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अमेरिकी सैनिक काबुल पहुँचे, कई देशों ने दूतावास खाली किया

ऐसे समय जब तालिबान लड़ाके काबुल से 150 किलोमीटर दूर तक पहुँच चुके हैं, कई देशों ने दूतावास खाली कराना और अपने कर्मचारियों व उनके परिवार वालों को वहाँ से निकालना शुरू कर दिया है। अमेरिका ने 3,000 सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान भेज दिया है।

समाचार एजेन्सी रॉयटर्स के अनुसार, ये अमेरिकी सैनिक काबुल व दूसरी जगहों से अमेरिकी कर्मचारियों और उनके परिजनों को निकालेंगे। ये तालिबान से युद्ध नहीं करेंगे। पर यदि इन पर हमला किया गया तो वे जवाबी कार्रवाई करेंगे।

तालिबान ने कहा है कि अमेरिका को अब अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

तालिबान के एक प्रवक्ता ने वाशिंगटन को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि वह अफ़ग़ानिस्तान में सैनिक कर्रवाई करेगा तो उसके गंभीर नतीजे होंगे।

3000 सैनिक काबुल जाएंगे

अमेरिकी रक्षा विभाग ने शुक्रवार को कहा था कि मरीन के दो बटालियन और इनफ्रैंट्री का एक बटालियन भेजा जा रहा है, जिसमें 3,000 सैनिक होंगे। ये सभी सैनिक रविवार को काबुल पहुँच जाएंगे।

लेकिन रॉयटर्स का कहना है कि अमेरिकी सैनिकों का पहला जत्था पहुँच चुका है, और अमेरिकी सैनिकों का आना जारी है। 

पेंटागन ने यह भी कहा है कि अमेरिकी इन्फ़्रैन्ट्री के सैनिक फ़ोर्ट ब्रैग से कुवैत जाएंगे ताकि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें तुरन्त वहाँ से अफ़ग़ानिस्तान भेजा जा सके। 

कई दूसरे पश्चिमी देश भी अपने दूतावास के कर्मचारियों को वापस बुला रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी काबुल में

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि वह फिलहाल अपने अधिकारियों को अफ़ग़ानिस्तान से नहीं निकाल रहा है, लेकिन उन्हें दूसरे शहरों से काबुल भेजा जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुटरेस ने चेतावनी दी है कि अफ़ग़ानिस्तान में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं और सभी पक्षों से अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है।

गुटरेस ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों से कहा,

यह वक़्त है लड़ाई रोकने का। यह समय है गंभीर बातचीत शुरू करने का। यह अफ़गानिस्तान में गृह युद्ध को रोकने और उस देश को अकेला छोड़ देने से बचने का समय है।


अंतोनियो गुटरेश, महासचिव, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

ब्रिटेन भी अपने नागरिकों को निकालने के लिए 600 सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान भेजेगा।
प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने इसके पहले वायदा किया था कि उनका देश अफ़ग़ानिस्तान से मुंह नहीं मोड़ेगा। लेकिन उन्होंने यह भी माना था कि बाहरी शक्तियों के पास अफ़ग़ानिस्तान पर  समाधान थोपने की सीमित क्षमता है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया का कहना है कि अभी तक 2,50,000 लोग अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं। अमेरिकी सेना के 20 साल बाद देश छोड़कर जाने के कारण तालिबान का दबदबा बढ़ रहा है।

आशंका जताई जा रही है कि साल 2001 में सेना के आने के बाद मानवाधिकारों को लेकर जो सुधार हुए थे, वो सब ख़त्म हो जाएंगे।

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क़मर वहीद नक़वी
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