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एप्पल अलर्ट के बाद पत्रकारों के फोन पर पेगासस पाया गया: रिपोर्ट

हाल ही में पत्रकारों को पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया था। अक्टूबर महीने में विपक्षी दलों के बड़े नेताओं और पत्रकारों के फोन इस तरह के हमले के निशाने पर होने की ख़बर आई थी। इसको लेकर अब दो पत्रकारों के फोन पर पेगासस से हमले किए जाने का दावा किया गया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एक अन्य पत्रकार को इस साल पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया था। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार गैर -लाभकारी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब ने उनके फोन की जाँच करने के बाद पेगासस होने की पुष्टि की। एप्पल से फोन पर सरकार प्रायोजित हमले की चेतावनी मिलने के बाद पत्रकारों ने जाँच के लिए अपने फोन को एमनेस्टी को दिया था। पेगासस स्पाइवेयर के डेवलपर एनएसओ समूह केवल सरकारों को ही अपनी तकनीक बेचता है। 

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फोन में स्पाइवेयर का पता लगाने के बाद एमनेस्टी ने एक बयान में कहा, 'बरामद नमूने एनएसओ समूह के ब्लास्टपास एक्सप्लोइट के अनुरूप हैं, जिसे सार्वजनिक रूप से सितंबर 2021 में सिटीजन लैब द्वारा पहचाना गया और एप्पल द्वारा आईओएस 16.6.1 (सीवीई -2023-41064) में पैच किया गया था।' 

रिपोर्ट के अनुसार वरदराजन का फोन 16 अक्टूबर को संक्रमित पाया गया। दोनों पत्रकारों को अक्टूबर में एप्पल से अलर्ट मिला था जिसमें कहा गया था कि उनके फोन को "सरकार-प्रायोजित हमलावरों" द्वारा निशाना बनाया गया था। एप्पल के जिस थ्रेट नोटिफिकेशन की बात इन दोनों पत्रकारों ने की है वैसी ही शिकायत तब अक्टूबर महीने में ही कई विपक्षी दलों के नेताओं और पत्रकारों ने की थी। ऐसी शिकायत करने वालों में महुआ मोइत्रा, शशि थरूर, प्रियंका चतुर्वेदी, अखिलेश यादव जैसे नेता शामिल थे। सिद्धार्थ वरदराजन के अलावा डेक्कन क्रोनिकल के रेजिडेंट एडिटर श्रीराम कर्री और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष समीर सरन को भी एप्पल ने वह चेतावनी भेजी थी। 

थरूर ने तब अपने फोन पर एप्पल से मिले चेतावनी वाले संदेशों के स्क्रीनशॉट को ट्वीट करते हुए लिखा था, 'एक एप्पल आईडी threat-notifications@apple.com से प्राप्त हुआ, जिसे मैंने सत्यापित कर लिया है। प्रामाणिकता की पुष्टि की गई। मेरे जैसे करदाताओं के खर्चों पर अल्प-रोज़गार वाले अधिकारियों को काम कराने में खुशी हुई! करने के लिए और कुछ भी अहम नहीं है?' 

इनको भेजे गए अलर्ट वाले ईमेल में कहा गया है, "आप जो भी हैं या आप जो करते हैं, इस वजह से ये हमलावर संभवतः आपको व्यक्तिगत रूप से निशाना बना रहे हैं। यदि आपके उपकरण के साथ किसी सरकार-प्रायोजित हमलावर ने छेड़छाड़ कर दी है, तो वे दूर से ही आपके संवेदनशील डेटा, बातचीत या यहाँ तक कि कैमरा और माइक्रोफ़ोन तक पहुंचने में सक्षम हो सकते हैं।'

इन ख़बरों पर केंद्र सरकार ने कहा था कि वह इन अलर्ट की जांच कर रही है। हालाँकि सरकार की जाँच की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं आई है।

विपक्ष मोदी सरकार पर विपक्षी नेताओं और पत्रकारों की जासूसी कराने का आरोप लगाता रहा है। एक समय पेगासस को लेकर भारत में तूफान खड़ा हुआ था। पेगासस को केंद्र सरकार ने अब तक साफ़ तौर पर खरीदने या उपयोग करने से इनकार नहीं किया है।

