आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और पीएम मोदी
धनखड़ एपिसोड के पहले तक जनता के बीच दो तरह की चर्चाएँ चल रही थीं ! उन पर बहसें भी हो रही थीं और आर्टिकल्स भी लिखे जा रहे थे ! लिखने वालों में आरएसएस से जुड़े लोग भी थे। एक चर्चा का संबंध इस बात से था कि क्या 11 सितंबर को (इस दिन विनोबा जयंती भी है ) अपनी आयु के 75 वर्ष पूरे करते ही संघ प्रमुख मोहन भागवत अपना दायित्व किसी सहयोगी को सौंप देंगे ? दूसरी चर्चा यह थी कि छह दिन बाद ही 17 सितंबर को 75 पूरे करते ही क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं द्वारा स्थापित सिद्धांत के अनुसार अपने स्थान पर किसी अन्य नेता का नाम प्रस्तावित कर देंगे?
इस तरह की कोई चर्चा मोहन भागवत को लेकर नहीं रही और न है कि वे अगर पद त्याग कर देते हैं तो नागपुर का क्या होगा ? संघ का दायित्व कौन सम्भालेगा ? 21 जुलाई के बाद से कोई भी चर्चा इन आशंकाओं को लेकर तो बिलकुल ही नहीं है कि भागवत तो 11 सितंबर को पद-त्याग की घोषणा कर दें पर मोदी 17 सितंबर को नहीं करें, वे किसी गुफा या स्मारक पर जाकर ध्यानस्थ हो जाएँ और ईश्वरीय आदेश प्राप्त करके नए संकल्पों के साथ नेतृत्व के लिए प्रकट हो जाएँ तो संघ प्रमुख की क्या प्रतिक्रिया होगी ?
संघ के दिवंगत विचारक मोरोपंत पिंगले के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘ मोरोपंत पिंगले : द आर्किटेक्ट ऑफ़ हिंदू रिसर्जेंस’ के नौ जुलाई को नागपुरमें हुए विमोचन समारोह में भागवत ने यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि :’पचहत्तर बाद समझ लो कि अब रुक जाना चाहिये, तुम्हारी उम्र हो गई है ! अब दूसरों को काम करने दो !’
भागवत के कहे का यही अर्थ लगाया गया( लगाया भी जाना चाहिए था) कि उनका इशारा साफ़-साफ़ मोदीजी की तरफ़ था ! दोनों नेताओं के बीच ‘तनावपूर्ण’ संबंधों का अन्दाज़ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जे पी नड्डा के स्थान पर मोदी अपनी पसंद का व्यक्ति नियुक्त नहीं कर पा रहे हैं। माना जा सकता है कि 21 जुलाई की रात उत्पन्न हुई असाधारण परिस्थितियों के बाद नए अध्यक्ष के नाम की एकतरफ़ा घोषणा किसी भी समय दिल्ली में की जा सकती है !
धनखड़ को लेकर चले घटनाक्रम ने संघ की इस धारणा को सबसे धक्का पहुँचाया होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों ने मोदी के नेतृत्व को कमज़ोर साबित कर दिया है। संघ के साथ-साथ पार्टी में रणनीतिक मौन धारण किए बैठे मोदी-विरोधी भी यही मानते रहे हैं कि नेतृत्व नहीं बदला गया तो 2029 के नतीजों के बाद भाजपा कई बैसाखियों के सहारे भी सत्ता तक नहीं पहुँच पाएगी ! मोदी के नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़कर भाजपा वैसी ही गलती करेगी जैसी कांग्रेस ने 1996 में नरसिंहाराव और 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यक़ीन दोहराकर की थी।
धनखड़ एपिसोड को जिस क्रूर तरीक़े से अंजाम दिया गया उससे नागपुर तक भी संदेश पहुँचा होगा कि मोदी देश में रहें या विदेशों में भाजपा के पास उनका कोई विकल्प ही नहीं है ! यह भी कह सकते हैं कि मोदी ने किसी विकल्प को बचने ही नहीं होने दिया। भाजपा के एक सांसद ने हाल ही में कहा भी था कि मोदी को पार्टी की ज़रूरत नहीं हैं, पार्टी को मोदी की है।
संघ प्रमुख ने बिना मोदी का नाम लिए पचहत्तर साल पर पद त्याग देने की बात नौ जुलाई को कही थी। दस दिन तक उनके कहे पर देश भर में चर्चाएँ होती रहीं जिनमें एक स्वर यह भी था कि मोदी तो पद छोड़ेंगे नहीं, भागवत ही छोड़ने वाले हैं। संघ शायद शायद इन चर्चाओं से ज़्यादा सकते में आ गया। इसीलिए भागवत की सलाह के दस दिन बाद संघ के प्रमुख विचारक राम माधव को एक आर्टिकल संघ प्रमुख के बचाव में लिखना पड़ा। राम माधव का आर्टिकल 19 जुलाई को ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित हुआ और दो दिन बाद 21 जुलाई को देश की राजधानी में नया संसदीय इतिहास रच गया।
अपने आर्टिकल के सार में राम माधव ने यही समझाया कि :’’संघ प्रमुख के कहे को सही तरीक़े से नहीं समझा गया। भागवत का इशारा किसी व्यक्ति विशेष की ओर नहीं था। वे तो युवा-नेतृत्व को आगे लाने में खुलेपन की बात कह रहे थे । सच यह भी है कि युवा नेतृत्व के होते हुए भी देशवासियों ने वर्तमान नेतृत्व को इसीलिए चुना कि उम्र कोई मानदंड नहीं होती। जिस तरह की दूरदृष्टि और स्फूर्ति दोनों(मोदी और भागवत) के पास है वे आने वाले कई वर्षों तक अपनी भूमिकाएँ निभाते रहें यही अपेक्षा है। उम्र कोई मायने ही नहीं रखती।”
राम माधव के आर्टिकल और उसके बाद हुए धनखड़ एपिसोड के क्या अर्थ लगाए जाने चाहिए ? क्या यह कि मोदी के रिटायरमेंट को लेकर भागवत अब कुछ भी नहीं बोलने वाले हैं ? क्या देश को अब 17 सितंबर के बजाय सिर्फ़ 11 सितंबर की ही प्रतीक्षा करना चाहिए ?