अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाते हैं।
प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार ने इसलामोफ़ोबिया शब्द के इस्तेमाल को ग़लत बताया। उनका कहना है कि यह शब्द उस मनोवृत्ति को व्यक्त नहीं करता जो अभी पूरी दुनिया में अलग-अलग रूप में प्रकट हो रही है। क्या सच में ऐसा है?
जैसे यहूदी विरोध आपके भीतर संस्कार की तरह सोया रहता है, वैसे ही मुसलमान विरोध भी। इसे इसलामोफ़ोबिया कहा गया है। कुछ विद्वानों का कहना है कि लोगों के भीतर मुसलमानों को लेकर तरह-तरह के पूर्वग्रह हैं।
मुखीम कोर्ट के निर्णय की रिपोर्ट करके सिर्फ़ अपने धर्म का निर्वाह कर रही थीं। जनतांत्रिक मूल्यों को लेकर ऐसी प्रतिबद्धता राष्ट्रीय संपादकों में शायद ही देखी जाती है।
यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की जगह अब एक 'मुसलमान-शंकालु' राष्ट्र में तब्दील हो रहा है। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का मतलब सिर्फ़ एक क़ानूनी अवस्था नहीं। उसका मतलब था, अलग-अलग समुदायों का साथ जीने का एक तरीक़ा।