मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह
यहां पर ऐसी पहली घटना नहीं है। हर घटना को आसानी से मैतेई और कुकी आदिवासियों का संघर्ष बताकर दरकिनार कर दिया जाता है। लेकिन यह संघर्ष भी ठीक उसी तरह का है, जिस तरह भारत के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक संघर्षों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों में धार्मिक ध्रुवीकरण नजर आता है। कुकी-ज़ो समुदाय लगभग पूरी तरह ईसाई हैं, मैतेई समुदाय मुख्य रूप से हिंदू हैं। हालांकि इनमें कुछ ईसाई और मुस्लिम भी हैं, लेकिन उनकी तादाद नाममात्र है।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव के मुताबिक मणिपुर में असम राइफल्स के अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए एक आकलन में इस जातीय हिंसा पर रोशनी डाली गई है। असम राइफल्स देश का सबसे पुराना अर्धसैनिक बल है और सेना के साथ-साथ पूर्वोत्तर में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी भी इसके कंधों पर है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने 2023 के अंत में पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन में किए गए असम राइफल्स के मूल्यांकन की समीक्षा की। प्रेजेंटेशन दिखाने वाले अधिकारी गुमनाम रहना चाहते हैं। उन्होंने जो प्रेजेंटेशन दिखाया, वो मणिपुर संघर्ष के पीछे के कारणों को समझाते हुए एक अधिकारी द्वारा साझा किए गए विचारों से मेल खाता है।
मणिपुर की जातीय हिंसा पर असम राइफल्स के आकलन में कुछ हद तक आरोप हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह सरकार और उनकी "राजनीतिक अधिनायकवाद और महत्वाकांक्षा" पर लगाया गया। यह किसी केंद्रीय सरकारी एजेंसी का पहला स्पष्ट मूल्यांकन है जिसने इसे सार्वजनिक डोमेन में पेश किया है।
असम राइफल्स के मूल्यांकन में संघर्ष के कारणों को सूचीबद्ध किया गया है। इसने पड़ोसी म्यांमार से "अवैध आप्रवासियों" के प्रभाव, आने को कम करने के लिए नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) की मांग और कुकीलैंड की मांग पर प्रकाश डाला। कुकीलैंड एक अलग प्रशासनिक इकाई है जिसे राजनीतिक और सशस्त्र कुकी नेतृत्व मणिपुर से अलग करना चाहता है। जातीय संघर्ष के कारण कुकीलैंड की मांग पुनर्जीवित हो गई है।
असम राइफल्स के प्रेजेंटेशन में यह दावा भी किया गया कि मैतेई समुदाय के सशस्त्र समूह वहां लोगों को हथियारों से लैस कर रहे हैं, और कुकी समुदाय के सशस्त्र समूह अपने "स्वयंसेवकों" का समर्थन कर रहे हैं। इन सब चीजों ने तनाव बढ़ा दिया है। हालांकि दोनों समुदायों के नेता इसे दूसरे समुदाय के खिलाफ आत्मरक्षा का कदम कहते हैं।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव स्वतंत्र रूप से यह सत्यापित नहीं कर सका कि प्रेजेंटेशन में दिए गए विचारों का एक संगठन के रूप में असम राइफल्स ने समर्थन किया है या नहीं। हालांकि उसके आधिकारिक प्रवक्ता को सवाल भेजे गए थे। शुरू में
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की भूमिकाः असम राइफल्स के प्रेजेंटेशन में कहा गया कि हिंसा का तात्कालिक कारण प्रमुख मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग थी, जिससे सरकारी नौकरियों और कॉलेज प्रवेशों में कोटा मिल सके। कुकी-ज़ो समुदाय सहित अन्य जनजातीय समूहों ने इसका विरोध किया। लेकिन प्रेजेंटेशन में, असम राइफल्स के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की नीतियों की ओर इशारा किया, जिनके बारे में उनका मानना था कि इससे समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ी है। इसने संघर्ष को भड़काने के लिए अन्य बातों के अलावा, "ड्रग्स के खिलाफ कार्रवाई" और "मुखर सोशल मीडिया असहमति" पर बीरेन सिंह के "कठोर रुख" का उल्लेख किया।
प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि जातीय संघर्ष का एक अन्य कारण "मैतेई पुनर्जागरण" है। यहा पुनर्जागरण 18वीं शताब्दी में हिंदू धर्म के आगमन और बाद में 1949 में मणिपुर के भारत में विलय से पहले अपनी पहचान वापस पाने की इच्छा रखने वाले मैतेई समुदाय के लंबे इतिहास को संदर्भित करता है। इस अभियान के कारण 1930 के दशक में इसे बढ़ावा मिला। जो बाद में सशस्त्र आंदोलन में बदल गया।
रिपोर्ट्स कलेक्टिव के मुताबिक मैतेई लीपुन, जो हाल ही में पैदा हुआ संगठन है, को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा से प्रभावित माना जाता है, जो भाजपा सहित कट्टरपंथी हिंदू संगठनों के एक समूह का स्रोत है। मैतेई लीपुन के नेता खुले तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीरेन सिंह, मैतेई के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हैं। मैतेई लीपुन नेता, प्रमोत सिंह ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव से कहा: “हम (मैतेई) सनातन धर्म के अनुयायी हैं। ...अगर मैतेई विलुप्त हो गए, तो मणिपुर में सनातन धर्म की आखिरी चौकी भी उसी तरह खत्म हो जाएगी, जैसे कश्मीरी पंडित खत्म हो गए हैं।''
रिपोर्टर्स कलेक्टिव का कहना है कि असम राइफल्स का प्रेजेंटेशन संघर्ष के राजनीतिक और कारोबारी आधार, भाजपा के तहत केंद्र सरकार की भूमिका और असम राइफल्स की अपनी विफलताओं और कथित पूर्वाग्रह पर चुप है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने 8,169 एफआईआर का विश्लेषण करके संघर्ष की प्रारंभिक अवधि को फिर से रेखांकित करने का प्रयास किया। 5,818 मई में और 2,351 जून 2023 में दर्ज की गईं थी।
3 मई 2023 को, दोनों समुदायों के बीच हिंसा की प्रारंभिक शुरुआत दर्ज करते हुए एफआईआर दर्ज की गई थी। अधिकारियों द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार: “कुकी और मैतेई युवाओं की एक बड़ी संख्या, जिनकी संख्या लगभग 1,500 थी, एक-दूसरे से भिड़ गए और टोरबुंग बांग्ला में दोनों समुदायों के कई घरों में तोड़फोड़ की और उन्हें जला दिया। उसमें करीब 300 की संख्या में कई घर और कुछ निजी वाहन भी दंगाइयों ने जला दिये थे. पुलिस कर्मियों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए कुछ राउंड आंसू गैस के धुएं वाले बम और अन्य गोला-बारूद दागे।''