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18 साल में मताधिकार तो चुनाव लड़ने का क्यों नहीं? चुनाव आयोग विरोध में!

इस साल 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव और 2024 में आम चुनाव होने हैं। लेकिन क्या इन चुनावों से पहले चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की न्यूनतम उम्र को कम किया जा सकता है? यही सवाल हाल में चुनाव आयोग के सामने आया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग ऐसा करने के पक्ष में नहीं है।

दरअसल, चुनाव आयोग के अधिकारी संसदीय पैनल के सामने पेश हुए थे। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति के समक्ष सोमवार को पेश हुए चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा है कि वह लोकसभा, विधान सभाओं, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के ऊपरी सदन के लिए चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु सीमा को कम करने के पक्ष में नहीं है।

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रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि संसदीय पैनल ने पूछा था कि क्या लोकसभा और विधानसभाओं के लिए न्यूनतम आयु 25 से घटाकर 21 वर्ष की जा सकती है और उच्च सदन निकायों के लिए इसे 30 से घटाकर 25 किया जा सकता है? यह सुझाव 1998 में भी पोल पैनल को भेजे गए कुछ सुधार प्रस्तावों में शामिल था।

चुनाव सुधार के रूप में चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र को कम करने के लिए जब तब मांग उठती रही है। इसी तर्क के तहत यह दलील दी जाती रही है कि जब 18 वर्ष का एक व्यस्क यह सोच-समझ रखता है कि किसे वह अपना प्रतिनिधि चुने तो क्या उसकी यह समझ चुनाव लड़ने के लिए काफी नहीं है? 

वैसे, चुनाव में वोट देने का अधिकार 18 साल की उम्र वाले हर वयस्क को दिया गया है। हालाँकि आज़ादी के बाद वोट देने का अधिकार मिलने के लिए न्यूनतम उम्र 21 साल ज़रूरी थी। लेकिन राजीव गांधी के कार्यकाल में मतदान करने के अधिकार के लिए उम्र को घटा दिया गया। 20 दिसंबर 1988 को मतदान की उम्र 21 से घटाकर 18 साल करने के लिए संसद में कानून को मंजूरी दी गई थी। तब संसद ने 62वां संविधान संशोधन किया था। इसे 28 मार्च, 1989 से लागू किया गया।
हालाँकि, मतदान की उम्र तो 18 साल है, लेकिन अब संसदीय पैनल ने चुनाव लड़ने की उम्र का जो सुझाव दिया वह 21 साल था। लेकिन चुनाव आयोग के अधिकारियों ने समिति के सामने इसके विरोध में तर्क रखे।

अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने कहा कि संविधान सभा के समक्ष इस तरह के सुझाव थे, लेकिन बीआर आंबेडकर ने इस तरह के कदम का विरोध करने के लिए एक नया अनुच्छेद, जो वर्तमान में संविधान का अनुच्छेद 84 है, को शामिल करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था। आंबेडकर ने सुझाव दिया था कि जिन लोगों के पास कुछ उच्च योग्यताएँ हैं और दुनिया के मामलों में एक निश्चित मात्रा में ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव है, उन्हें विधानमंडल की सेवा देनी चाहिए। चुनाव आयोग का विचार था कि विधायिकाओं को देश के लिए नीतियाँ और कार्यक्रम बनाने और कानून बनाने की सबसे अहम और महत्वपूर्ण भूमिका और जिम्मेदारी सौंपी गई है। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि आयोग इसमें यथास्थिति चाहती है। यानी वह चुनाव लड़ने की उम्र में कोई बदलाव करने के पक्ष में नहीं है।

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बता दें कि चुनाव सुधार के तौर पर ही आयोग ने हाल ही में ईवीएम जैसी रिमोट वोटिंग सिस्टम लाने की बात कही है। दिसंबर के आखिर में ही ख़बर आई थी कि चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग मशीन यानी आरवीएम शुरू करने की तैयारी की है। यह ईवीएम जैसी ही मशीन है। लेकिन उन लोगों के लिए जो अपनी नौकरी या फिर पढ़ाई के लिए दूसरे शहर या राज्य में रह रहे हों। 

चुनाव आयोग ने एक नए आरवीएम के माध्यम से आप्रवासियों को अपने घरेलू निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदान करने में सक्षम बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों को एक प्रस्ताव दिया है। इसने 30 जनवरी, 2023 तक सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों के लिखित विचार मांगे हैं। इसने तो 16 जनवरी को पार्टी प्रतिनिधियों के लिए आरवीएम प्रोटोटाइप का डेमंस्ट्रेशन भी तय किया है। 

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आरवीएम अनिवार्य रूप से ईवीएम ही है, लेकिन इसमें नियमित बैलट यूनिट के बजाय एक इलेक्ट्रॉनिक डायनेमिक बैलट यूनिट, बैलट यूनिट ओवरले डिस्प्ले यानी बीयूओडी होता है। इसमें रिमोट बैलट यूनिट - केबल द्वारा पीठासीन अधिकारी की टेबल पर रिमोट कंट्रोल यूनिट यानी आरसीयू से जुड़ा होता है। रिमोट बैलट यूनिट उस निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवारों के नामों को दिखाता है।

आयोग ने कहा था कि मशीन स्टैंड-अलोन होगी और इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होगी। गृह निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर के पास पंजीकरण कराने के बाद प्रवासी मतदाता विभिन्न स्थानों पर विशेष दूरस्थ मतदान केंद्रों पर अपना वोट डालने में सक्षम होंगे। आरवीएम एक समय में 72 निर्वाचन क्षेत्रों को कवर करने में सक्षम होगा। सवाल है कि ईवीएम पर सवाल उठाते रहे राजनीतिक दल क्या इस पर एक राय होंगे?

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क़मर वहीद नक़वी
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