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नाटू-नाटू की सफलता और अकादमी अवॉर्ड में भारत का सफर

भारतीय फिल्म उद्योग के लिए आज बड़ा दिन है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार है जब उसे एक साथ दो ऑस्कर अवॉर्ड एक साथ मिले हों। दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री जहां हर साल सैकड़ों फिल्में बनती हों उनमें से किसी एक को अवॉर्ड मिलना अहमियत तो रखता है।
भारत के हिस्से यह खुशी आई है आऱआरआर फिल्म के गाने नाटू-नाटू और एक डॉक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ की वजह से। भारत की तरफ से इस साल ऑस्कर के लिए तीन नामांकन भेजे गए थे, जिसमें से दो को अवॉर्डमिलना बड़ी सफलता मानी जा रही है।
नाटू-नाटू से पहले भी भारत को ऑस्कर अवॉर्ड मिलते रहे हैं। लेकिन इनकी संख्या इतनी कम है कि इन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है। इसलिए नाटू-नाटू और द एलिफेंट व्हिस्परर्स का जश्न तो बनता है। नाटू-नाटू को जो अवॉर्ड मिला है वो बेस्ट ऑरिजिनल गाने की कैटेगरी में मिला है। इससे इसकी अहमियत और भी ज्यादा बढ़ जाती है।
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ऑस्कर से पहले नाटू-नाटू को गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड भी मिल चुका है। अंतराष्ट्रीय स्तर के दो अवॉर्ड मिलना गाने की लोकप्रियता को दर्शाते हैं।
नाटू-नाटू से पहले भारत को जो ऑस्कर मिला था वह था फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के गाने ‘जय हो’ के लिए जिसे एआर रहमान ने कंपोज किया था। यह पहली बार था जब भारत की किसी फिल्म के किसी भाग को ऑस्कर से सम्मानित किया गया था। स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म के ‘जय हो’ गाने को दो ऑस्कर एक बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग और दूसरा इसी गाने के लिए बेस्ट ओरिजिनल स्कोर का ऑस्कर मिला था।
‘जय हो’ गाने के लिए एआर रहमान के अलावा रेसुल पुकुट्टी को साउंड डिजाइनिंग और साउंड एडिटिंग के लिए तथा गुलजार को लिरिक्स के लिए अवॉर्ड मिल चुका है।
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को सबसे पहला ऑस्कर बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन के लिए भानू अथैया को मिला था। भानू अथैया ने बेन किंग्सले की फिल्म गांधी का कॉस्ट्यूम डिजाइन किया था।
भारत को अवॉर्ड भले ही कम मिले हों लेकिन यहां की फिल्में समय-समय पर अकादमी अवॉर्ड के लिए नामांकित होती रही हैं। मदर इंडिया भारत की पहली फिल्म थी जो ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नामांकित हुई थी। 1957 में रिलीज हुई इस फिल्म में नरगिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राजकुमार जैसे मंझे हुए कलाकारों ने अभिनय किया था। हालांकि फिल्म अवॉर्ड पाने में नाकामयाब रही थी, विजेता के लिए होने वाले चुनाव में मदर इंडिया महज एक वोट से अवॉर्ड पाने से चूक गई थी।
उस साल विदेशी फिल्मों की श्रेणी में जिस फिल्म को ऑस्कर मिला था, वह थी फैडरिको फैलिनी निर्देशित इतालवी फिल्म ‘नाईट ऑफ कैबिरिया’।
भारत की तरफ से मदर इंडिया के अलावा सिर्फ सलाम बॉम्बे और लगान ही अभी तक अकादमी अवॉर्ड में अपनी जगह बना पाने में कामयाब रही है।
मीरा नायर द्वारा मुंबई की झोपड़- पट्टी के के जीवन पर पर्दे पर दिखाती फिल्म सलाम बॉम्बे को भारत की तरफ से आधिकारिक रूप से ऑस्कर अवॉर्ड के लिए भेजा गया था। सलाम बॉम्बे उस साल विदेशी भाषा की पांच सर्वश्रेठ फिल्मों में जगह बनाने में कामयाब रही थी।  
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सलाम बॉम्बे के बाद जो एक और फिल्म ऑस्कर के लिए नामांकित की गई थी वह थी लगान, आमिर खान अभिनीत इस फिल्म ब्रिटिश कालीन लगान व्यवस्था को फिल्म में दर्शाया गया था। अभी तक भारत की कोई भी फिल्म ऑस्कर अवॉर्ड जीतने में कामयाब नहीं हुई है।  
भारत की तरफ से सत्यजीत रे ही इकलौते निर्देशक हैं जिन्हें अकादमी अवॉर्ड का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला है।
नाटू-नाटू और ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ की सफलता के बाद उम्मीद की जा रही है कि अंतर्राष्ट्रीय अवॉर्ड में भारत की भागीदारी बढ़ेगी। क्योंकि भारत के फिल्म उद्योग के आकार के हिसाब से यह सफलता बहुत छोटी है।
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क़मर वहीद नक़वी
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