आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 2025 के मतदाता सूची पुनरीक्षण यानी एसआईआर की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धांधली और पारदर्शिता की कमी का सनसनीखेज आरोप लगाया है। पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी ने कहा कि चुनाव आयोग अपने ही वादों और आदेशों से पलट रहा है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि मतदाता सूची से 65 लाख वोटरों को हटाने के बावजूद नई ड्राफ्ट सूची में संदेह बरकरार है और यह प्रक्रिया पूरी तरह से गैर-पारदर्शी और संदिग्ध है। उन्होंने इस पर 10 बड़े सवाल उठाए हैं।

तेजस्वी यादव ने कहा, 'चुनाव आयोग ने शुरू में आश्वासन दिया था कि मतदाता सूची से हटाए गए प्रत्येक नाम को लेकर मृत्यु, स्थानांतरण, दोहराव, या लापता होने का कारण जैसी जानकारी सभी राजनीतिक दलों के साथ साझा की जाएगी। यह प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप होगी, ऐसा वादा किया गया था। लेकिन अब आयोग अपने ही वादों से मुकर रहा है।' उन्होंने आगे कहा कि आयोग द्वारा दी जा रही तथाकथित 'ASD लिस्ट' (Absent, Shifted, Dead) में केवल यह बताया गया है कि किन व्यक्तियों का नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में नहीं है, लेकिन यह साफ़ नहीं किया गया कि उनका नाम क्यों हटाया गया।
तेजस्वी ने बताया कि औसतन एक विधानसभा क्षेत्र से 25,000 से 30,000 वोटरों के नाम हटाए गए हैं। उन्होंने सवाल उठाया, '25-30 हजार की सूची में आप कैसे पता लगाएंगे कि कौन मृत है, कौन स्थानांतरित हुआ, या किसका नाम दोहराव के कारण हटाया गया? अगर चुनाव आयोग की मंशा साफ है तो उसे बूथ-वार सूची देनी चाहिए, ताकि राजनीतिक दल इन लोगों की जांच कर सकें। लेकिन आयोग ने चालाकी और साजिश के तहत न तो बूथ का नाम दिया, न वोटर का पता और न ही मतदाता का EPIC नंबर, जिससे तुलनात्मक अध्ययन और विश्लेषण संभव हो सके।'

पारदर्शिता की कमी पर सवाल

तेजस्वी ने चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि यह स्थिति 'चिंताजनक, गंभीर और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विपरीत' है। उन्होंने दावा किया कि आयोग ने पहले अपनी प्रेस विज्ञप्तियों, प्रेस कॉन्फ्रेंस, और जिला-स्तरीय रिपोर्टों में मृतक, स्थानांतरित, दोहराए गए और लापता मतदाताओं की संख्या को अलग-अलग श्रेणियों में साफ़ तौर पर दिखाया था। लेकिन अब आयोग केवल एक सामान्य सूची जारी कर रहा है, जिसमें न तो श्रेणी-वार जानकारी है और न ही नाम हटाने का कोई आधार बताया गया है। उन्होंने कहा, 
विपक्षी दलों ने बार-बार मांग की थी कि विधानसभा-वार, बूथ-वार, और हटाए गए मतदाताओं की श्रेणी-वार सूची जारी की जाए। लेकिन आयोग ने इन मांगों को अनदेखा कर एक अधकचरी सूची जारी की है, जो पूरी तरह से अपारदर्शी है।
तेजस्वी यादव
आरजेडी नेता

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से डर?

तेजस्वी ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से डर गया है और जानबूझकर पूरी जानकारी साझा नहीं कर रहा, ताकि उसकी प्रक्रिया की वैधता पर सवाल न उठें। उन्होंने कहा, 'आयोग की यह चालाकी और गैर-पारदर्शी रवैया लोकतंत्र के साथ विश्वासघात है। अगर आयोग को लगता है कि वह सही है तो उसे पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा, जिससे संदेह और गहरा हो रहा है।'

