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मालिक-नौकर के भरोसे-बलिदान को दिखाती है 'दरबान'

फ़िल्म- दरबान

डायरेक्टर- बिपिन नाडकर्णी

स्टार कास्ट- शारिब हाशमी, शरद केलकर, रसिका दुग्गल, फ्लोरा सैनी, हर्ष छाया

स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म- ज़ी 5

रेटिंग- 3.5/5

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएँ सालों से निर्देशकों की पसंद रही हैं और उनकी कई रचनाओं पर फ़िल्में भी बन चुकी हैं। अब काफ़ी अरसे बाद फिर से दर्शकों के बीच रवीन्द्रनाथ टैगोर की शॉर्ट कहानी 'खोकाबाबर प्रत्यवर्तन' (छोटे उस्ताद की वापसी) पर आधारित फ़िल्म 'दरबान' बनी है। निर्देशक बिपिन नाडकर्णी द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'दरबान' ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म ज़ी 5 पर रिलीज़ हो चुकी है। इस कहानी पर साल 1960 में उत्तम कुमार को लेकर बांग्ला फ़िल्म भी बन चुकी है और इसके बाद अब इसी कहानी पर आधारित हिंदी भाषा में 'दरबान' रिलीज़ हुई है। फ़िल्म में एक ज़मींदार और उनके वफ़ादार नौकर की कहानी को दिखाया गया है और इसमें लीड रोल में शारिब हाशमी, शरद केलकर, रसिका दुग्गल और फ्लोरा सैनी हैं। तो आइये जानते हैं कि क्या है फ़िल्म की कहानी।

ख़ास ख़बरें

कहानी 1961 की है, जहाँ ज़मींदार नरेंद्र बाबू (हर्ष छाया) अपने परिवार के साथ धनबाद में रहता है और उसके बेटे अनुकूल (शरद केलकर) की देखभाल रायचंद (शारिब हाशमी) करता है। रायचंद और नरेंद्र बाबू के बीच मालिक-नौकर जैसा नहीं बल्कि दोस्त जैसा रिश्ता है और वो उनपर काफी भरोसा करता है। किसी वजह से नरेंद्र बाबू को सब कुछ छोड़कर शहर जाना पड़ता है और रायचंद भी अपने गाँव लौट जाता है और वो अपनी पत्नी भूरी (रसिका दुग्गल) के साथ रहता है। अब अनुकूल बड़ा हो चुका है और वो अपनी पत्नी चारुल (फ्लोरा सैनी) और 2 साल का बेटे सिद्धू के साथ रहता है। अनुकूल रायचंद से मिलने उसके गाँव पहुँचता है और उसे अपने बेटे की देखभाल करने के लिए बुला लेता है।

रायचंद सिद्धू की देखभाल भी करने लगता है लेकिन अचानक सिद्धू ग़ायब हो जाता है। काफ़ी खोज के बाद भी बच्चा नहीं मिलता और इसके बाद सभी की ज़िंदगी बदल जाती है। अब कहानी में जानने वाली बात यह है कि क्या रायचंद ने सिद्धू को गायब कर दिया? सिद्धू कहाँ चला गया, वो मिलेगा भी या नहीं? क्या अनुकूल रायचंद को माफ कर देगा? यह सबकुछ जानने के लिए आपको फ़िल्म 'दरबान' ज़ी 5 पर देखनी पड़ेगी। फ़िल्म की अवधि सिर्फ़ डेढ़ घंटे की है।

darbaan film review - Satya Hindi

निर्देशन

नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित मराठी निर्देशक बिपिन नाडकर्णी ने फ़िल्म 'दरबान' से हिंदी सिनेमा में क़दम रखा है। उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित फ़िल्म को बेहद सादगी और भाव के साथ पर्दे पर पेश किया है और हर एक छोटी चीज का ख्याल रखा है। मालिक और नौकर के बीच दिखाये गये रिश्ते के हर सीन में इमोशन्स को भी काफ़ी अच्छे से पेश किया गया है। साथ ही फ़िल्म में डाले गए इफेक्ट्स और उसका बैकग्राउंड म्यूजिक भी कमाल का है। 'दरबान' के गानों की बात करें तो फ़िल्म के लगभग सभी गाने अच्छे हैं। ख़ास तौर पर ‘दिल भरया...’ और ‘बहती सी ज़िंदगी…’ गाना काफ़ी अच्छा है। 

एक्टिंग

एक्टिंग की बात करें तो शारिब हाशमी ने बेहतरीन एक्टिंग की है। शारिब इसके पहले भी कई फ़िल्मों और सीरीज़ में नज़र आ चुके हैं और अब 'दरबान' में उन्होंने अपनी ज़बरदस्त और रियलिस्टिक एक्टिंग से उनके किरदार में जान डाल दी। शरद केलकर के किरदार में काफ़ी ठहराव है और उन्होंने अपनी बढ़िया एक्टिंग से इसे पर्दे पर अच्छे से पेश किया है। हमेशा से ग्लैमरस लुक में नज़र आईं फ्लोरा सैनी ने फ़िल्म में काफ़ी अच्छी एक्टिंग की है। रसिका दुग्गल का रोल काफ़ी छोटा था लेकिन उनकी दमदार एक्टिंग एक बार फिर से कमाल कर गई। बाक़ी स्टार्स ने काफ़ी अच्छा काम किया और ख़ास तौर पर बच्चों ने बेहतरीन काम किया है।

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फ़िल्म 'दरबान' बेहद ही इमोशनल फ़िल्म है, इसमें ज़रा भी मिर्च-मसाला आपको नहीं मिलेगा। अमीर मालिक और ग़रीब नौकर के रिश्ते के बीच भरोसा और बलिदान को इसमें दिखाया गया है। 'दरबान' की कहानी 'काबुलीवाला' की याद दिलाती है, जिसमें एक ग़रीब व्यक्ति और अमीर घराने के बच्चे के रिश्ते से इंसान की भावनाओं को टटोला गया है। फ़िल्म में कई अच्छी चीजें हैं तो थोड़ी कमी भी है। इसमें कई दृश्य को काफ़ी जल्दी में दिखाया गया है। शरद केलकर, शारिब हाशमी और रसिका दुग्गल के बीच के दृश्य को थोड़ा सा और दिखाना चाहिये था, इससे कहानी को थोड़ी और गहराई मिलती। इसके अलावा कुछ स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया है, जिनकी ज़रूरत नहीं थी। कुल मिलाकर बात करें तो फ़िल्म 'दरबान' एक अच्छी फ़िल्म है और आप इसे एक बार देख सकते हैं। अगर आप एक्शन, ग्लैमर और मसाला फ़िल्में देखना पसंद करते हैं तो आपको यह फ़िल्म पसंद नहीं आयेगी।

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दीपाली श्रीवास्तव
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