क्या पाकिस्तान भारत के साथ नया खेल खेल रहा है और डोनाल्ड ट्रंप इसमें पाकिस्तान का खुलकर साथ दे रहे हैं? क्या पाकिस्तान ट्रंप के माध्यम से कश्मीर मुद्दे को अंतराष्ट्रीय स्तर पर उठाने और मध्यस्थता कराने की तैयारी कर रहा है? ये सवाल इसलिए कि हाल के कई घटनाक्रम ही कुछ ऐसे हुए हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी ने हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव को कम करने में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका की जमकर तारीफ़ की है। दोनों नेताओं ने अमेरिका से अपील की कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापक बातचीत को बढ़ावा दे। इसी बीच, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में शिमला समझौते को 'मृत दस्तावेज' करार दिया और कहा कि नियंत्रण रेखा अब केवल एक युद्धविराम रेखा है, जिसकी स्थिति को लेकर नए सिरे से बातचीत की ज़रूरत है। इन बयानों के बीच ही डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान भी लगातार आ रहा है कि उन्होंने भारत-पाक के बीच युद्धविराम के लिए मध्यस्थता की। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत में भी उन्होंने यह बात कही। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान को आतंकवाद विरोधी समिति का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। क्या यह अमेरिका के समर्थन के बिना संभव है? क्या ये सब घटनाक्रम कुछ और संकेत देते हैं? आइए, पहले इन घटनाक्रमों को समझते हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, 'राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी कोशिशों की वजह से ही युद्धविराम संभव हो सका।' शरीफ ने यह भी कहा कि अगर अमेरिका इस युद्धविराम को बनाए रखने में मदद करता है तो वह भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापक बातचीत को शुरू करने में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
हाल ही में वाशिंगटन की तीन दिवसीय यात्रा पर रहे पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो-जरदारी ने भी ट्रंप की तारीफ़ की। उन्होंने कहा, 'ट्रंप को इस युद्धविराम को संभव बनाने का श्रेय मिलना चाहिए। उन्होंने 10 अलग-अलग मौकों पर कहा है कि उनकी कोशिशों से भारत-पाकिस्तान युद्ध रुका। यह सही है, क्योंकि उनकी वजह से ही यह संभव हुआ।'
बिलावल ने यह भी जोड़ा कि अमेरिका की मदद से दोनों देशों के बीच कश्मीर, जल बँटवारे और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर बातचीत हो सकती है। और इसी बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस पर एक विवादित बयान दे दिया है।
पाक रक्षा मंत्री का बड़ा बयान
ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में शिमला समझौते को 'मृत दस्तावेज' करार दिया और कहा कि नियंत्रण रेखा अब केवल एक युद्धविराम रेखा है, जिसकी स्थिति को लेकर नए सिरे से बातचीत की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि शिमला समझौता अपनी प्रासंगिकता खो चुका है और जम्मू-कश्मीर का स्टेटस 1947 की स्थिति की तरह माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में 1947-48 में युद्धविराम घोषित किया था, जिसके कारण एलओसी अस्तित्व में आई।
हालांकि, बाद में पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने साफ़ किया कि शिमला समझौते सहित किसी भी द्विपक्षीय समझौते को औपचारिक रूप से रद्द करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यह बयान ख्वाजा आसिफ के दावों को संतुलित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि उनके बयान ने भारत-पाक संबंधों में नई बहस छेड़ दी है।
बता दें कि 1972 का शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और द्विपक्षीय संबंधों का आधार रहा है, जिसमें दोनों देशों ने सहमति जताई थी कि कश्मीर सहित सभी विवाद बिना किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के हल किए जाएंगे। लेकिन भारत द्वारा हाल में सिंधु जल संधि को निलंबित किए जाने के बाद पाकिस्तान ने भी शिमला समझौते को निलंबित कर दिया है। पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का यह बयान न केवल इस समझौते की वैधता पर सवाल उठाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को फिर से उछालने की कोशिश को भी दिखाता है।
यह बयान पाकिस्तान की उस पुरानी नीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें वह कश्मीर को वैश्विक मंचों पर लाकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता है। नियंत्रण रेखा की स्थिति पर नई बातचीत की मांग करके पाकिस्तान एक बार फिर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने की कोशिश कर रहा है, जो भारत के लिए अस्वीकार्य है।
ट्रंप का रवैया क्या?
भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में मध्यस्थता के ट्रंप के दावे को भारत ने बार-बार खारिज किया है, लेकिन इसके बावजूद ट्रंप इस मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच बुधवार को फोन पर लंबी बातचीत के दौरान आश्चर्यजनक रूप से भारत-पाकिस्तान संघर्ष का मुद्दा भी उठा है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के वरिष्ठ सलाहकार यूरी उशाकोव ने बताया है कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष को व्यक्तिगत भागीदारी से रोकने की बात कही है।
हालाँकि, भारत ने ट्रंप की मध्यस्थता के दावों को सिरे से खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि युद्धविराम पूरी तरह से द्विपक्षीय समझौते का नतीजा था और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी।
इन सब घटनाक्रमों के बीच माना जा रहा है कि ट्रंप का झुकाव पाकिस्तान की तरफ़ है। इसको उस घटना से भी जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया है।
पाकिस्तान को एफ़एटीएफ़ की ग्रे लिस्ट में भी नहीं डाला गया। पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 1 अरब डॉलर की तुरंत मदद और 1.3 अरब डॉलर का नया कर्ज दिया। पाकिस्तान को हाल ही में एशियन डेवलपमेंट बैंक से 80 करोड़ डॉलर का कर्ज मिला।
ट्रंप परिवार का पाकिस्तान कनेक्शन
हाल ही में ख़बर आई है कि ट्रंप के परिवार की एक कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल में 60 फीसदी हिस्सेदारी है जिसने पाकिस्तान क्रिप्टोकरेंसी काउंसिल से सौदा किया है। इस सौदे की क्या अहमियत है, यह इससे समझा जा सकता है कि सौदे की बातचीत करने पहुँची उस कंपनी की टीम का खुद पाक सेना प्रमुख आसीम मुनीर ने न सिर्फ़ व्यक्तिगत रूप से स्वागत किया था, बल्कि उनकी शहबाज़ शरीफ़ के साथ बैठक भी कराई थी।
वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल एक क्रिप्टोकरेंसी कंपनी है और इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति के परिवार की 60% हिस्सेदारी है। वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल के शेयरहोल्डरों में ट्रंप के दो बेटे, एरिक और डोनाल्ड ट्रंप जूनियर, साथ ही उनके दामाद जेरेड कुशनर शामिल हैं। कुशनर व्हाइट हाउस से अपने संबंधों का लाभ उठाने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसके अलावा भी ट्रंप परिवार का व्यावसाहिक हित पाकिस्तान से जुड़ा है।
तो सवाल है कि क्या इसी का असर है कि ट्रंप भारत-पाक के बीच संबंधों में इतनी रुचि ले रहे हैं? क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी द्वारा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत-पाकिस्तान तनाव को कम करने में भूमिका की प्रशंसा एक नई राजनयिक रणनीति का संकेत देती है?