सेवानिवृत्त जजों ने भारत के उपराष्ट्रपति के पद के सम्मान को ध्यान में रखते हुए नाम लेकर आलोचना करने से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस तरह की टिप्पणियाँ न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाती हैं, बल्कि देश के एक संवैधानिक पद की गरिमा को भी प्रभावित करती हैं।
जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस एस.एस. निज्जर की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्त करना और उन्हें हथियार देकर माओवादियों के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता का अधिकार और अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि सलवा जुडूम जैसे अभियान राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा को बढ़ावा देते हैं और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाते हैं। कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को आदेश दिया था कि सलवा जुडूम को तत्काल भंग किया जाए और आदिवासियों को दी गई बंदूकें वापस ली जाएं।