15 सितंबर 2025 को पूर्णिया, बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए घुसपैठ के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। बिहार इन दिनों विपक्ष के “वोट चोर, गद्दी छोड़” नारे और विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन (SIR) के मुद्दे से गरमाया हुआ है। राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने SIR के खिलाफ एक बड़ी यात्रा निकाली थी, जिसे पीएम मोदी ने “घुसपैठियों को बचाने” की कोशिश करार दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “सीमांचल और पूर्वी भारत में घुसपैठियों के कारण डेमोग्राफी का कितना बड़ा संकट खड़ा हो गया है। बिहार, बंगाल और असम के लोग अपनी बहन-बेटियों की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं। कांग्रेस और राजद घुसपैठियों की वकालत कर रहे हैं। उन्हें बचाने के लिए नारे लगा रहे हैं, यात्राएं निकाल रहे हैं। जो लोग घुसपैठियों की ढाल बनते हैं, वे सुन लें कि इस देश में भारत का कानून चलेगा।”
अजीब बात है कि 11 साल से केंद्र में और बिहार-असम में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद, घुसपैठ का जिम्मा विपक्ष पर डाला जा रहा है। अगर “भारत में कानून नहीं चल रहा,” जैसा पीएम दावा करते हैं, तो यह किसकी नाकामी है? बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन और असम में बीजेपी की सरकार है। अगर बहन-बेटियों की सुरक्षा खतरे में है, तो जिम्मेदारी किसकी? और डेमोग्राफी बदलने की बात का आधार क्या है, जब 2011 के बाद जनगणना हुई ही नहीं? क्या यह जनता को गुमराह करने की कोशिश है?
घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी किसकी?
घुसपैठ का मतलब आमतौर पर बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत आने वाले प्रवासियों से लिया जाता है। इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं, जो बेहतर जिंदगी की तलाश में भारत आते हैं। लेकिन बीजेपी के लिए “घुसपैठिये” का मतलब ज्यादातर मुस्लिम है, जबकि बंगाल के हिंदू प्रवासी “शरणार्थी” हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता का प्रावधान है, लेकिन मुस्लिम प्रवासियों को सख्ती से डिपोर्ट किया जाता है।
जिम्मेदारी किसकी? घुसपैठ रोकने का दायित्व केंद्र सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) का है। BSF भारत-बांग्लादेश सीमा की सुरक्षा करती है, और यह गृह मंत्रालय के अधीन है। अगर घुसपैठ हो रही है, तो क्या गृहमंत्री अमित शाह की जवाबदेही नहीं बनती? क्या पीएम मोदी उनके इस्तीफे की मांग करेंगे?
चुनावी रणनीति: बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में, और असम व पश्चिम बंगाल में मार्च-अप्रैल 2026 में होने हैं। बिहार और असम में बीजेपी सत्ता में है, लेकिन बेरोजगारी और गरीबी जैसे मुद्दों पर जवाब नहीं दे पा रही। ऐसे में घुसपैठ का मुद्दा उठाकर विपक्ष को निशाना बनाया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में, जहां टीएमसी सत्ता में है, यह मुद्दा बहुसंख्यक हिंदुओं को डराकर बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण कर सकता है। बंगाली भाषी मुस्लिम को “बांग्लादेशी” बताना आसान है, जिससे सांप्रदायिक घृणा को हवा दी जा सकती है।
डिपोर्टेशन: मनमोहन बनाम मोदी
पीएम मोदी ने दावा किया कि उनकी सरकार घुसपैठियों को बाहर निकालेगी, जैसे वे पहले प्रधानमंत्री हों जो ऐसा करेंगे। लेकिन सच्चाई क्या है? घुसपैठियों की पहचान और डिपोर्टेशन एक सतत प्रक्रिया है, जो विदेशी अधिनियम 1946 के तहत चलती है। आइए, आंकड़ों पर नजर डालें:
मनमोहन सिंह (UPA, 2004-2014): इस दौरान 88,792 बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट किया गया। उदाहरण के लिए, 2009 में 10,602 और 2013 में 5,234 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया। यह आंकड़ा संसदीय उत्तरों और गृह मंत्रालय के डेटा से लिया गया है। यानी, “मौन मोहन” कहे जाने वाले मनमोहन सिंह की सरकार इस मोर्चे पर कहीं अधिक सक्रिय थी।
नरेंद्र मोदी (NDA, 2014-2024): 2014-2017 के बीच केवल 1,822 बांग्लादेशी डिपोर्ट किए गए। हालाँकि, 2025 में “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत डिपोर्टेशन में तेजी आई, और मई 2025 से अब तक लगभग 2,000 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया। फिर भी, UPA की तुलना में यह संख्या बहुत कम है।
कई ऐसे भी मामले आये हैं जब भारतीयों को बांग्लादेशी समझकर डिपोर्ट किया गया या करने की कोशिश की गयी। क्या यह विडंबना नहीं कि जिस कांग्रेस को बीजेपी घुसपैठ के लिए जिम्मेदार ठहराती है, उसी के शासन में डिपोर्टेशन कई गुना ज्यादा था? यानी बीजेपी केवल भाषणबाजी कर रही है, जबकि जमीनी कार्रवाई कमजोर रही?
