असम की बीजेपी सरकार ने आधार पर एक बड़ा और विवादास्पद निर्णय लिया है। इसने 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को नए आधार कार्ड जारी करने पर रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने गुरुवार को इसकी घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता के दस्तावेज प्राप्त करने से रोकने के लिए उठाया गया है। हालांकि, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और चाय बागान श्रमिकों को इस प्रतिबंध से छूट दी गई है, जिन्हें अगले एक वर्ष तक आधार कार्ड प्राप्त करने की अनुमति होगी।

मुख्यमंत्री हिमंत सरमा ने कैबिनेट बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि असम में आधार कार्ड सैच्युरेशन स्तर तक पहुँच चुके हैं। उन्होंने कहा कि आधार कार्ड 102% तक पहुंच चुका है जो राज्य की वास्तविक जनसंख्या से अधिक है। उन्होंने बताया कि बारपेटा, धुबरी, मोरीगांव और नगांव जैसे जिलों में आधार कार्ड धारकों की संख्या अनुमानित जनसंख्या से अधिक है, जो अवैध घुसपैठ के कारण है। उन्होंने कहा कि बारपेटा में 103.74%, धुबरी में 103.48%, मोरीगांव में 101.76% और नगांव में 100.86% लोगों के पास आधार कार्ड हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा, 'हमने सीमा पर लगातार बांग्लादेशी नागरिकों को वापस धकेला है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई भी अवैध विदेशी असम में प्रवेश कर आधार कार्ड प्राप्त न कर सके और भारतीय नागरिकता का दावा न करे।' उन्होंने यह भी साफ़ किया कि यह निर्णय राज्य की जनसांख्यिकीय संरचना को संरक्षित करने और अवैध आप्रवासन को रोकने के लिए लिया गया है।

छूट और सीमित अवधि

सरकार के इस निर्णय के तहत 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को नए आधार कार्ड जारी नहीं किए जाएंगे, सिवाय इसके कि वे एससी, एसटी या चाय बागान समुदाय से हों। इन समुदायों में आधार कार्ड की पहुंच अभी 96% है, जिसका मतलब है कि 4% लोग अभी भी आधार से वंचित हैं। इन समुदायों को अगले एक वर्ष तक आधार कार्ड प्राप्त करने की अनुमति होगी। इसके अलावा अन्य समुदायों के उन लोगों के लिए, जिन्हें अभी तक आधार कार्ड नहीं मिला है, सितंबर 2025 तक आवेदन करने का एक महीने का अवसर दिया जाएगा। इसके बाद, केवल अति दुर्लभ मामलों में जिला आयुक्त की मंजूरी के बाद आधार कार्ड जारी किया जाएगा। डिप्टी कमिश्नर को यह निर्णय लेने से पहले स्पेशल ब्रांच और विदेशी न्यायाधिकरण की रिपोर्ट की जांच करनी होगी।

अवैध आप्रवासन पर कड़ा रुख

असम सरकार ने अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरमा ने बताया कि हाल ही में सात घुसपैठियों को सीमा पर वापस धकेला गया। इसके अलावा, पिछले साल अगस्त 1985 से अब तक 30,113 बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजा गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आधार कार्ड का दुरुपयोग अवैध आप्रवासी कर सकते हैं। हालांकि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे अक्सर पहचान और सरकारी योजनाओं के लिए उपयोग किया जाता है।

सरमा ने यह भी कहा कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी प्रक्रिया के दौरान 9.35 लाख लोगों के बायोमेट्रिक डेटा को लॉक कर दिया गया था, जिसे केंद्र सरकार ने अगस्त 2024 में अनलॉक करने का निर्णय लिया। इससे इन लोगों को आधार कार्ड प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

पहले से सख्त नियम

इससे पहले जून 2025 में असम सरकार ने घोषणा की थी कि वयस्कों के लिए आधार कार्ड केवल जिला आयुक्तों द्वारा जारी किए जाएंगे। इसके लिए आवेदकों को एनआरसी आवेदन रसीद नंबर और जिला आयुक्त से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट पेश करना अनिवार्य होगा। यह कदम भी अवैध आप्रवासियों को आधार कार्ड प्राप्त करने से रोकने के लिए उठाया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा, 'हमने पहले ही हमारे मौजूदा वयस्क नागरिकों को आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया पूरी कर ली है। अब हमें इस प्रक्रिया को और सख्त करना होगा ताकि इसका दुरुपयोग न हो।'

नागरिकों को होगी परेशानी?

इस निर्णय पर विवाद हो गया है। कुछ विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार संगठनों का कहना है कि यह क़दम उन वास्तविक निवासियों को परेशानी में डाल सकता है, जो किसी कारणवश पहले आधार कार्ड के लिए आवेदन नहीं कर पाए। सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने 2022 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि आधार और एनआरसी को जोड़ना अनुचित है और इससे हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सरकारी योजनाओं से वंचित होना पड़ सकता है।
असम सरकार का यह निर्णय अवैध आप्रवासन को रोकने की दिशा में एक सख्त कदम है, लेकिन इसके कार्यान्वयन और प्रभाव को लेकर कई सवाल बाकी हैं। सरकार ने साफ़ किया है कि यह नीति 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगी और सितंबर में आवेदन का अंतिम अवसर होगा।

कहा जा रहा है कि इस नीति से जहाँ एक ओर अवैध घुसपैठ पर अंकुश लग सकता है, वहीं यह उन वास्तविक निवासियों के लिए चुनौतियाँ पैदा कर सकता है, जिन्हें अभी तक आधार कार्ड नहीं मिला है।