छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर की है, जिसमें 2020 के दिल्ली दंगों के कथित बड़े साजिश मामले में उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया गया था। यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत दर्ज है, जिसमें शरजील इमाम सहित कई आरोपी दंगों के कथित मास्टरमाइंड बताए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका अभी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं की गई है।

शरजील इमाम को 2020 में गिरफ़्तार किया गया और ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत देने से इनकार कर दिए जाने के बाद उनकी बेल याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में तीन साल से लंबित थी। अब हाईकोर्ट ने उनको जमानत देने से इनकार कर दिया है। शरजील के वकील ने कहा कि इससे पहले सात डिवीजनल बेंचों के पास 62 बार सुनवाई के लिए केस सूचीबद्ध किया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की डिवीजन बेंच ने 2 सितंबर को इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद सहित नौ आरोपियों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अदालत ने फैसले में कहा कि संविधान नागरिकों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन और आंदोलन का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार निरपेक्ष नहीं है। यदि प्रदर्शनों के नाम पर साजिशपूर्ण हिंसा की जाती है, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने फैसले में क्या कहा?

हाईकोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में साफ़ किया कि फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों की घटना कोई सहज हिंसा नहीं थी, बल्कि यह एक 'पूर्वनियोजित साजिश' थी। अदालत ने कहा कि इमाम और उमर खालिद जैसे आरोपियों की भूमिका को 'हल्के में नहीं लिया जा सकता'। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इमाम ने भड़काऊ भाषण दिए थे, जो मुस्लिम समुदाय को बड़े पैमाने पर उकसाने वाले थे। अदालत ने यह भी कहा कि समाज की सुरक्षा, पीड़ितों और उनके परिवारों के हितों को ध्यान में रखते हुए जमानत पर विचार किया जाना चाहिए।

अदालत ने ट्रायल में देरी और जेल में बिताए गए समय को जमानत का आधार मानने से इंकार कर दिया। बेंच ने टिप्पणी की कि 'ट्रायल में देरी का आधार सभी मामलों में सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं होता।

जमानत का विवेकाधिकार प्रत्येक मामले के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।' इसके अलावा, अदालत ने अन्य सह-आरोपियों जैसे देवांगना कलीता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को पहले जमानत मिलने के आधार पर समानता की मांग को भी खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, 'इमाम और खालिद की भूमिका इन सह-आरोपियों से अलग है, जैसा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से लगता है।'

एक अन्य बेंच ने तसलीम अहमद की जमानत याचिका को भी खारिज कर दिया था। ये सभी याचिकाएं 2022 से 2024 के बीच दायर की गई थीं और 9 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा गया था।

2020 दिल्ली दंगे

फरवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाकों में हुए दंगों ने पूरे देश को हिला दिया था। नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क उठी। इन दंगों में 53 लोग मारे गए, जबकि 700 से अधिक घायल हुए। दिल्ली पुलिस के विशेष सेल ने एफआईआर दर्ज की, जिसमें आईपीसी की धाराओं के अलावा यूएपीए की धारा 13 के तहत आरोप लगाए गए हैं। इसमें आपराधिक साजिश, राजद्रोह, समूहों के बीच शत्रुता भड़काना, सार्वजनिक उपद्रव पैदा करने वाले बयान और देश की संप्रभुता, एकता या क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल उठाने जैसे आरोप शामिल हैं।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस हिंसा का उद्देश्य देश को धार्मिक आधार पर बांटना और वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करना था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा था, 'यह कोई साधारण दंगा का मामला नहीं है। आरोपी कानून के खिलाफ विरोध नहीं कर रहे थे, बल्कि कुछ दुष्ट योजना रच रहे थे।' उन्होंने इमाम के भाषणों का हवाला देते हुए कहा कि इनका इरादा राष्ट्र को धार्मिक आधार पर विभाजित करना था।

शरजील इमाम आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र और जेएनयू के पूर्व पीएचडी स्कॉलर हैं। इनको 28 जनवरी 2020 को बिहार के जहानाबाद से गिरफ्तार किया गया था। वह तब से तिहाड़ जेल में बंद हैं, यानी पांच साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में हैं। इमाम ने सभी आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि उनके भाषणों या व्हाट्सएप चैट्स में कभी हिंसा की अपील नहीं की गई। उनके वकील ने तर्क दिया कि इमाम का दंगों के स्थान, समय या अन्य आरोपी उमर खालिद से कोई सीधा संबंध नहीं है।

शरजील इमाम पर आरोप

दिल्ली पुलिस ने जोर देकर कहा कि दंगे सहज नहीं थे, बल्कि पूर्वनियोजित थे। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए कहा कि आरोपी सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध के बहाने कुछ बड़ा षड्यंत्र रच रहे थे। उन्होंने कहा, 'यदि आप राष्ट्र के खिलाफ कुछ करते हैं, तो आपको बरी होने तक जेल में रहना चाहिए।' पुलिस ने दावा किया कि एक पुलिस अधिकारी की मौत और 140 से अधिक पुलिसकर्मियों के घायल होने से यह साफ है कि यह संगठित अपराध था। दूसरी ओर, इमाम के वकील ने लंबे हिरासत काल को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि ट्रायल की धीमी गति के कारण जेल में रखना अन्यायपूर्ण है। 

SC में अपील से क्या होगा?

यह अपील न केवल इमाम के लिए बल्कि पूरे मामले के अन्य आरोपियों के लिए भी अहम है। जेएनयू छात्र संघ यानी जेएनएसयू ने पहले उमर खालिद की जमानत रद्द होने के बाद मार्च निकाला था। कार्यकर्ता समूहों ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट अब इस पर क्या फैसला लेता है, यह देखना दिलचस्प होगा, खासकर जब यूएपीए जैसे कठोर कानूनों के तहत जमानत मिलना दुर्लभ होता है।