देश में लोगों के ऊपर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। कोविड महामारी के कई खराब असर में एक असर यह भी है। उसके बाद से देश में आम घरों पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है।लोग न केवल अधिक पर्सनल लोन ले रहे हैं बल्कि रोज़मर्रा का सामान खरीदने के लिए भी कई बार कर्ज लिया जा रहा है। पिछले तीन सालों में पर्सनल लोन लेने वाले लोगों की संख्या 75% बढ़ गई है। यानि पहले अगर 100 लोग लोन ले रहे थे तो अब 175 लोग कर्जे के नीचे दब गये हैं।

इतना ही नहीं लोग क्रेडिट कार्ड के पैसे भी वापस नहीं कर पा रहे हैं। आंकड़ों की कहानी सुनी जाए तो हर तरफ तंगी का माहौल नज़र आता है। जैसे कि सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी की बात हो तो आप जानकर चौंक जाएंगे कि 2019 तक घरेलू कर्ज इसके एक तिहाई के बराबर था। पिछले दो सालों में यह बढ़कर लगभग आधा हो गया है।  दूसरे शब्दों में कहें तो घरेलू आय में इतनी वृद्धि नहीं हुई है कि खपत और बचत को ऐसे स्तरों पर बनाए रखा जा सके। यह पूरी बात चिंता का विषय है क्योंकि ये कर्ज इनवेस्टमेंट के लिए नहीं लिए जा रहे हैं। इनका उद्देश्य दैनिक जीवन जीना है। जिनकी आय तनिक कम यानि 5 लाख सालाना से कम है वे इस तरह के कर्ज अधिक ले रहे हैं। वहीं इससे अधिक आय वाले लोगों ने भी घर और कार जैसी चीज़ों के लिए काफी लोन लिया है। सबसे बड़ी बात, अब न केवल अधिक से अधिक परिवार कर्ज ले रहे हैं, बल्कि वे पहले से भी कहीं अधिक कर्ज ले रहे हैं।

न सिर्फ कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ी है,  कर्ज न चुकाने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बताया कि 50,000 रुपये से कम पर्सनल लोन लेने वालों में लगभग हर दसवें आदमी का लोन बचा हुआ है। वही हाल क्रेडिट कार्ड में भी है। 2023-24 में भारत में क्रेडिट कार्ड डिफ़ॉल्ट्स यानि क्रेडिट कार्ड का पैसा न चुकाने वाले लोग लगभग एक तिहाई ज़्यादा हो गये। यानी क्रेडिट कार्ड का पैसा न चुकाने वालों पर कुल अब ₹6,742 करोड़ बकाया हैं। वहीं 2022-23 के वित्त वर्ष  में यह आंकड़ा ₹5,270 करोड़ था। 
यह इस बात का संकेत भी देता है कि लोग पैसे नहीं चुका पा रहे हैं।  इसके पीछे के मुख्य कारणों को जब टटोला गया तो महंगाई, बढ़ती ब्याज दरें और युवाओं में बढ़ती क्रेडिट निर्भरता जैसे कारण मिले। एक्स्पर्ट्स की बात मानें तो यह ट्रेंड न केवल बैंकों के लिए जोखिम भरा है, बल्कि देश की आर्थिक स्थिरता के लिए भी चिंता का विषय बनता जा रहा है।

कर्ज के ऊपर कर्ज ले रहे हैं लोगः 2024-25 की दूसरी तिमाही में, व्यक्तिगत ऋण लेने वाले लगभग तीन-पांचवें ग्राहकों के पास तीन से अधिक ऋण थे। इतना ही नहीं इस समय में माइक्रोफाइनेंस का चक्कर भी बढ़ा है। एक आँकड़े के मुताबिक सितंबर 2024 में माइक्रोफाइनेंस से लोन लेने वालों की संख्या 6% थी। इससे आर बी आई चिंता में है। नवंबर 2023 में, RBI ने ऋण वृद्धि को धीमा करने के लिए अलग-अलग उपाय किए। जैसे NBFC को बैंकों के लिए कंज्यूमर लोन पर रिस्क लोड बढ़ा दिया। लेकिन सवाल यह है कि मौजूदा ऋण स्तरों और धीमी आय वृद्धि को देखते हुए, पहले से ही अधिक ऋणग्रस्त परिवार किस हद तक खपत को बढ़ावा देने के लिए और अधिक ऋण ले सकते हैं? यहाँ यह बता दें आपको, ज्यादा कर्ज लेना बेरोजगारी और अपर्याप्त वेतन का संकेत है।

कम आय, कम खपत और FMCG कंपनियां!







आय की कमी लोगों की खपत को भी नियंत्रित कर रही है। इससे उद्योग प्रभावित हो रहे हैं। लोग अधिक खर्च नहीं कर पा रहे हैं। चीजों की कीमत बढ़ रही है। ऐसे में निजी उपभोग का सामान बनाने वाली कंपनियों को भी नुकसान हो रहा है। हाल के दिनों में बाजार में एक शांत पर बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इसमें कंपनियां अपने सामान का साइज़  या मात्रा घटा देती हैं पर कीमत वही रहती है। इसे “श्रिंकफ्लेशन” (Shrinkflation) कहा जाता है। 
बड़ी FMCG कंपनियाँ जैसे ब्रिटानिया, ITC, Parle और गोदरेज ने ये तरीका अपनाया है। वे ऐसा कर रही हैं ताकि सीधे दाम बढ़ाए बिना बढ़ती लागत से निपटा जा सके। उदाहरण के तौर पर, आपने अपने फेवरेट चिप्स, नूडल्स या फिर बिस्किट का पैकेट देखा होगा। पहले जिस कीमत में अधिक सामान मिलता था अब वह कम हो गया है। उसी कीमत में अब छोटा पैकेट मिलता है।  इसकी वजह है कि बीते एक साल में तेल, गेहूं और चीनी जैसी कच्ची सामग्रियों की कीमतों में 20% से 45% तक की तेज़ बढ़ोतरी हुई है। लोगों की आय में वैसी बढ़त नहीं हुई है। इस वजह से लोग बढ़ी कीमत पर सामान खरीदने को तैयार नहीं हैं। फूड कंपनियों को इससे नुकसान हो रहा था तो उन्होंने अपने अपने प्रॉडक्ट की कीमत तो वही राखी पर मात्रा घटा दी। 
बढ़ता कर्ज हो, बढ़ते क्रेडिट कार्ड डिफॉल्टर हों या फूड पैकेट का घटता आकार हो, सारी बातें एक ही जगह पहुँचती हैं, वह है आय और व्यय में अंतर! आय का स्थिर रहना और खर्च का बढ़ते जाना!