चुनाव आयोग के बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण आदेश से तूफ़ान खड़ा हो गया है! इस कदम से लाखों गरीब और वंचित मतदाताओं का वोट देने का अधिकार खतरे में पड़ सकता है। चुनाव आयोग कुछ भी कहे, लेकिन रिपोर्टें आ रही हैं कि 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाकर 4.74 करोड़ लोगों को सिर्फ एक महीने में अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। लेकिन बिहार जैसे दस्तावेजों की कमी वाले राज्य में यह कितना संभव है? विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, जबकि आयोग इसे नागरिकता की रक्षा का क़दम कह रहा है। आखिर इस विवाद की सच्चाई क्या है, और क्या यह बिहार से शुरू होकर पूरे देश में लोकतंत्र की नींव हिला देगा?