द हिंदू की रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापार डेटा से पता चलता है कि भारत के खुफिया ब्यूरो ने 2017 में एनएसओ समूह से हार्डवेयर का आयात किया था।

वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट दी थी कि अक्टूबर महीने में सुरक्षा अलर्ट जाने के बाद सरकारी अधिकारियों ने 'वैकल्पिक' स्पष्टीकरण देने के लिए एप्पल पर 'दबाव' डाला कि इन चेतावनियों को विपक्षी नेताओं और पत्रकारों को क्यों भेजा गया था। एप्पल थ्रेट नोटिफिकेशन के बाद केंद्रीय मंत्रियों और एप्पल ने भ्रामक और तथ्यरहित बयान दिए थे। भारत में बयान दिया गया कि ये एप्पल थ्रेट नोटिफिकेशन 150 देशों में चले गए थे, जबकि किसी अन्य देश के नागरिक या सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों ने उस सप्ताह वैसी चेतावनी मिलने की सूचना नहीं दी थी।

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एप्पल उन यूज़रों को धमकी वाली सूचनाएँ जारी करता रहा है जिनके बारे में उसका मानना है कि वे 'सरकार-प्रायोजित हमलों' के शिकार हैं। एप्पल ने यह फंक्शन सबसे पहली बार तब शुरू किया था जब दो साल पहले पेगासस स्पाइवेयर का मामला ख़बरों में आया था। यह ख़बर एप्पल द्वारा iPhones को हैक करके अमेरिकी नागरिकों को निशाना बनाने के लिए इजराइली एनएसओ ग्रुप के खिलाफ मुक़दमा दायर करने के बाद आई थी। रॉयटर्स की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि एप्पल ने थाईलैंड में चेतावनी जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि एक्टिविस्ट संभवतः सरकार प्रायोजित हमले के शिकार थे।

तब 2021 में एमनेस्टी इंटरनेशनल और सिटीजन लैब की एक जांच से पता चला था कि पेगासस स्पाइवेयर दुनिया भर में कई पत्रकारों, एक्टिविस्टों और सरकारी आलोचकों के आईफोन और एंड्रॉइड फोन को हैक करने में सक्षम था। पेगासस ने दिखाया कि कैसे विशेष रूप से iPhones को स्पाइवेयर द्वारा निशाना बनाया गया था और iMessage असुरक्षित था। एप्पल ने बाद में कई खामियों को ठीक करने के लिए सॉफ़्टवेयर अपडेट जारी किए थे।

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बता दें कि मोदी सरकार पहले से ही जासूसी के आरोपों का सामना कर रही है। 2019 और 2021 में पत्रकारों और एक्टिविस्टों के फोन पर हैकिंग टूल पेगासस से हमला किए जाने के आरोप लगे थे। हालाँकि सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसे स्वीकार नहीं किया है कि उसने इजरायली समूह एनएसओ से स्पाइवेयर को लगाया था। लेकिन तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली कई कंपनियों और एमनेस्टी इंटरनेशनल के टैक लैब ने कई लोगों के फोन में पेगासस जैसे स्पाइवेयर होने के दावे किये।

2021 में भारत में एक दर्जन से अधिक फोन - राजनेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के फोन में इजरायली स्पाइवेयर होने की रिपोर्ट आई थी। तब जिन लोगों के फोन को निशाना बनाया गया था उनमें विपक्ष के नेता, वकील, एक मौजूदा न्यायाधीश, एक चुनाव आयुक्त, अपदस्थ सीबीआई निदेशक जैसी शख्सियतें थीं। इस स्पाइवेयर के उपयोग के मामलों की जांच के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति की अंतिम रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। मोदी सरकार ने इस सवाल को टाल दिया कि क्या उसने पेगासस का इस्तेमाल किया था। लेकिन उसने स्पाइवेयर खरीदने और तैनात करने से कभी इनकार भी नहीं किया है।

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क़मर वहीद नक़वी
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