तारीख़ 30 अगस्त 2014। इंडिया टीवी पर रजत शर्मा की टीवी अदालत के मेहमान थे योगी आदित्यनाथ (यह विडियो चार बरस से ज़्यादा समय से यूट्यूब पर मौजूद है)। नीचे पढ़िए रजत शर्मा और योगी की बातचीत।

रजत शर्मा : यह विडियो हमारे पास है 27 जनवरी 2007 का, कैसे आपके मुँह से मशीनगन से भी ज़्यादा आग निकल रही है। आइए, आपको सुनवाते हैं…

विडियो का अंश 

“अगर एक हिंदू का ख़ून बहेगा तो एक हिंदू के ख़ून के बदले आने वाले समय में हम प्रशासन से एफ़आईआर दर्ज़ नहीं करवाएँगे बल्कि कम-से-कम दस ऐसे लोगों की हत्या उनसे करवाएँगे जो लोग किसी निर्दोष हिंदू की हत्या करने में शामिल होंगे।’’

रजत शर्मा : महंत जी पूरे फ़्लो में बोल रहे हैं आप। भगवा वस्त्र पहन कर साधु का रूप धारण करके इस तरह की नफ़रत की बात करना ठीक है?
योगी आदित्यनाथ : देखिए, मैंने उस बात को कंडिसनल कहा है। यदि आपको कोई मारेगा तो मुझे लगता है कि सामने कोई मानव होगा तो आप ये मान सकते हैं कि उस मानव का दूसरा थप्पड़ भी आप सहन कर सकते हैं। लेकिन अगर सामने दानव है तो अगर एक हाथ से मारता है तो दूसरे हाथ से उसका जवाब भी दीजिए। मैं एक संन्यासी हूँ। अगर हमें  सास्त्र का प्रशिक्षण दिया गया है तो सास्त्र के साथ सस्त्र का भी, अपने एक हाथ में माला है तो दूसरे हाथ में भाला लेकर भी चलते हैं जिससे समाज को सिष्ट भी किया जा सके और दुष्टों को उनके कृत्यों की सजा भी दी जा सके। एक संन्यासी का ये सही कर्तव्य होता है।”

आपने विडियो का अंश और योगी आदित्यनाथ के जवाब भी पढ़े (नीचे विडियो में आप उन्हें सुन भी सकते हैं)। आप देखेंगे कि उन्होंने इस क्लिप की सत्यता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया बल्कि अपने कहे को और विस्तार दिया और कहा कि 'यह बयान कंडिसनल है'। विडियो में 15 मिनट 31 सेकंड से 19 मिनट 48 सेकंड के बीच आप विडियो और योगी की बातें सुन सकते हैं। 

लेकिन इसी हेट स्पीच के विडियो को अब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ‘डॉक्टर्ड’ बता रहे हैं। गोरखपुर के सीजेएम कोर्ट ने उनकी बात से सहमत होते हुए इसे डॉक्टर्ड माना है और इस विडियो के आधार पर योगी के ख़िलाफ़ हेट स्पीच की शिकायत करने वाले को ही जेल भेजने का आदेश दे दिया है। 14 दिसंबर, 2018 को यह आदेश पारित हुआ है।

सरकारी दादागिरी के इस ‘अविश्वसनीय किन्तु सत्य’ मामले के दस्तावेज़ों की पड़ताल करते हुए रोंगटे खड़े कर देने वाले तथ्य सामने आए। योगी आदित्यनाथ के तमाम ऐसे बयान गूगल के भंडारगृह में भरे पड़े हैं जिन्हें हेट स्पीच की मान्यता मिल सकती है। लेकिन इस मामले में तकनीकी कारकों का उलटफेर करके योगी आदित्यनाथ इससे पल्ला झाड़ रहे हैं!

आख़िर क्या है मामला?

शिकायतकर्ता पत्रकार परवेज़ परवाज़ और उनके सहयोगी असद हयात ने गोरखपुर के सांप्रदायिक दंगों के दौरान 27 जनवरी 2007 को पुलिस को एक शिकायत सौंपी थी जिसमें कहा गया था कि हिंदू युवा वाहिनी द्वारा बुलाई गई एक चेतावनी सभा में गोरखपुर के उस समय के सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक हिंदू के बदले दस मुसलमान मारने और मुसलमानों की परिसंपत्तियों दुकान, मकान आदि को नष्ट करने का एलान किया था। 

यह कोई लुकी-छिपी बात नहीं है। हिंदू युवा वाहिनी गोरक्ष पीठ से संचालित-नियंत्रित बेरोजगार हिंदू युवाओं का एक अर्धसैनिक दस्ता है जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहुत से जनपदों में फैला हुआ है और तमाम अन्य जगहों पर भी इसकी शाखाएँ हैं। बाद में रजत शर्मा की टीवी अदालत में 30 अगस्त, 2014 को इस बाबत पूछे गए सवाल पर योगी आदित्यनाथ ने अपनी 2007 की इस विवादित हेट स्पीच की नि:संकोच पुष्टि की। पत्रकार परवेज़ परवाज़ की शिकायत पर तब की पुलिस ने कुछ नहीं किया जबकि मुलायम सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। बाद में मई 2007 में मुलायम सिंह को परास्त कर मायावती पूर्ण बहुमत से सत्तारूढ़ हो गईं पर फिर भी कुछ नहीं हुआ।

