राहुल गांधी ने जाति जनगणना कराने के केंद्र के फ़ैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इस क़दम को कांग्रेस का विज़न बताया। उन्होंने कहा, 'हमारा विज़न था, खुशी है कि उन्होंने इसे अपनाया।' हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह इस प्रक्रिया के लिए एक साफ़ टाइम लाइन चाहते हैं। यह क़दम सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक क़दम माना जा रहा है, लेकिन इसके कार्यान्वयन और परिणामों को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं।

राहुल गांधी की यह टिप्पणी तब आई है जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने की मंजूरी दी है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पिछले कई वर्षों से जाति जनगणना को अपनी राजनीतिक और सामाजिक एजेंडा का मुख्य मुद्दा बनाया है। उन्होंने इसे न केवल एक जनगणना बल्कि सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने का आधार बताया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में राष्ट्रव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना का वादा किया था, जिसमें जातियों, उप-जातियों और उनके सामाजिक-आर्थिक हालात का आकलन करने की बात थी। राहुल ने इसे 'राष्ट्रीय एक्स-रे' क़रार देते हुए कहा कि यह देश में धन वितरण और संस्थागत भागीदारी की वास्तविक स्थिति को उजागर करेगा।

उन्होंने बार-बार दावा किया है कि भारत की 90% आबादी दलितों, आदिवासियों, पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों की है और उनको नौकरशाही, न्यायपालिका या मीडिया में सही प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। राहुल ने 20 मार्च को पूर्व यूजीसी अध्यक्ष सुखदेव थोराट के साथ बातचीत में कहा था कि जाति जनगणना असमानता की सच्चाई को सामने लाने का एक महत्वपूर्ण क़दम है और इसे समर्थन न करना 'राष्ट्र-विरोधी' है।

राहुल ने कहा, "हमने संसद में कहा था- हम 'जातिगत जनगणना' करवा के ही मानेंगे, साथ ही आरक्षण में 50% सीमा की दीवार को भी तोड़ देंगे। पहले तो नरेंद्र मोदी कहते थे कि सिर्फ चार जातियां हैं, लेकिन अचानक से उन्होंने जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर दी। हम सरकार के इस फैसले का पूरा समर्थन करते हैं, लेकिन सरकार को इसकी टाइमलाइन बतानी होगी कि जातिगत जनगणना का काम कब तक पूरा होगा?"

उन्होंने कहा, 'जातिगत जनगणना में बिहार और तेलंगाना का मॉडल है- इनके बीच में जमीन-आसमान का फर्क है। तेलंगाना जातिगत जनगणना के लिए एक मॉडल बना है और यह एक ब्लूप्रिंट बन सकता है। हम जातिगत जनगणना को डिजाइन करने में सरकार की मदद करेंगे, क्योंकि ये डिजाइन बहुत जरूरी है। हम देश में जातिगत जनगणना के माध्यम से एक नए तरीके का विकास लाना चाहते हैं। चाहे ओबीसी हों, दलित हों या आदिवासी- इनकी देश में कितनी भागीदारी है- यह सिर्फ जातिगत जनगणना से पता चलेगा, लेकिन हमें और आगे जाना है। हमें पता लगाना है कि देश की संस्थाओं और पावर स्ट्रक्चर में इन लोगों की कितनी भागीदारी है।'

उन्होंने आगे कहा, 'इसके अलावा, कांग्रेस पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में लिखा था कि आर्टिकल 15(5) के तहत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू किया जाए और हमारी मांग है कि सरकार इसे तत्काल लागू करे। ये हमारा विजन है, लेकिन सरकार ने इसे स्वीकार किया, इसलिए हम उनका धन्यवाद देते हैं। हमें पूरी टाइमलाइन चाहिए कि कब तक जातिगत जनगणना का काम पूरा हो जाएगा। इसके अलावा डेवलपमेंटल विजन भी हमारे सामने रखा जाना चाहिए।'

केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को कई राजनीतिक दलों और नेताओं ने स्वागत किया है, लेकिन कांग्रेस ने इसका श्रेय राहुल गांधी की निरंतर मांग को दिया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, 'राहुल गांधी ने बार-बार कहा था—'जाति जनगणना होकर रहेगी। आज सरकार उनके साथ है।' कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने 2023 में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र का हवाला देते हुए कहा कि पार्टी ने इस मुद्दे को दो साल पहले उठाया था।

