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‘आपराधिक मानहानि के मामलों का इस्तेमाल लोकतंत्र का गला घोटने के लिए नहीं कर सकते राज्य’

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य आपराधिक मानहानि के मामलों का इस्तेमाल लोकतंत्र का गला घोटने के लिए नहीं कर सकते। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए तमिलनाडु सरकार द्वारा कई मीडिया हाउसों के ख़िलाफ़ दायर किए गए आपराधिक मानहानि के मामलों को गुरुवार को रद्द कर दिया। 

हाई कोर्ट मीडिया हाउसों की ओर से दायर 25 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाओं में मांग की गई थी कि उनके ख़िलाफ़ 2011 से 2013 तक दायर किए गए आपराधिक मानहानि के मामलों को रद्द कर दिया जाए। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अब्दुल क़ुद्दोस ने कहा कि राज्यों को आपराधिक मानहानि के मामलों को दायर करते समय संयम और समझदारी दिखानी चाहिए।

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जस्टिस कुद्दोस ने कहा कि अभियोजन पक्ष को ख़ुद को न्याय के सिपाही के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभियोजन का मतलब उत्पीड़न करना नहीं है। 

अदालत ने कहा, ‘आपराधिक मानहानि का क़ानून ज़रूरी और वास्तविक मामलों के लिए है और राज्यों द्वारा इसका इस्तेमाल अपने विरोधियों के साथ बदला लेने के लिए नहीं किया जा सकता। किसी सरकारी कर्मचारी या संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी को आलोचना सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।’ 

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इस मामले में द हिंदू, नखीरन, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, दीनामलार सहित कई मीडिया हाउस याचिकाकर्ता थे। इन मीडिया हाउसों के ख़िलाफ़ ये मामले जयललिता के मुख्यमंत्री रहते हुए 2011 से 2016 के बीच दायर किए गए थे। 
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क़मर वहीद नक़वी
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