लॉ फैकल्टी की डीन, प्रोफेसर अंजू वली टिक्कू ने कहा, “शिक्षा में भारतीय नजरिए को पेश करने के लिए न्यू एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) 2020 के अनुरूप मनुस्मृति को पेश किया गया है। जिस यूनिट के अंतर्गत इसे प्रस्तुत किया गया है वह अपने आप में एक विश्लेषणात्मक इकाई है। इसलिए, छात्रों को विश्लेषणात्मक सकारात्मकता की तुलना करने और समझाने के लिए यह कदम उठाया गया है।''
दिल्ली यूनिवर्सिटी के तमाम शिक्षकों का कहना है कि “देश में 85 फीसदी आबादी हाशिए पर रहने वालों की है और 50 फीसदी आबादी महिलाओं की है। उनकी प्रगति एक प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली और शिक्षण पर निर्भर करती है। मनुस्मृति में कई धाराओं में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकारों का विरोध किया गया है। मनुस्मृति के किसी भी खंड या हिस्से का परिचय हमारे संविधान की मूल संरचना और भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा के मूल अध्ययन में मनुस्मृति के श्लोक को शामिल करने से महाराष्ट्र के विभिन्न समुदाय के लोगों में चिंता बढ़ गई। इस पर एनसीपी अजीत पवार के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने चेतावनी जारी की अगर इसे लागू किया गया तो हम सरकार से हट जाएंगे।राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री और वरिष्ठ एनसीपी नेता छगन भुजबल ने इस प्रयास पर आपत्ति जताई और अजीत से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मई 2024 में गरवारे क्लब में एनसीपी की एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "अब हमारे छात्रों को मनुस्मृति और मनचे श्लोक से छंद याद करने के लिए कहा जाएगा। यह भाजपा द्वारा उठाए गए नारे 'अब की बार, 400 पार' से भी अधिक खतरनाक है, जिसने यह धारणा बनाने में मदद की कि सरकार संविधान को बदलना चाह रही है। हमने मनुस्मृति को जलाया है क्योंकि हम चतुर्वर्ण (जाति व्यवस्था) के विरोधी थे। यह सब तुरंत बंद होना चाहिए।”