बिहार में आगामी चुनाव पर प्रभाव

तेजस्वी ने चेतावनी दी कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में भी इस तरह की गड़बड़ियाँ हो सकती हैं। उन्होंने कहा, 'यह केवल मतदाता सूची की सफाई का मामला नहीं है। यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसके तहत विपक्षी दलों के वोटरों को हटाया जा रहा है। अगर यह प्रक्रिया ऐसी ही चलती रही, तो बिहार के चुनावों में भी निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे।'

तेजस्वी के ECI से 10 सवाल

  • चुनाव आयोग ने जिन 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए हैं उससे जुड़े 10 सवाल तेजस्वी ने पूछे हैं। 
  • इन 65 लाख मतदाताओं को मृत, स्थानांतरित या अनुपस्थित घोषित करने का आधार क्या है? कौन सा दस्तावेज लिया?
  • जिन 36 लाख मतदाताओं को चुनाव आयोग स्थानांतरित या पलायन कर गया बता रहा है, उसका आधार क्या है?  
  • क्या इनकी फिजिकल वेरिफिकेशन हुई थी?
  • क्या नियम के तहत बीएलओ भौतिक सत्यापन के लिए तीन बार मतदाताओं के घर गए थे?
  • क्या बीएलओ ने भौतिक सत्यापन के बाद मतदाताओं को पावती या कोई रसीद प्राप्ति अथवा पावती दी थी?
  • सम्पूर्ण बिहार में कितने प्रतिशत मतदाताओं को पावती दी गई? क्या इसकी दर1 प्रतिशत से भी कम नहीं है?
  • क्या मतदाताओं को उनका नाम काटने से पहले कोई नोटिस या सूचना दी गई थी?
  • क्या सूची से हटाए गए इन 65 लाख मतदाताओं को अपील का मौका मिला?
  • जब आप इतने लोगों के घर गए नहीं, पावती दी नहीं, नाम काटने से पहले नोटिस दिया नहीं तो मतलब है आप निशाना बनाकर काम कर रहे हैं और लोकतंत्र को खत्म कर रहे हैं। 
  • ऐसे गणना प्रपत्रों की संख्या कितनी है जिनके साथ कोई दस्तावेज संलग्न नहीं था एवं ऐसे कितने प्रपत्र है जिनके साथ फोटो संलग्न नहीं था?

विपक्ष की मांग

  • बूथ-वार सूची: प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में हटाए गए मतदाताओं की बूथ-वार सूची दी जाए।
  • EPIC नंबर और कारण: हटाए गए प्रत्येक मतदाता का EPIC नंबर और नाम हटाने का स्पष्ट कारण बताया जाए।
  • पारदर्शी प्रक्रिया: SIR प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जाए और सभी दलों के साथ नियमित परामर्श किया जाए।
  • स्वतंत्र जांच: मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं की स्वतंत्र जांच की जाए।

चुनाव आयोग का जवाब

चुनाव आयोग पहले से ही कहता रहा है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी है। आयोग की तरफ़ से कहा गया है कि मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया मानक दिशा-निर्देशों के अनुसार की गई है। यह भी कहा गया कि सभी राजनीतिक दलों को प्रक्रिया में शामिल किया गया है और उनके प्रतिनिधियों की मौजूदगी में यह कार्य किया गया है। आयोग ने यह भी कहा कि किसी भी राजनीतिक दल को विशिष्ट शिकायतें होने पर औपचारिक रूप से आवेदन करना चाहिए और इसका समाधान किया जाएगा।

बीजेपी का पलटवार

बिहार में सत्तारूढ़ बीजेपी ने तेजस्वी के आरोपों को निराधार और राजनीति से प्रेरित करार दिया। बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा, 'आरजेडी अपनी हार की आशंका से बौखला गई है। मतदाता सूची की सफाई एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे हर बार किया जाता है। तेजस्वी यादव को अगर कोई ठोस सबूत है तो उसे सार्वजनिक करना चाहिए, न कि बेबुनियाद आरोप लगाने चाहिए।'

तेजस्वी यादव के इन आरोपों ने बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। यदि विपक्ष अपने दावों के समर्थन में ठोस सबूत पेश करता है तो यह चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर सकता है। दूसरी ओर, आयोग और सत्तारूढ़ दल इन आरोपों को राजनीतिक हथकंडा बता रहे हैं।