बिहार में SIR चरण-2 की प्रक्रिया अपने अंतिम दौर में है, लेकिन हज़ारों वोटर अभी भी मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्या चुनाव आयोग समय रहते सभी को मौका देगा?
प्रतीकात्मक तस्वीर
बिहार में विशेष गहन संशोधन यानी SIR चरण 2 की समय सीमा 1 सितंबर ख़त्म होने को है और इस बीच हजारों मतदाता अपनी सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। दूसरे चरण में ड्राफ्ट मतदाता सूची में आए मतदाताओं को अपने दस्तावेज जमा करने हैं। पहले चरण में मतदाताओं को फॉर्म भरना था और इसके बाद ड्राफ़्ट मतदाता सूची जारी की गई थी। इसमें 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले के बाद नाम जुड़ने की उम्मीद जागी, लेकिन हकीकत में इसमें दिक्कतें अभी भी काफी हैं।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने उन लोगों के लिए एक खिड़की खोली है, जिनके नाम SIR प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूची से हटा दिए गए थे। अब वोटर आधार कार्ड या 11 अन्य स्वीकृत दस्तावेजों के साथ नाम बहाल कराने के लिए आवेदन कर सकते हैं, वह भी ऑनलाइन। लेकिन जमीनी हकीकत में भ्रम और संसाधनों की कमी ने इस प्रक्रिया को मुश्किल बना दिया है। कई जगहों से ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि बीएलओ को अभी तक चुनाव आयोग से इस संबंध में कोई आदेश नहीं मिला है तो मतदाता सूची से बाहर रह गए लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि दूर-दराज के गाँवों में ख़बरों से दूर रहने वाले लोगों को इसकी जानकारी नहीं है और वैसे लोगों की इंटरनेट तक पहुँच भी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बावजूद जमीनी स्तर पर भ्रम का माहौल है। कई हटाए गए वोटर दूरदराज के इलाकों में रहते हैं, जहां इंटरनेट की पहुंच सीमित है। बूथ स्तरीय अधिकारी यानी बीएलओ कहते हैं कि उन्हें अभी तक औपचारिक निर्देश नहीं मिले हैं। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी चंपारण के एक बीएलओ ने कहा, 'चुनाव आयोग के आधिकारिक आदेश जारी करने तक हम आधार को मान्य नहीं कर सकते।' भोजपुर की बीएलओ सुचित्रा सिन्हा ने कहा कि समय सीमा बहुत छोटी है। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'चुनाव अधिकारियों को समय सीमा बढ़ानी चाहिए। एक हफ्ते में सभी हटाए गए लोगों से आधार जुटाना मुश्किल है।'
लाखों नाम गायब
एसआईआर प्रक्रिया के तहत नाम हटाने का पैमाना चौंकाने वाला है। पश्चिम चंपारण में 1.91 लाख नाम काट दिए गए, जिससे मतदाता संख्या 27.60 लाख से घटकर 25.69 लाख रह गई। अधिकारियों के अनुसार, 70000 वोटरों ने निवास स्थान बदल लिया था, जबकि 20000 नाम डुप्लिकेट थे। इसी तरह, भोजपुर और आरा जैसे जिलों में भी हजारों नाम गायब हो गए हैं। सबसे ज़्यादा नाम पटना और मधुबनी में हटाए गए हैं।
ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए लोगों को सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले से अपनी पहचान साबित करने का मौक़ा तो मिला, लेकिन उनके सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं। पश्चिम चंपारण के दीवाकर शर्मा की पत्नी दीप्ति पिछले दो चुनावों में बिना किसी परेशानी के वोट डाल चुकी हैं। लेकिन अब दीप्ति का नाम मतदाता सूची से गायब हो गया है, और दंपति के पास नाम बहाल कराने के लिए महज एक हफ्ता बचा है। शर्मा ने 'टीओआई' को बताया, 'बूथ लेवल ऑफिसर ने मुझे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बारे में बताया, लेकिन वह लिखित आदेशों का इंतजार कर रहा है।' एक व्यापारी धनंजय सोनी की पत्नी रंजना का नाम भी सूची से गायब है और वह भी ऐसी ही परेशानी की बात कहते हैं।
ऐसी दिक्कतें राज्य में सभी जगहों पर हैं। वोटर दौड़-भाग में लगे हैं। कुछ जगहों पर बीएलओ कार्यालयों के बाहर लंबी कतारें लगी हैं, जबकि दूरदराज के गांवों में लोग दस्तावेज जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
ऑनलाइन आवेदन की सुविधा होने के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्टफोन और इंटरनेट की कमी बाधा बन रही है। चुनाव आयोग ने वोटरों को 11 स्वीकृत दस्तावेजों के साथ आवेदन करने की अनुमति दी है, लेकिन बीएलओ स्तर पर अमल में देरी हो रही है।
पार्टियां मदद नहीं कर रहीं?
हटाए गए नामों को लेकर राजनीतिक उदासीनता भी एक बड़ा मुद्दा है। मतदाता सूची से हटाए गए नामों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी शुक्रवार को एक तरह से राजनीतिक दलों पर ठीकरा फोड़ा। इसने पूछा था कि विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के तहत मतदाताओं को फॉर्म भरने के दौरान राजनीतिक दलों के बीएलए क्या कर रहे थे। अदालत ने पूछा था कि ये बीएलए मतदाताओं की मदद करने के बजाय निष्क्रिय क्यों पड़े रहे।
मतदाता सूची नियमों के अनुसार, पार्टियों को बूथ लेवल एजेंट नियुक्त करने और हटाए गए वोटरों की पहचान कर दावे दाखिल करने की जिम्मेदारी है। लेकिन बीएलओ कहते हैं कि सहयोग न के बराबर है। आरा के बीएलओ एम सफीर अली ने टीओआई से कहा, 'कम ही बीएलए फॉर्म जमा करने में रुचि ले रहे हैं। कुछ को यह भी नहीं पता कि उन्हें नियुक्त किया गया है।' आरा के बाबू बाजार के एक अन्य बीएलओ ने पार्टियों पर आरोप लगाया, 'वे शोर मचाते हैं लेकिन कोई मदद नहीं देते।' राजनीतिक दलों ने इन आरोपों का खंडन किया है। भोजपुर जिले में 23 अगस्त तक नौ दावे दाखिल करने का दावा करते हुए सीपीआई (एमएल) के चंदन कुमार ने कहा, 'हमारी पार्टी लगातार हटाए गए नामों की ओर ध्यान दिला रही है।' आरजेडी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने सरकार पर वोटरों को हाशिए पर धकेलने का आरोप लगाया है, जबकि सत्ताधारी एनडीए ने इसे प्रशासनिक प्रक्रिया बताया है।
यह दौड़-भाग बिहार की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रही है। जानकारों का मानना है कि यदि समय सीमा नहीं बढ़ाई गई तो लाखों वोटर आगामी चुनावों से वंचित रह सकते हैं। बीएलओ और सामाजिक कार्यकर्ता चुनाव आयोग से औपचारिक निर्देश जारी करने और समय सीमा विस्तार की मांग कर रहे हैं।
यदि यह प्रक्रिया सुचारू रूप से पूरी नहीं हुई, तो बिहार में वोटरों के विश्वास पर असर पड़ सकता है। फिलहाल, 1 सितंबर की समय सीमा के साथ तनाव चरम पर है। क्या चुनाव आयोग समय बढ़ाएगा?