बिहार विधानसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा हो चुकी है और इस बीच राजनीतिक दल दलितों को लुभाने के लिए तरह-तरह की घोषणाएँ कर रहे हैं। ये दल पहले के चुनावों में भी ऐसी ही घोषणाएँ करते रहे हैं, तो क्या दलितों की स्थिति सुधरी? राज्य में दलितों की स्थिति पर नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ़ दलित एंड आदिवासी ऑर्गनाइजेशन्स यानी NACDAOR ने अपनी ताजा रिपोर्ट 'बिहार: दलित क्या चाहते हैं' में बिहार के दलित समुदाय की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और मानवाधिकार स्थिति का विश्लेषण किया है। इस रिपोर्ट में दलितों की स्थिति बेहद बदतर बताई गई है। यह रिपोर्ट 2011 की जनगणना और 2023 के बिहार जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों पर आधारित है।
बिहार: चुनाव दर चुनाव दलितों को लुभाया गया, फिर एससी की ऐसी बदतर स्थिति क्यों?
- बिहार
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- 8 Oct, 2025
NACDAOR की नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बिहार में दलितों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। रिपोर्ट बताती है कि योजनाएँ और वादे सिर्फ राजनीति तक सीमित रहे।

प्रतीकात्मक तस्वीर
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में 1.65 करोड़ यानी 15.9% दलित निवास करते थे। हाल के बिहार जाति सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, राज्य की 13.07 करोड़ आबादी में से 19.65% यानी लगभग 2.57 करोड़ दलित या अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। बिहार देश का तीसरा सबसे बड़ा दलित आबादी वाला राज्य है, जहाँ भारत की कुल अनुसूचित जाति जनसंख्या का 8.5% हिस्सा है।
राज्य में 23 अनुसूचित जातियों को मान्यता प्राप्त है, जिनमें से छह प्रमुख जातियां- दुसाध (29.85%), रविदास (29.58%), मुसहर (16.45%), पासी (5.32%), धोबी (4.51%) और भुइयां (4.32%)- बिहार के 90% दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मुसहर समुदाय विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे अधिक वंचित है।