हालांकि, कांग्रेस ने सरकार के इरादों और समय पर सवाल उठाए हैं। खेड़ा ने कहा, 'निर्णय का समय दिलचस्प है। हम उम्मीद करते हैं कि इसके पीछे ईमानदारी हो।' राहुल गांधी ने भी समय सीमा की मांग की है, यह इशारा करते हुए कि बिना स्पष्ट योजना के यह क़दम केवल प्रतीकात्मक हो सकता है।

भारत में आखिरी बार 1931 में जाति आधारित जनगणना हुई थी। 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए, जिसे कांग्रेस ने बीजेपी पर पिछड़े वर्गों के साथ धोखा करने का आरोप लगाते हुए आलोचना की थी।

कांग्रेस कार्य समिति ने 9 अक्टूबर, 2023 को सर्वसम्मति से जाति जनगणना का समर्थन किया था, जिसे राहुल गांधी की पहल बताया गया।

तेलंगाना में कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई जाति जनगणना को राहुल ने राष्ट्रीय मॉडल के रूप में सराहा है। उन्होंने कहा कि तेलंगाना में 70% से अधिक सर्वेक्षण पूरा हो चुका है, जो नीति निर्माण और सामाजिक न्याय को मजबूत करेगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने भी इस उपलब्धि का श्रेय राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उठाई गई मांग को दिया।

बीजेपी ने जाति जनगणना का स्पष्ट रूप से विरोध नहीं किया है, लेकिन उसने इसे सामाजिक विभाजन का कारण बनने वाला क़दम बताते हुए सावधानी बरतने की बात कही है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सीआर केसवान ने राहुल गांधी की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी मेरिट और शिक्षा प्रणाली पर टिप्पणियाँ कांग्रेस की 'वंशवादी' मानसिकता को दिखाती हैं। बीजेपी ने यह भी दावा किया है कि कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से दलित, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी नेताओं का अपमान किया है।

राहुल ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह दलितों और आदिवासियों के इतिहास को मिटाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने राम मंदिर उद्घाटन और नए संसद भवन के उद्घाटन में दलितों और आदिवासियों की अनुपस्थिति का हवाला दिया।

जाति जनगणना एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है। यह न केवल जातियों की संख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दर्ज करेगी, बल्कि धन वितरण और संस्थागत भागीदारी जैसे मुद्दों को भी उजागर करेगी। जानकारों का मानना है कि इसके परिणाम आरक्षण नीतियों, सरकारी योजनाओं और सामाजिक न्याय के लिए नए दिशानिर्देश तय कर सकते हैं। हालांकि, डेटा संग्रह की सटीकता, गोपनीयता और इसके दुरुपयोग की आशंकाएं भी हैं।

राहुल गांधी ने यह साफ़ किया है कि वह केवल गणना तक सीमित नहीं रहना चाहते। उन्होंने आर्थिक और संस्थागत सर्वेक्षण की भी मांग की है, जो यह बताएगा कि विभिन्न समुदायों का देश की संपत्ति और शक्ति संरचना में कितना हिस्सा है।

यह दृष्टिकोण सामाजिक न्याय को एक व्यापक आयाम देता है, लेकिन इसे लागू करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

केंद्र सरकार द्वारा जाति जनगणना को मंजूरी देना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण क़दम है, जिसे राहुल गांधी और कांग्रेस ने अपनी नीतिगत जीत के रूप में पेश किया है। हालाँकि, इस क़दम की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे कितनी पारदर्शिता और गंभीरता के साथ लागू किया जाता है। राहुल गांधी की मांग कि 90% आबादी को देश के संसाधनों और अवसरों में उचित हिस्सेदारी मिले, सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा क़दम हो सकता है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक सहमति की ज़रूरत होगी।

जैसा कि राहुल ने कहा, 'जाति जनगणना केवल राजनीति नहीं, यह मेरी ज़िंदगी का मिशन है।' यह देखना बाक़ी है कि यह मिशन भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना को कितना बदल पाता है।