बीजेपी की हर संभव कोशिश यही है कि किसी भी तरह दिल्ली का विधानसभा चुनाव नागरिकता संशोधन क़ानून के मुद्दे पर हो जाए।
शायद बीजेपी के नेताओं को ऐसा लग रहा था कि उन्हें दिल्ली में ज्यादा कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं है। इसलिए कि उनके सामने ऐसे कई मुद्दे थे जिनके आधार पर वे जीत की आस लगाए बैठे थे।
सबसे पहले तो उन्हें यही लग रहा था कि लोकसभा की सातों सीटें जीतने के बाद वे आसानी से विधानसभा चुनाव भी जीत जाएंगे। वे भूल गए थे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली में यही नतीजे आए थे लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने बीजेपी को सिर्फ तीन सीटों पर समेट दिया था और कांग्रेस का तो सूपड़ा ही साफ कर दिया था। इसके अलावा बीजेपी को यह उम्मीद थी कि कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाने का इतना बड़ा काम हुआ है कि इस मुद्दे पर तो अब लोकसभा का 2024 का चुनाव भी जीता जा सकता है लेकिन वह मुद्दा भी कहीं नजर नहीं आया। खासतौर पर इस मुद्दे पर हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव हुए तो जनता ने यह जता दिया कि लोकसभा चुनाव के लिए तो यह मुद्दा हो सकता है लेकिन विधानसभा चुनाव का एजेंडा कुछ और होता है।
‘आप’ के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल को यह पता था कि अगर दिल्ली में चुनाव दिल्ली के मुद्दों पर हुए तो फिर उन्हें कोई नहीं हरा सकता। इसलिए उन्होंने ताबड़तोड़ इतनी घोषणाएं कर दीं और कोशिश की कि दिल्ली का चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों के इर्द-गिर्द न जा पाए।
अब बीजेपी की हर संभव कोशिश यही है कि किसी भी तरह दिल्ली का चुनाव नागरिकता संशोधन क़ानून के मुद्दे पर हो जाए। पिछले तीन दिनों में गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली में कई रैलियां कर चुके हैं। नए अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तो उम्मीदवारों के चुनाव कार्यालयों के उद्घाटनों के छोटे मौक़े पर भी जा रहे हैं। आरएसएस ने दिल्ली में ड्राइंग रूम मीटिंगों की रणनीति बनाई है। हर रैली में, हर सभा में और हर ड्राइंग रूम मीटिंग में बस एक ही मुद्दा उठाने की कोशिश की जा रही है और वह है नागरिकता संशोधन क़ानून।
इस क़ानून के रास्ते वोटरों में एक सीधा विभाजन करने की कोशिश हो रही है। बीजेपी का शायद यह सोचना है कि अगर उसे धार्मिक उन्माद में वोट मिलते हैं तो फिर केजरीवाल की मुफ्त वाली योजनाएं धरी की धरी रह जाएंगी। केजरीवाल को भी इसकी चिंता है। इसीलिए वह अब तक इस मुद्दे पर नहीं बोल रहे थे लेकिन उन्हें यह भी डर है कि अगर खुलकर सामने नहीं आए तो फिर मुसलिम वोटर भी उसी तरह हाथ से निकल सकते हैं जिस तरह लोकसभा चुनावों में निकले थे।
कांग्रेस खुलकर शाहीन बाग़ समेत नागरिकता क़ानून के विरोध में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो रही है। अगर दिल्ली में मुसलिम वोटर कांग्रेस के पक्ष में चला गया तो कांग्रेस भले ही नहीं जीते लेकिन लोकसभा चुनाव की तरह आम आदमी पार्टी को मात ज़रूर मिल सकती है।