रफ़ाल मामले में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी सार्वजनिक मंचों से प्रधानमंत्री मोदी पर रफ़ाल डील को लेकर निशाना साधते रहे हैं। ऐसे में रफ़ाल मामले पर कोर्ट के आज के फ़ैसले के बाद मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
तीन जज़ों की बेंच ने इस मामले पर 14 मार्च को सुनवाई पूरी कर ली थी। ये याचिकाएँ 36 रफ़ाल लड़ाकू जहाज़ ख़रीदने के सरकार के फ़ैसले से जुड़ी याचिकाओं पर बीते साल 14 दिसंबर के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर फिर से विचार करने के लिए दायर की गई थीं।
सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सर्वोच्च अदालत से कहा था कि ये याचिकाएँ रफ़ाल के चुराए गए दस्तावेज़ों पर आधारित हैं, लिहाज़ा, इन्हें खारिज कर दिया जाना चाहिए।
सरकार चाहती थी कि रफ़ाल से जुड़े दस्तावेज की पड़ताल पर अदालत रोक लगा दे, हालाँकि मीडिया में उससे जुड़ी ख़बरें पहले ही छप चुकी हैं। 'द हिन्दू' ने रफ़ाल से जुड़ी ख़बरें लगातार छापी थीं और सरकार ने आरोप लगाया था कि ये ख़बरें चोरी के दस्तावेज़ पर आधारित हैं। सरकार ने यह भी कहा था कि यह ऑफ़िशियल सीक्रेट्स एक्ट का उल्लंघन है। अख़बार ने इससे इनकार किया था और अख़बार के प्रमुख और ख़बरें लिखने वाले एन. राम ने कहा था कि वे हर कीमत पर अपने स्रोत की गोपनीयता बरक़रार रखेंगे।
यह फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब लोकसभा चुनाव की ज़ोरदार तैयारियाँ चल रही हैं, प्रचार अभियान तेज़ हो चुका है। गुरुवार यानी अगले दिन ही पहले चरण का मतदान है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के राजनीतिक मायने निकाले जाएँगे।
कोर्ट के फ़ैसले के सियासी इस्तेमाल से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। हालाँकि सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी रफ़ाल के मुद्दे पर रक्षात्मक मुद्रा में है, पर उसने इसे रक्षा सौदों और सरकार की गोपनीयता से जोड़ कर राष्ट्रीयता का मुद्दा ज़रूर खड़ा कर रखा है।