विजय त्रिवेदी वरिष्ठ पत्रकार हैं, राजनीतिक और दूसरे सम सामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
कांग्रेस में सम्मान न मिलने की बात कहकर ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल तो हो गए हैं लेकिन क्या उनके लिये यहां सियासी पारी खेलना आसान होगा।
दिल्ली में अपने काम के नाम पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी जीत गई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें हार गईं, नफ़रत की राजनीति हार गई।
अरविंद केजरीवाल लगाएंगे हैट्रिक या 48 सीटें जीतने का मनोज तिवारी का दावा सच साबित होगा, मंगलवार को मालूम हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव प्रचार अभियान तीन दिन के लिए है। उन्हें दिल्ली में चुनाव प्रचार करने क्यों बुलाया गया है?
बीजेपी में एक लंबा सफ़र तय करने वाले नड्डा अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। लेकिन क्या वह बीजेपी को अमित शाह की छाया से बाहर निकाल पायेंगे?
आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद ज़्यादातर बार सत्ता परिवर्तन में छात्र आंदोलनों की अहम भूमिका रही है। छात्र आंदोलनों की ताक़त को कमतर समझना हमेशा ही नुक़सान का सौदा रहा है।
2019 में केंद्र में बीजेपी की फिर से सरकार बनी तो कई राज्यों के चुनाव में उसे झटके भी लगे हैं। उसे ध्यान रखना होगा कि जनता से किये वादों को पूरा करना बेहद ज़रूरी है।
बीजेपी झारखंड का चुनाव क्या इस वजह से हार गई कि मुख्यमंत्री रघुबर दास की कार्यशैली तानाशाहों जैसी थी या इस वजह से कि केंद्रीय नेतृत्व जल-ज़मीन-जंगल के मुद्दे नहीं उठा पाई?