डेमोग्राफी बदलाव की हक़ीक़त?
पीएम मोदी ने डेमोग्राफी बदलने का मुद्दा उठाया, लेकिन इसका आधार क्या है? 2011 की जनगणना के बाद कोई नई जनगणना नहीं हुई। 2011 के आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल आबादी 121 करोड़ थी, जिसमें मुस्लिम 14.2% (17.22 करोड़) थे। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अनुमानों के आधार पर, 2025 में भारत की आबादी 146.38 करोड़ हो सकती है, जिसमें मुस्लिम आबादी 14-15% (20-21 करोड़) अनुमानित है। लेकिन क्या यह “खतरनाक बदलाव” है, जैसा बीजेपी दावा करती है?
NFHS-5 (2019-21) के आंकड़े: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, भारत का कुल प्रजनन दर (TFR) 2.0 है, जो प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से नीचे है। प्रतिस्थापन स्तर वह दर है, जिसमें जनसंख्या न बढ़ती है न घटती है। समुदाय-विशिष्ट TFR:
- हिंदू: 1.94
- मुस्लिम: 2.36 (NFHS-1 में 4.4 से 46.5% की गिरावट)
- ईसाई: 1.88
- सिख: 1.61
- बौद्ध: 1.39
मुस्लिम TFR में गिरावट: मुस्लिमों की प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट देखी गई। NFHS-1 (1992-93) में 4.4 से NFHS-5 में 2.36, यानी 46.5% की कमी। हिंदू-मुस्लिम TFR का अंतर 1.1 से घटकर 0.42 हो गया। यह शिक्षा, परिवार नियोजन (47.4% मुस्लिम महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधक इस्तेमाल करती हैं), और आर्थिक सुधारों का परिणाम है।
डेमोग्राफी बदलाव का सच: डेमोग्राफी बदलाव का मतलब अक्सर स्थानीय स्तर पर जनसंख्या अनुपात में बदलाव से लिया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी मुहल्ले में मुस्लिम आबादी बढ़ने और हिंदू आबादी कम होने की बात। लेकिन यह घुसपैठ से ज्यादा माइग्रेशन और सामाजिक-आर्थिक कारकों का परिणाम है। लोग बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं। हिंदू मध्यम वर्ग के लोग बेंगलुरु, पुणे जैसे शहरों में जा रहे हैं, और उनके गाँवों में घर खाली रह जाते हैं। मुस्लिम गरीब आबादी अक्सर छोटे-मोटे कामों के लिए स्थानीय स्तर पर माइग्रेट करती है। सांप्रदायिक माहौल ने भी “घेटोआइजेशन” को बढ़ावा दिया है, जहां लोग अपने धर्म के बहुसंख्यक क्षेत्रों में बसना पसंद करते हैं। लेकिन बीजेपी इसे “हिंदुओं का पलायन” और “मुस्लिम आबादी वृद्धि” के रूप में पेश करती है, जो डर फैलाने की रणनीति है।
‘चार बीवी’ का सच
“चार बीवी और चालीस बच्चे” का प्रचार अक्सर मुस्लिमों के खिलाफ डर फैलाने के लिए किया जाता है। लेकिन NFHS-5 के आंकड़े इस मिथक को तोड़ते हैं:
कुल बहुपत्नी प्रथा: केवल 1.4% विवाहित महिलाओं ने बताया कि उनके पति की अन्य पत्नियाँ हैं। यह NFHS-3 (2005-06) के 1.9% से घटकर NFHS-4 (1.6%) और NFHS-5 में 1.4% हो गई।
समुदाय-विशिष्ट:
- हिंदू: 1.3%
- मुस्लिम: 1.9%
- ईसाई: 2.1% (सबसे अधिक)
- अन्य: 1.6%
- अनुसूचित जनजाति (ST): 2.4% (सबसे अधिक)
सच: बहुपत्नी प्रथा सभी समुदायों में कम है और घट रही है। यह धर्म से ज्यादा सामाजिक-आर्थिक कारकों (गरीबी, अशिक्षा, ग्रामीण क्षेत्र) से जुड़ी है। उच्च दर वाले क्षेत्रों में (जैसे मेघालय, ओडिशा) यह ट्राइबल समुदायों में अधिक है। चार शादियों का मिथक दुर्लभ है; ज्यादातर मुस्लिम परिवारों में एक ही पत्नी होती है।
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति?
