Jai Hind Vande Matram Ban Controversy: राज्यसभा बुलेटिन में सांसदों को शिष्टाचार और परंपरा का हवाला देते हुए 'जय हिंद' और 'वंदे मातरम' जैसे नारे न लगाने की सलाह दी गई है। कांग्रेस और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने खुलकर इसकी आलोचना की है।
शीतकालीन सत्र से पहले, एक राज्यसभा बुलेटिन ने सांसदों को सदन के शिष्टाचार (decorum) के बारे में याद दिलाया है। इसमें कहा गया है कि सभापति (Chair) के फ़ैसलों की आलोचना न तो सदन के अंदर और न ही बाहर की जानी चाहिए, और सदन में 'जय हिन्द' या 'वंदे मातरम' सहित कोई भी नारा नहीं लगाया जाना चाहिए। मोदी सरकार के इस फैसले से हंगामा मचा हुआ है। कांग्रेस और टीएमसी ने इस निर्देश की कड़ी आलोचना की है। टीएमसी प्रमुख ने कहा कि जय हिन्द या वंदे मातरम बोलने से रोका नहीं जा सकता।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, बुलेटिन में लिखा गया है: "फ़ैसले सदन की मिसालों (precedents) के अनुसार दिए जाते हैं, और जहाँ कोई मिसाल नहीं है, वहाँ सामान्य संसदीय परंपरा का पालन किया जाता है। सभापति द्वारा दिए गए फ़ैसलों की आलोचना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सदन के अंदर या बाहर नहीं की जानी चाहिए।"
संसदीय रीति-रिवाजों और परंपराओं (Parliamentary Customs and Conventions) का हवाला देते हुए, बुलेटिन में कहा गया है कि
"सदन की कार्यवाही की गरिमा और गंभीरता की माँग है कि सदन में 'थैंक्स', 'थैंक यू', 'जय हिन्द', 'वंदे मातरम' या कोई अन्य नारा नहीं लगाया जाना चाहिए।"
2024 में भी रोक लगाने की कोशिश हुई थी
2024 में राज्यसभा सचिवालय ने सदस्यों को सदन की मर्यादा बनाए रखने के लिए सदन के अंदर या बाहर 'वंदे मातरम' और 'जय हिंद' जैसे नारे न लगाने की सलाह दी थी। इन्हें संसदीय शिष्टाचार का उल्लंघन बताया था। आधिकारिक रूप से तय तथ्य दर्ज है- 'राज्यसभा सदस्यों के लिए पुस्तिका' में उल्लिखित यह सलाह 2024 में संसदीय सत्र शुरू होने से पहले जारी की गई थी। लेकिन इस बार 1 नवंबर से 14 नवंबर तक देश भर में वंदे मातरम गायन का आयोजन किया गया। रेलवे स्टेशन और मेट्रो स्टेशनों पर इस गीत को बजाया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने वंदे मातरम के सामूहिक गायन के प्रोग्राम को लांच किया था। मीडिया में जोरशोर से वंदे मातरम का प्रचार किया गया और कुछ मीडिया आउटलेट ने वंदे मातरम की आड़ में बिहार चुनाव के मद्देनज़र ध्रुवीकरण की कोशिश भी की। इसलिए विपक्ष ने अब इसे मुद्दा बनाया कि राज्यसभा में वंदे मातरम बोलने पर क्यों रोक लगाई जा रही है।
टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को उन खबरों पर चिंता व्यक्त की जिनमें कहा गया है कि सांसदों को संसद के अंदर 'जय हिंद' और 'वंदे मातरम' कहने से कथित तौर पर रोका जा रहा है। उन्होंने पूछा कि क्या इस तरह के उपायों का उद्देश्य पश्चिम बंगाल की पहचान को कमजोर करना है।
बनर्जी ने कहा कि "संसद में 'जय हिंद' और 'वंदे मातरम' नहीं कहा जा सकता। यह खबर हमें मीडिया से मिली है। हमें याद रखना चाहिए कि 'वंदे मातरम' हमारा राष्ट्रीय गीत है। हमारे सभी नारे 'वंदे मातरम' हैं। स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा विरोध का यही नारा हुआ करता था। इसे कैसे भुलाया जा सकता है? क्या वे बंगाल की पहचान को नष्ट करना चाहते हैं?" उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि बंगाल "देश का अभिन्न अंग है और हमेशा लोकतंत्र के लिए लड़ता रहा है"। "बांग्लादेश भारत से बाहर नहीं है। यह भारत का अभिन्न अंग है। और हमें यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि बंगाल हमेशा हमारे देश के लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, एकता और विविधता के लिए लड़ता है।"
कांग्रेस ने जय हिन्द बोलने और लिखने का इतिहास याद दिलाया
कांग्रेस की मीडिया प्रभारी सुप्रिया श्रीनेत्र ने एक्स पर वीडियो बयान जारी कर मोदी सरकार को जय हिन्द और वंदे मातरम के इतिहास से अवगत कराया। सुप्रिया ने लिखा है- हैरान हूँ. आख़िर इन नारों पर कैसी आपत्ति। इनसे तो अंग्रेज़ों को दिक्कत थी, अब भाजपाइयों को भी है? किस मिट्टी के बने हैं वो लोग जिनको आज़ादी के दो सबसे प्रसिद्ध नारों को सदन में बोलना अखरता है?
सुप्रिया ने बताया कि “जय हिन्द” का मतलब है हिंदुस्तान की जय। यह स्वतंत्रता संग्राम का सबसे पुरज़ोर नारा है। हर भारतीय के मन में धड़कता है। 1907 में इसकी रचना त्रावणकोर, केरल के क्रांतिकारी चेम्पकरामन पिल्लै ने की। 1914-1918 के बीच पिल्लै जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे। विदेश में रह रहे भारतीय क्रांतिकारियों के बीच उन्होंने सबसे पहले “जय हिन्द” का अभिवादन और नारे में प्रयोग किया।
कांग्रेस नेता ने बनाया कि 1943-44 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज ने “जय हिन्द” को अपना आधिकारिक अभिवादन और नारा बना कर और भी लोकप्रिय कर दिया। नेताजी अपने सभी भाषणों और साउथ ईस्ट एशिया तथा जर्मनी से प्रसारित रेडियो संदेशों को “जय हिन्द” से समाप्त करते थे। नेताजी ने इसे इसलिए चुना क्योंकि यह धर्मनिरपेक्ष था और सभी को एकजुट करता था। 1947 में स्वतंत्रता के बाद “जय हिन्द” को भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने अपना आधिकारिक अभिवादन और सलामी बनाया। आज भी यह सेना, अर्धसैनिक बलों और हर भारतीय में देशभक्ति का जज़्बा भरता है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे और भी लोकप्रिय बनाया। वह अपने भाषण अक्सर “जय हिन्द” से समाप्त करते थे।
वंदे मातरम का इतिहास याद दिलाया
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत्र ने वंदे मातरम का भी इतिहास मोदी सरकार को याद दिलाया। उन्होंने कहा कि “वन्दे मातरम्” हमारे इतिहास का वो गौरवशाली नारा और गीत है जो भारत को माँ का दर्जा देकर उसका वंदन उसका नमन करता है। 1870 में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा। 1896 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार इसे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाया था। 1905 में स्वदेशी आन्दोलन में यह जन-जन का राजनीतिक और राष्ट्रवादी नारा बन गया। 1906–1910 ब्रिटिश शासन ने बार-बार प्रतिबन्धित किया, गाने पर गिरफ्तारियाँ हुईं. स्वराज के लिए प्रदर्शन हो या आज़ादी के लिए जुलूस आज़ादी के महानायकों की ज़ुबान पर हमेशा “वन्दे मातरम्” ही रहता था। 24 जनवरी 1950 को भारत की संविधान सभा ने “वन्दे मातरम्” को भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया। सुप्रिया ने पूछा और जवाब दिया है कि इन नारों से किसको समस्या हो सकती है? उन्ही को जिन्होंने आज़ादी के आंदोलन में अपनी छोटी उंगली का छोटा नाख़ून भी नहीं कटाया। जो अंग्रेज़ों की ग़ुलामी और मुखबिरी करते थे।
भले ही ये दोनों सदनों के सांसदों के लिए मानक हैंडबुक निर्देश हैं, लेकिन इस बुलेटिन का जारी होना महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि नए उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन पहली बार राज्यसभा की अध्यक्षता करेंगे। पिछले दो वर्षों में, राज्यसभा के सभापति और विपक्षी सांसदों के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, जिसके कारण पूर्व उपराष्ट्रपति के खिलाफ पहला महाभियोग प्रस्ताव भी लाया गया था। विपक्ष ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने की माँग करते हुए यह महाभियोग नोटिस प्रस्तुत किया था। संसद का आगामी शीतकालीन सत्र, जो 1 दिसंबर से शुरू होने वाला है, राधाकृष्णन और विपक्ष के बीच कामकाजी समीकरण की पहली परीक्षा होने की उम्मीद है। शीतकालीन सत्र 19 दिसंबर तक चलेगा, जिसमें कुल 15 बैठकें तय हैं।