अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत के राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (National Accounts Statistics) की अपनी वार्षिक समीक्षा में देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और सकल मूल्य वर्धित (GVA) सहित महत्वपूर्ण आँकड़ों को 'C' ग्रेड दिया है। यह उपलब्ध ग्रेडिंग (A, B, C, D) में दूसरा सबसे निचला स्तर है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के आँकड़ों की क्वॉलिटी पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

आईएमएफ ने स्पष्ट किया है कि 'C' ग्रेड का अर्थ है कि उपलब्ध डेटा में "कुछ कमियाँ हैं जो निगरानी में थोड़ी बाधा डालती हैं।" यह ग्रेड ऐसे समय में आया है जब सरकार शुक्रवार (28 नवंबर, 2028) को चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (Q2) के राष्ट्रीय लेखा आँकड़े जारी करने वाली है, जिससे यह मुद्दा और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

अनौपचारिक क्षेत्र और उपभोग पैटर्न की अनदेखी 

आईएमएफ ने विशेष रूप से यह टिप्पणी की है कि भारत के राष्ट्रीय खाते और मुद्रास्फीति (inflation) के आँकड़े अनौपचारिक क्षेत्र (informal sector) और लोगों के खर्च करने के पैटर्न (spending patterns) जैसे प्रमुख पहलुओं को पर्याप्त रूप से कैप्चर नहीं कर पाते हैं। यानी अनौपचारिक क्षेत्र के आंकड़े जब तक स्पष्ट नहीं होंगे और लोग किस तरह खर्च कर रहे हैं, यह साफ नहीं होगा, तब तक सही मायने में आंकड़ों पर विश्वास करना मुश्किल है। 

आँकड़ों की प्रमुख कमियां

पुराना आधार वर्ष: राष्ट्रीय खातों का डेटा अभी भी 2011-12 के पुराने आधार वर्ष पर आधारित है।

डिफ्लेटर्स की समस्या: उत्पादक मूल्य सूचकांक (Producer Price Index - PPI) की कमी के कारण, डेटा डिफ्लेटर्स के लिए थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Indices - WPI) का उपयोग किया जाता है, जो सटीक गणना में बाधा डालता है।

मापने में विसंगति: जीडीपी को मापने के उत्पादन दृष्टिकोण (Production Approach) और व्यय दृष्टिकोण (Expenditure Approach) के बीच समय-समय पर 'बड़ी विसंगतियाँ' (sizeable discrepancies) पाई जाती हैं। आईएमएफ ने सुझाव दिया है कि यह विसंगति व्यय दृष्टिकोण और अनौपचारिक क्षेत्र के कवरेज को बढ़ाने की आवश्यकता को दर्शाती है।

सांख्यिकीय तकनीक में सुधार की आवश्यकता: तिमाही राष्ट्रीय खातों के डेटा में मौसमी रूप से समायोजित (seasonally adjusted) आँकड़ों की कमी है, और अन्य सांख्यिकीय तकनीकों में सुधार की गुंजाइश है।

मुद्रास्फीति डेटा पर 'बी' ग्रेड

जीडीपी के विपरीत, भारत की प्रमुख मुद्रास्फीति माप, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index - CPI), को आईएमएफ द्वारा 'बी' ग्रेड दिया गया है, जिसका अर्थ है कि यह "निगरानी के लिए व्यापक रूप से पर्याप्त" है, लेकिन कुछ कमियाँ फिर भी मौजूद हैं।

सीपीआई को 'बी' ग्रेड मिलने का मुख्य कारण इसका पुराना आधार वर्ष (2011-12), आइटम बास्केट और भार है। आईएमएफ के अनुसार, सीपीआई बास्केट वर्तमान खर्च करने की आदतों को सटीक रूप से दर्शाने में विफल है।

सरकार की कोशिशें जारी

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत को पिछले साल की समीक्षा में भी राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी के लिए 'सी' ग्रेड ही मिला था। आईएमएफ ने इस बात को स्वीकार किया है कि पिछली रिपोर्ट के बाद से "डेटा की कमजोरियों में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है।"
हालांकि, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) आधार वर्ष और कार्यप्रणाली को ठीक करने पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। जीडीपी और सीपीआई डेटासेट की नई श्रृंखला 2026 की शुरुआत या मध्य तक जारी होने की उम्मीद है।

बहरहाल, कुल मिलाकर सभी डेटा श्रेणियों में, भारत को आईएमएफ से 'बी' ग्रेड प्राप्त हुआ है, जो दर्शाता है कि जीडीपी और राष्ट्रीय खातों के मोर्चे पर तत्काल और विशिष्ट सुधारों की आवश्यकता है ताकि देश की आर्थिक निगरानी और नीतियां अधिक सटीक हो सकें।