गया है, जो महज कुछ हफ्तों के आयात के लिए पर्याप्त है। पाकिस्तानी रुपया लगातार गिरावट का सामना कर रहा है, जिससे विदेशी कर्ज चुकाना और भी मुश्किल हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 3 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की उम्मीद लगाई जा रही है, लेकिन IMF ने सख्त शर्तें रखी हैं। ऐसे हालात में, पाकिस्तान सरकार द्वारा रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला कई सवाल खड़े कर रहा है।
पाकिस्तानी सरकार और सेना प्रमुखों का कहना है कि देश की सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए यह कदम जरूरी था। उनके मुताबिक: भारत के साथ तनाव और सीमा पर लगातार होने वाले घुसपैठ की घटनाओं के चलते सेना को मजबूत करना आवश्यक है। भारत से तनावपूर्ण संबंध पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। ऐसे में पाकिस्तानी सेना को ज्यादा मजबूत करने के लिए और पैसा चाहिए।
आंतरिक सुरक्षा खतरे, खासकर बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आतंकी गतिविधियों के कारण सेना को अधिक संसाधनों की जरूरत है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) जैसी परियोजनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी अतिरिक्त फंड की आवश्यकता है। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि सेना पर अत्यधिक खर्च करने से देश की अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़ेगा।
पाकिस्तान के अर्थशास्त्रियों, विपक्षी नेताओं और मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। पाकिस्तानी अर्थशास्त्री डॉ. अहसान इक़बाल का कहना है कि: "सेना पर खर्च बढ़ाने के बजाय जनता के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए।"
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के नेता ने कहा- "IMF से मदद मांगने वाला देश रक्षा बजट कैसे बढ़ा सकता है?" मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि "पाकिस्तानी सेना पहले से ही देश के बजट का बड़ा हिस्सा खा रही है, जबकि आम नागरिक भूखे मर रहे हैं।"
पाकिस्तान IMF से 3 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की उम्मीद लगाए बैठा है, लेकिन IMF ने सख्त शर्तें रखी हैं, जिनमें शामिल हैं: सब्सिडी में कटौती (विशेषकर बिजली और ईंधन पर)। कर सुधार और नए टैक्स लागू करना। सरकारी खर्च में कमी लाना। अगर पाकिस्तान इन शर्तों को पूरा नहीं करता, तो IMF की मदद मिलना मुश्किल होगा, जिससे देश का आर्थिक संकट और गहरा सकता है।
पाकिस्तान का रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला उसकी सुरक्षा चिंताओं को दर्शाता है, लेकिन यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या देश अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं को सही तरीके से तय कर रहा है? जब तक पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होती, तब तक सेना पर अत्यधिक खर्च दीर्घकाल में देश के लिए घातक साबित हो सकता है।