भारत के संविधान की प्रस्तावना से "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्दों को हटाने की माँग करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने फिर एक पुराने विवाद को हवा दे दी है। 2024 के लोकसभा चुनावों में संविधान बदलने के आरोपों से बैकफुट पर आई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वैचारिक स्रोत आरएसएस की इस माँग को संविधान के मूल ढांचे पर हमला माना जा रहा है। क्या ये शब्द वास्तव में भारतीय सभ्यता के अनुरूप नहीं हैं, जैसा कि आरएसएस दावा करता है? अगर ऐसा हो तो स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना क्यों देखा था?
समाजवाद न धर्मनिरपेक्षता, आरएसएस के निशाने पर संविधान!
- विश्लेषण
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- 27 Jun, 2025
दत्तात्रेय होसबाले के बयान के बाद संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने की मांग ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। क्या यह आरएसएस की विचारधारा को संविधान में लागू करने की कोशिश है?

सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का बयान
25 जून 2025 को आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर बीजेपी ने इसे "संविधान हत्या दिवस" के रूप में मनाया जिसका उद्देश्य कांग्रेस को निशाना बनाना था। लेकिन दिल्ली में इससे जुड़े एक आयोजन में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इमरजेंसी के दौरान संविधान की प्रस्तावना से "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्द जोड़ने की निंदा करते हुए कहा:
"क्या समाजवाद कभी भारत की सभ्यतागत भावना के अनुरूप था? क्या धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं के साथ मेल खाती है?"