बीजेपी और आरएसएस की रणनीति लंबे समय से हिंदुओं को “खतरे” के नाम पर एकजुट करने की रही है। पूर्णिया रैली में पीएम मोदी के बयान इसकी मिसाल हैं। वे पहले भी ऐसे बयान देते रहे हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में राजस्थान के बांसवाड़ा में उन्होंने कहा ता कि “कांग्रेस ज़्यादा बच्चे वालों को आपकी संपत्ति बांटेगी, मंगलसूत्र छीन लेगी।” यह सीधे-सीधे मुस्लिमों पर निशाना था। इससे पहले वे कई चुनावों में ‘श्मशान-कब्रिस्तान’ या ‘कपड़े से पहचान लेने’ जैसे बयान देते रहे हैं। वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो खुलेआम चुनावी रैलियों में ध्रुवीकरण कराने वाले बयान देते हैं।
हक़ीक़त ये है कि विपक्ष ने कभी घुसपैठियों को बसाने की वकालत नहीं की, लेकिन मुस्लिमों को निशाना बनाने का विरोध करना, उसका संवैधानिक दायित्व है। बीजेपी इस पर तुष्टिकरण का आरोप लगाकर मुस्लिम आबादी वृद्धि का डर फैलाती है। वह भी बिना किसी आँकड़े के। बिहार में SIR से 65 लाख नाम कटे, लेकिन घुसपैठियों की संख्या का कोई सटीक आंकड़ा नहीं। ज्यादातर नाम मृत, शिफ्टेड, या डुप्लिकेट थे। फिर भी, बीजेपी इसे घुसपैठ से जोड़ती है।
पलायन और घुसपैठ
पलायन मानव इतिहास की हक़ीक़त है। लोग बेहतर अवसरों की तलाश में माइग्रेट करते हैं। उत्तर भारतीय युवा इस समय बड़ी तादाद में युवा बेंगलुरु या पुणे जैसे शहरों में बस रहे हैं। देश छोड़कर विदेश में बसने की तो जैसे लहर ही उठी है। पिछले दिनों जिस तरह हथकड़ी-बेड़ी डालकर अमेरिका से भारतीयों को वापस भेजा गया, वह इसी का सबूत है।
बहरहाल, चाहे घुसपैठ हो या डेमोग्राफी, सरकार का कर्तव्य है कि वह तर्कसंगत और मानवीय समाधान निकाले। लेकिन इन मुद्दों को वोट बटोरने का हथियार बनाना देश को कमजोर करता है। मुस्लिम समुदाय भारत की मिट्टी में रचा-बसा है, उसको लगातार संदेह के घेरे में रखना और सांप्रदायिक नफरत फैलाना देशभक्ति नहीं, बल्कि विभाजन की राजनीति है। अफसोस कि इस अभियान का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, जो संविधान को माथे पर लगाते हैं, लेकिन उनके बयान भाईचारे की भावना को चोट पहुंचाते हैं। संविधान समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व की बुनियाद पर खड़ा है, लेकिन पीएम की जुबान बताती है कि उनके दिमाग़ में कुछ और चलता है!