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झारखंड में 77% के बाद छत्तीसगढ़ में आरक्षण 81% करने की तैयारी?

क्या 50 फ़ीसदी आरक्षण की सीमा के अब कोई मायने नहीं रह गए हैं? कुछ दिन पहले ही झारखंड विधानसभा ने एक विशेष सत्र के दौरान राज्य में आरक्षण को बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने वाले विधेयक को अपनी मंजूरी दी है और अब छत्तीसगढ़ में ऐसी ही तैयारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार 1 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान एसटी/एससी और अन्य श्रेणियों के लिए जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए एक क़ानून बनाने की योजना बना रही है।

छत्तीसगढ़ में यह तैयारी तब चल रही है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण पर मुहर लगाते हुए 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा पर अपना रुख बदलने का संकेत दिया है। तब इसने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा के बाद भी आरक्षण देने में कोई दिक्कत नहीं है। इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अब आरक्षण के लिए वो पुरानी मांगें फिर से नहीं उठेंगी जिसके लिए कभी भारी हिंसा तक हो चुकी है? कई राज्यों में आरक्षण की ऐसी मांगें की जाती रही हैं, लेकिन 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा का हवाला देते हुए उनकी मांगों को ठुकरा दिया जाता रहा है।

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छत्तीसगढ़ में हाल ही में उच्च न्यायालय ने 58% तक कोटा ले जाने के 2012 के एक सरकारी आदेश को ग़लत बताते हुए कहा था कि 50% से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है। इस फ़ैसले से उत्पन्न गतिरोध को हल करने के लिए ही विशेष सत्र बुलाया गया है। टीओआई ने रिपोर्ट दी है कि इसी में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की योजना सामने आ सकती है। यदि सरकार अपनी इस योजना को लागू करती है तो छत्तीसगढ़ में आरक्षण 81% तक हो सकता है।

अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, संकेत हैं कि भूपेश बघेल सरकार एसटी के लिए 32%, एससी के लिए 12% और ओबीसी के लिए 27% आरक्षण पर विचार कर रही है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा के साथ यह आरक्षण 81% तक हो जाएगा। जबकि 2012 के आदेश में आदिवासियों के लिए 32%, अनुसूचित जाति के लिए 12% और ओबीसी के लिए 14% आरक्षण दिया गया था। हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद आदिवासियों के लिए कोटा 20% है, अनुसूचित जाति का कोटा 16% हो गया है और ओबीसी आरक्षण वही है जो अविभाजित मध्य प्रदेश में था।

वैसे, ईडब्ल्यूएस पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या मराठा, जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की माँग ज़ोर नहीं पकड़ेगी? 
जिस तरह मराठा आरक्षण के लिए हिंसा की हद तक चले गए थे उसी तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं। जाट और पाटीदार आंदोलन में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। कई दूसरे राज्यों में दूसरी जातियाँ भी आरक्षण मांगती रही हैं।

इन राज्यों में झारखंड भी शामिल है। इसी झारखंड में क़रीब 10 दिन पहले एक विशेष सत्र में विधानसभा ने आरक्षण अधिनियम, 2001 में एक संशोधन पारित किया है, जिसमें एसटी, एससी, ईबीसी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी ईडब्ल्यूएस के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को वर्तमान 60 प्रतिशत से बढ़ाने की बात की गई है। प्रस्तावित आरक्षण में अनुसूचित जाति समुदाय के स्थानीय लोगों को 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 28 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी को 15 प्रतिशत, ओबीसी को 12 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 फ़ीसदी आरक्षण मिलेगा।

chhattisgarh planning population-ratio reservation may be upto 81% - Satya Hindi

तो सवाल है कि क्या आगे अब आरक्षण की मांग और जोर पकड़ेगी? पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के उस आरक्षण को रद्द कर दिया था जिसको बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा समुदाय को 12-13 फ़ीसदी आरक्षण देने को हरी झंडी दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनी है।

जाट अपने समुदाय के लिए ओबीसी का दर्जा और आरक्षण माँग रहे हैं। क़रीब पाँच साल पहले हरियाणा में जाट आरक्षण की माँग को लेकर हिंसक आंदोलन हुआ था। आगजनी हुई थी। महिलाओं से गैंगरेप के मामले भी आए थे। आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में 30 लोग मारे गए थे जबकि लगभग 350 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। केंद्र सरकार को इस आग को बुझाने के लिए सेना उतारनी पड़ी थी।

इन घटनाओं के बाद जाटों की मांग पूरी नहीं हुई। इसके बाद भी वे लगातार मांग करत रहे हैं। वे कहते रहे हैं कि जाट समाज के प्रमुख संगठनों, विधायकों, सांसदों व मंत्रियों की मौजूदगी में जाट समाज को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया गया है। 

गुर्जर समुदाय ख़ुद को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा की माँग करता रहा है। राजस्थान में 2007 और 2008 में हिंसक आंदोलन में कई लोग मारे गए थे।

बाद में राज्य सरकार ने राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम- 2019 के तहत गुर्जर सहित पाँच जातियों गाड़िया लुहार, बंजारा, रेबारी व राइका को एमबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग में पाँच प्रतिशत विशेष आरक्षण दे दिया था। हालाँकि इसके बाद भी और ज़्यादा आरक्षण की माँग होती रही है। कई बार यह आंदोलन भी हिंसक हुआ। 

हार्दिक पटेल अब जिस बीजेपी के साथ हो लिए हैं वे एक समय बीजेपी शासित गुजरात में पाटीदार समुदाय के आरक्षण के लिए हाथों में झंडा उठाए चल रहे थे। उन्होंने बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था।

हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति अपने समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने और आरक्षण की माँग करती रही है। हालाँकि पटेल समुदाय आरक्षण की मांग राज्य में दो दशक से ज़्यादा समय से कर रहा है। जुलाई 2015 में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। आंदोलन जब तक शांत हुआ तब तक करोड़ों रुपये इसकी भेंट चढ़ चुके थे। उस हिंसा को लेकर हार्दिक पटेल के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज की गई थी। इन घटनाओं के बाद भले ही आंदोलन कमजोर पड़ गया, लेकिन आरक्षण की मांग उनकी लगातार बनी हुई है।

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आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय लगातार ओबीसी के तहत आरक्षण की माँग करता रहा है। साल 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलुगू देशम पार्टी ने राज्य की सत्ता में आने पर कापू समुदाय को पाँच फ़ीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। फ़रवरी 2016 में कापू आरक्षण आंदोलन की मांग उग्र और हिंसक हो गई थी। दिसंबर 2017 में इसके लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। हालाँकि केंद्र सरकार ने उस पर सहमति नहीं जताई थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कापू समुदाय काफ़ी ताक़तवर माना जाता है। कापू एक किसान जाति है। आंध्र प्रदेश में इसे ऊँची जातियों में रखा गया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब दूसरी जातियाँ भी इसी आधार पर अपने लिए आरक्षण नहीं माँगेंगी और ऐसे में क्या बवाल नहीं मचेगा?

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क़मर वहीद नक़वी
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