केंद्र सरकार की कृषि नीति समय पर फैसला न लेने के बुरे नतीजों का शिकार हो चुकी है। सरसों बोने वाले किसानों के साथ इस बार कैसे धोखा हुआ है, उसे वरिष्ठ पत्रकार हरजिंदर के नजरिए से समझिए।
आमतौर पर फरवरी के आखिर में जब सरसों की आवक शुरू होती है तो बाजार भी उसके स्वागत के लिए तैयार होता है। लेकिन इस बार खाद्य तेलों के कारोबारियों को आयात में ही ज्यादा फायदा दिख रहा है, इसलिए वे सरसों के तेल में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। सरकार को उम्मीद थी कि इस बार खुले बाजार में किसानों को ज्यादा दाम मिल सकते हैं इसलिए सरसों की सरकारी खरीद के लिए 10 मार्च की तारीख तय की गई। सरसों की खरीद के लिए नेफेड ने सारी सरकारी व्यवस्थाएं भी इसी तारीख के हिसाब से की हैं। उम्मीद यही थी कि जो किसान इस तारीख से पहले बाजार में सरसों लाएंगे वे ज्यादा फायदे में रहेंगे और इससे सरकार पर खरीद का दबाव भी कम हो जाएगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा।