इसकी शुरुआत एमके स्टालिन ने की। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने चेन्नई में बहिष्कार की घोषणा की। इसके बाद, कांग्रेस ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुक्खू, कर्नाटक के सिद्धारमैया और तेलंगाना के रेवंत रेड्डी सहित उसके मुख्यमंत्री बैठक में शामिल नहीं होंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के भी बैठक में शामिल होने की उम्मीद है।
ममता का रवैया
बहरहाल, कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम इस मुद्दे पर एकजुट हैं। सिद्धारमैया ने सोशल मीडिया पर लिखा- "हमें नहीं लगता कि कन्नड़ लोगों की बात सुनी जाती है, और इसलिए नीति आयोग की बैठक में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है। हमने विरोध स्वरूप 27 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया है।" उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार बचाने के लिए बजट में आंध्र प्रदेश और बिहार से आगे नहीं देखा।
केंद्रीय बजट को 'कुर्सी बचाओ बजट' बताते हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने कहा कि 'सब का साथ, सबका विकास' एक फर्जी नारा बन गया है। प्रधानमंत्री तेलंगाना को विकसित भारत का हिस्सा नहीं मान रहे हैं। क्या यह बजट विकसित भारत के लिए है। केंद्रीय मंत्री जी.किशन रेड्डी को तेलंगाना के साथ हुए भेदभाव के खिलाफ इस्तीफा दे देना चाहिए।
तेलंगाना के सीएम ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने विकसित भारत 2024 बजट में तेलंगाना के प्रति प्रतिशोधात्मक रवैया अपनाया है। रेवंत रेड्डी ने याद दिलाया कि उन्होंने प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से तीन बार मुलाकात की थी और उनसे तेलंगाना के लिए धन स्वीकृत करने का अनुरोध किया था। रेवंत रेड्डी ने पूछा कि "तेलंगाना के लोगों ने कभी उम्मीद नहीं की थी कि केंद्र राज्य के खिलाफ ऐसा बदला लेगा। केंद्र ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत आंध्र प्रदेश को धन मंजूर किया। तेलंगाना राज्य को उसी अधिनियम के तहत आवंटन क्यों नहीं दिया गया? कोई फंड नहीं। जबकि तेलंगाना नया राज्य है।"