गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने मंगलवार को विवाहेत्तर संबंधों या एडल्टरी को फिर से भारतीय न्याय संहिता के दायरे में लाने की सिफारिश की है। संसदीय स्थायी समिति ने केंद्र सरकार को भेजे अपने प्रस्ताव में कहा है कि एडल्टरी को फिर से अपराध बनाया जाना चाहिए, क्योंकि विवाह एक पवित्र संस्था है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक संसदीय स्थायी समिति ने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भारतीय न्याय संहिता विधेयक पर अपनी रिपोर्ट में ये सिफारिशें की है। गृहमंत्री अमित शाह ने सितंबर में भारतीय न्याय संहिता विधेयक पेश किया था। संसदीय समिति ने एडल्टरी के साथ ही होमोसेक्सुएलिटी को भी अपराध के दायरे में लाने की सिफारिश की है।
गृह मामलों की संसदीय समिति ने अपनी इस रिपोर्ट में यह भी तर्क दिया गया है कि संशोधित व्यभिचार कानून को "जेंडर न्यूट्रल" अपराध माना जाना चाहिए। इस तरह के अपराध में दोनों पक्षों पुरुष और महिला को समान रूप से इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।
संसदीय समिति की इस रिपोर्ट को अगर केंद्र सरकार मंजूर कर लेती है तो यह सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ के 2018 में दिए उस ऐतिहासिक फैसले के उलट होगा जिसमें कहा गया था कि शादी के बाहर यौन संबध यानी एडल्टरी अपराध नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए।
यह संसदीय समिति केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सितंबर में संसद में पेश किए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और एविडेंस एक्ट की जगह लेने वाले तीन विधेयकों पर विचार के लिए बनाई गई थी।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को मजबूत करने के लिए लोकसभा में इन तीन बिलों को पेश किया था। इन्हें पेश करते हुए गृहमंत्री ने दावा किया कि इनका मुख्य मकसद न्याय प्रक्रिया को तेज करना है।
बीते 27 अक्टूबर को इस संसदीय समिति की बैठक हुई थी, लेकिन ड्राफ्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया था। कुछ विपक्षी सदस्यों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए समिति ने ड्राफ्ट पर और अध्ययन के लिए समय मांगा था।
पी चिदंबम ने इस सिफारिश पर आपत्ति जताई
इस समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज लाल से कांग्रेस नेता पी चिदंबरम समेत कई विपक्षी सांसदों ने डॉफ्ट पर फैसला लेने के लिए दिए गए समय को तीन माह बढ़ाने का आग्रह किया था। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस सांसद पी चिदंबम ने इस सिफारिश पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि राज्य को एक कपल की निजी जिंदगी में झांकने का कोई अधिकार नहीं है।
चिदंबरम ने विधेयक को लेकर तीन "मौलिक आपत्तियां" उठाई थीं। जिसमें यह दावा भी शामिल था कि सभी तीन बिल "मोटे तौर पर मौजूदा कानूनों की कॉपी और पेस्ट" हैं।
वहीं समिति की इस सिफारिश पर कई राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनावी लाभ के लिए इन विधेयकों को जल्दबाजी में उछालना सही नहीं है। इन पर काफी सोच समझ कर निर्णय लेना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था एडल्टरी अपराध नहीं
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि एडल्टरी अपराध नहीं है। कोर्ट के इस फैसले के बाद एडल्टरी अपराध के दायरे से बाहर हुआ था। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने एडल्टरी पर ऐतिहासिक फैसला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एडल्टरी कोई अपराध नहीं हो सकता और नहीं होना चाहिए।हालांकि बेंच ने कहा कि एडल्टरी तलाक के लिए आधार हो सकता है। तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने यह कहते हुए तर्क दिया था कि 163 साल पुराना, औपनिवेशिक काल का कानून "पति पत्नी का स्वामी है" की अवैध अवधारणा का पालन करता है।
अपनी तीखी टिप्पणियों में शीर्ष अदालत ने कानून को "पुराना", "मनमाना" और "पितृसत्तात्मक" कहा था। अदालत ने कहा था कि यह एक महिला की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी प्रगतिशील फैसला माना जाता है। विभिन्न कानूनविद्धों, महिला अधिकार से जुड़े संगठनों और सामाजिक सुधारों से जुड़े लोगों ने इस फैसले की काफी तारीफ की थी।
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