बहस की शुरुआत जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने की। प्रशांत भूषण ने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र से जुड़ा मामला है। इसलिए इसका निपटरा 2024 के आम चुनाव से पहले किया जाए। भूषण ने कहा कि सरकार ने फेरा कानून में बदलाव करके उन विदेशी कंपनियों की भारतीय यूनिटों को भी चुनावी बांड खरीदने की अनुमति दी। हालांकि पहले इस पर रोक थी। विदेशी कंपनी किसी भी रूप में चुनावी फंडिंग नहीं कर सकती। प्रशांत भूषण ने चुनावी बांड के जरिए आई रकम का खुलासा करते हुए कहा-
केंद्र में सत्तारूढ़ दल (भाजपा) को ही लीजिए, केवल इस एक पार्टी को चुनावी बांड के माध्यम से 5 साल से कम अवधि में 5000 करोड़ से अधिक का योगदान दिया गया है।
भूषण ने कहा एक उम्मीदवार के लिए चुनाव खर्च की सीमा प्रति लोकसभा क्षेत्र 1 करोड़ से कम है। यदि आप देश के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार खड़े करते हैं, तो लोकसभा चुनावों में किसी भी पार्टी के उम्मीदवारों द्वारा खर्च की जाने वाली कुल राशि 500 करोड़ से कम है। केवल इन 5 वर्षों में, एक पार्टी जिसे चुनावी बांड के माध्यम से बड़ी मात्रा में राजनीतिक धन प्राप्त हुआ है, उसे अपने उम्मीदवारों द्वारा अधिकतम स्वीकार्य व्यय से 10 गुना अधिक प्राप्त हुआ है।
इस पर जस्टिस गवई ने पूछा कि अधिकतम एक प्रत्याशी कितना खर्च कर सकता है। प्रशांत भूषण ने कहा कि यह करीब 70 लाख है। लेकिन हकीकत ये है एक-एक प्रत्याशी कैश में इसका सौ गुणा खर्च करता है। और चुनाव आयोग कहता है कि ऐसा करने वालों को हम पकड़ ही नहीं पाते, क्योंकि सब कुछ कैश में हो रहा है। सरकार ने स्कीम पेश करते हुए कहा था कि चुनावी बांड का सारा पैसा बैंक के जरिए आएगा-जाएगा। प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर आप किसी विदेशी कंपनी की भारतीय कंपनी हैं और फेमा नियमों के तहत आपके पास 100 फीसदी शेयर हैं तो आपको विदेशी स्रोत नहीं माना जाएगा।
वकील प्रशांत भूषण ने कहा- केंद्रीय चुनाव आयोग ने भी चुनावी बांड पर सवाल उठाए हैं। ईसीआई ने कहा है कि जहां तक पारदर्शिता का सवाल है, "इससे राजनीतिक दलों को चंदा देने के एकमात्र उद्देश्य के लिए फर्जी कंपनियों की स्थापना की संभावना खुल जाती है..." चुनाव आयोग ने इस ओर इशारा किया था! ऐसा लगता है कि इससे राजनीतिक दलों को धन चंदा देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फर्जी कंपनियों के दरवाजे खुल जाएंगे। भूषण ने कहा-
सरकार ने कहा कि ईसीआई ने कोई आपत्ति नहीं की? जबकि आयोग आपत्ति कर चुका है। मेरा मतलब है कि वे इसे बहुत लापरवाही से लेते हैं। आप जो चाहें कह सकते हैं और उससे बच सकते हैं।
प्रशांत भूषण ने कहा कि आरबीआई ने भी आपत्तियां की हैं। आरबीआई का कहना है कि इस कदम से गैर-संप्रभु संस्थाओं को बांड जारी करने के लिए अधिकृत किया जाएगा। इस प्रकार। प्रस्तावित तंत्र कैश जारी करने वाले एकमात्र प्राधिकारी के रूप में आरबीआई के विरुद्ध है। भूषण ने कहा कि असली चुनौती है चुनावी बांड नागरिकों के जानने के अधिकार से वंचित कर रहा है। यह सबसे बड़ी चुनौतीहै। चुनाव आयोग कहता है कि आरटीआई एक्ट के तहत राजनीतिक दल पब्लिक अथॉरिटी हैं। इस अदालत ने भी माना है कि राजनीतिक दल राज्य का हिस्सा हैं। राजनीतिक दल हमारे लोकतंत्र में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा-
आपका तर्क यह है कि नागरिकों को पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के स्रोत क्या हैं और यह व्यापक जनहित में है। इसलिए, यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत आएगा।
प्रशांत भूषण ने कहा- और, सरकार जो कह रही है यह उसके विपरीत है। वे कह रहे हैं कि उचित प्रतिबंध लगाए गए हैं...। राजनीतिक दलों की फंडिंग को अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत किसी भी आधार पर कवर नहीं किया जा सकता है। भूषण ने कहा कि इसे जानने के अधिकार के दायरे में लाना इसलिए जरूरी है। क्योंकि अगर मुझे पता है कि इस पार्टी को उन कंपनियों द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है जिन्हें राजनीतिक दल द्वारा लाभ मिल रहा है - तो मुझे पता है कि यह पार्टी भ्रष्ट है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से बदले में लाभ प्राप्त कर रही है। उन्होंने कहा कि ब्राज़ील के सुप्रीम कोर्ट ने एक न्यायिक आदेश द्वारा राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट चंदा देने पर रोक लगा दी है।
प्रशांत भूषण ने कहा पिछले 5 वर्षों में ऑडिट रिपोर्ट में पार्टीवार जो चुनावी बांड घोषित किए गए हैं, उसमें अकेले बीजेपी को 5271 करोड़ मिल हैं। यह सिर्फ 2021-22 तक ही आंकड़ा है। उसके बाद यानी वित्त वर्ष 2021-22 के बाद 3500 करोड़ से ज्यादा के और बॉन्ड खरीदे गए हैं।
बांड क्यों लाए गए
2017 में, तत्कालीन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर उर्जित पटेल ने चुनावी बांड के दुरुपयोग की संभावना के बारे में बात की थी, खासकर शेल कंपनियों के जरिए सारा धन इसमें सफेद कर देने का खतरा उन्होंने बताया था।
यह भी देखा गया है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी को अधिकांश फंडिंग मिलती है और चुनावी बांड प्रणाली की शुरुआत के साथ भी इस असमान फंडिंग को ठीक नहीं किया जा सका है। आलोचकों का तर्क है कि यह लोकतांत्रिक चुनावों में समान अवसर के सिद्धांत को कमजोर करता है। भाजपा इस समय देश की सबसे अमीर पार्टी है। जाहिर सी बात है कि उसे केंद्र की सत्ता में रहने की वजह से चुनावी चंदे का लाभ मिल रहा है। उसके तहत सारी केंद्रीय जांच एजेंसियां काम कर रही हैं। दूसरे नंबर पर टीएमसी है जो बंगाल में सत्ता में है। तीसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी है।