आपातकाल यानी भारतीय लोकतंत्र का एक बेहद स्याह और शर्मनाक अध्याय....एक दु:स्वप्न...एक मनहूस कालखंड! तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता की सलामती के लिए आपातकाल लागू कर समूचे देश को कैदखाने में तब्दील कर दिया था।
विपक्षी दलों के तमाम नेता और कार्यकर्ता जेलों में ठूंस दिए गए थे। सेंसरशिप लागू कर अखबारों की आजादी का गला घोंट दिया गया था। संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका आदि सभी संवैधानिक संस्थाएं इंदिरा गांधी के रसोईघर में तब्दील हो चुकी थी, जिसमें वही पकता था, जो वे और उनके बेटे संजय गांधी चाहते थे।

पीएम मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में सांसद के रूप में शपथ लेने से पहले आपातकाल को याद कर कांग्रेस पर हमला किया। दो साल पहले अनिल जैन ने इस पर टिप्पणी लिखी थी। पढ़िए, मौजूदा हालात में यह कितना सारगर्भित।
सरकार के मंत्रियों समेत सत्तारुढ़ दल के तमाम नेताओं की हैसियत मां-बेटे के अर्दलियों से ज्यादा नहीं रह गई थी। आखिरकार पूरे 21 महीने बाद जब चुनाव हुए तो जनता ने अपने मताधिकार के जरिए इस तानाशाही के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से ऐतिहासिक बगावत की और देश को आपातकाल के अभिशाप से मुक्ति मिली थी।