भारत के संविधान की प्रस्तावना से "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्दों को हटाने की माँग करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने फिर एक पुराने विवाद को हवा दे दी है। 2024 के लोकसभा चुनावों में संविधान बदलने के आरोपों से बैकफुट पर आई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वैचारिक स्रोत आरएसएस की इस माँग को संविधान के मूल ढांचे पर हमला माना जा रहा है। क्या ये शब्द वास्तव में भारतीय सभ्यता के अनुरूप नहीं हैं, जैसा कि आरएसएस दावा करता है? अगर ऐसा हो तो स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना क्यों देखा था?