माया-अखिलेश राज में भी नहीं हुई कार्रवाई

मजबूर होकर शिकायतकर्ताओं ने सीजेएम कोर्ट की शरण ली, जहाँ से भी 29 जुलाई 2008 को उनकी दरख़ास्त रिजेक्ट हो गई। तब वे हाईकोर्ट गए जिसके निर्देश देने पर सीजेएम कोर्ट ने एफ़आईआर दर्ज़ करवा दी। राजनैतिक लोगों का मामला होने के कारण जाँच सीआईडी को दे दी गई जिसने 2012 में मायावती सरकार के जाने और अखिलेश सरकार के आने तक टालमटोल जारी रखी। 2014 में एक ड्राफ़्ट फ़ाइनल रिपोर्ट में यह दर्ज़ किया कि प्रथम दृष्ट्या मामला बनता है। राज्य सरकार से योगी आदित्यनाथ व अन्य अभियुक्तों को प्रॉसिक्यूट करने की अनुमति माँगी जो अखिलेश के राज में अगले दो बरस फ़ाइल पेंडिंग में पड़ी रही।

2017 में ख़ुद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए और उन्हीं के प्रमुख सचिव ने उस फ़ाइल पर ‘प्रॉसिक्यूशन की अनुमति देने से इनकार’ लिख दिया ! वजह बताई कि जाँच में उपलब्ध सीडी के साथ छेड़छाड़ हुई है। पत्रकार परवेज़ परवाज़ फिर हाई कोर्ट पहुँचे जिसने बदले परिवेश में इस बार सरकार को सही ठहराया।अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट आ पहुँचा है जिसने परवेज़ की याचिका विचार के लिए स्वीकार कर इसी 20 अगस्त को योगी आदित्यनाथ और यूपी सरकार को जवाब देने के लिए नोटिस जारी कर दिया है।

शिकायतकर्ता पर ही मुकदमा दर्ज़ करने का आदेश

इस मामले में नया और विचित्र मोड़ लाते हुए 14 दिसंबर को गोरखपुर के सीजेएम कोर्ट ने परवेज़ परवाज़ पर डॉक्टर्ड विडियो प्रस्तुत करने का मुकदमा दर्ज़ करने का आदेश दे दिया। बीजेपी नेता वाई. डी. सिंह ने परवेज़ के ख़िलाफ़ 2016 में यह मामला दायर किया था जो ख़ारिज हो गया था। लेकिन अचानक इन्हीं वाई. डी. सिंह की एक नई दरख़ास्त पर मामले को पुनर्जीवित करके और सुनवाई करके सीजेएम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में परवेज़ के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए। ग़ौरतलब है कि ये मामला फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। परवेज़ के वक़ील फ़रमान अहमद का कहना है कि सीजेएम कोर्ट को ये फ़ैसला देने का अधिकार ही नहीं है।

Satyahindi.com से टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत में इलाहाबाद हाईकोर्ट में परवेज़ का मामला देख रहे एडवोकेट सैयद फ़रमान अहमद नक़वी ने बताया कि परवेज़ को गोरखपुर में ही इसी वर्ष 4 जून को दर्ज़ कराए गए गैंगरेप के एक मामले में सह-अभियुक्त बना कर जेल में डाला हुआ है। जबकि इस मामले में पहली जाँच रिपोर्ट को पुलिस ने झूठा क़रार दिया था। साथ ही आँखों के जिस डॉक्टर मेहमूद को मामले का मुख्य आरोपी बताया गया था, हाई कोर्ट ने 26 सितंबर को दिए आदेश के तहत उनकी गिरफ़्तारी पर रोक लगा रखी है। मौक़ा-ए-वारदात भी डॉक्टर का क्लीनिक है।

एक 40 वर्षीय महिला ने गोरखपुर के राजघाट थाने में 4 जून 2018 को रिपोर्ट लिखाई थी कि जब वे इलाज के लिए डॉ. मेहमूद के क्लीनिक गई हुई थीं, तब उनके साथ डॉक्टर और परवेज़ ने सामूहिक बलात्कार किया था। परवेज़ के वकील ने बताया कि जाँच अधिकारी ने मामला फ़र्ज़ी पाकर जाँच ख़त्म कर दी थी। लेकिन इससे पहले कि वह फ़ाइनल रिपोर्ट कोर्ट में दाख़िल करता, जाँच अधिकारी बदल दिया गया।

बदलाव के बाद महिला थाने की जाँच अधिकारी शालिनी सिंह ने अगस्त में मीडिया को बताया कि जाँच में बलात्कार की पुष्टि हुई है और परवेज़ को गिरफ़्तार कर लिया गया है। ग़ौरतलब है कि हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली परवेज़ की याचिका पर योगी आदित्यनाथ को जवाब देने का नोटिस सुप्रीम कोर्ट द्वारा अगस्त में ही दिया गया है।