सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग इस बात पर अड़ गया कि बीएलओ पर काम का कोई दबाव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीएलओ का बोझ कम करने के लिए क्षेत्रीय अधिकारी या कर्मचारी तैनात किए जाएं। सुनवाई जारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 4 दिसंबर को एसआईआर मामले की सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने SIR के काम में लगे बीएलओ का कार्यभार कम करने के लिए क्षेत्रीय अधिकारियों की नियुक्ति का आदेश दिया है। यह आदेश उन सभी राज्यों के लिए है जहां इस समय यह प्रक्रिया चल रही है। हालांकि गुरुवार को अदालत में सुनवाई के दौरान भारत के चुनाव आयोग ने बार-बार कहने की कोशिश की, कि बीएलओ पर एसआईआर के काम का दबाव नहीं है। हालांकि चुनाव आयोग तक उन बीएलओ के वीडियो नहीं पहुंचे, जिनमें वो काम के दबाव में जान देने की बात कह रहे हैं। कुछ बीएलओ के परिवारों ने भी यही आरोप लगाया। अभी बुधवार को मेरठ से मोहित चौधरी नामक बीएलओ की खुदकुशी का वीडियो सामने आया। उनके परिवार ने भी काम के दबाव के आरोप दोहराए। लेकिन चुनाव आयोग अदालत में अड़ा हुआ है कि बीएलओ पर प्रेशर नहीं है।
बीएलओ पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर गौर करें
सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने टिप्पणी की कि "राज्य सरकारों/राज्य चुनाव आयोगों द्वारा भारत के चुनाव आयोग के निपटान में वैधानिक कर्तव्यों, जिसमें SIR भी शामिल है, के प्रदर्शन के उद्देश्य से नियुक्त किए गए कर्मचारी ऐसे कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।" चीफ जस्टिस की बेंच ने आगे कहा: "यदि वे कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, जिनमें उनके नियमित कर्तव्यों के साथ-साथ भारत के चुनाव आयोग द्वारा सौंपे गए अतिरिक्त कर्तव्यों का बोझ भी शामिल है, तो राज्य सरकारें ऐसी कठिनाइयों को दूर कर सकती हैं, जिसके लिए हम निम्नलिखित निर्देश जारी करना उचित समझते हैं:
- राज्य सरकारें भारत के चुनाव आयोग के काम निपटाने में अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति की ज़रूरत पर विचार कर सकती हैं ताकि कामकाजी घंटों को उसी अनुपात में कम किया जा सके।
- जहां भी किसी कर्मचारी के पास ECI द्वारा सौंपे गए कर्तव्य से छूट मांगने का कोई विशेष कारण है, राज्य सरकार का सक्षम प्राधिकारी उस मामले के आधार पर ऐसे अनुरोधों पर विचार करेगा और ऐसे व्यक्ति को दूसरे कर्मचारी से बदलेगा। हालांकि, इसे इस तरह समझा या माना नहीं जाएगा कि यदि उनकी जगह कोई और नहीं है। दूसरे शब्दों में, राज्य सरकारें ECI के काम में चाहे गए कर्मचारी तैनात करने के लिए बाध्य होगा, हालांकि ऐसे कर्मचारियों की संख्या को ऊपर बताए अनुसार बढ़ाया जा सकता है।
मुआवज़े और FIR पर कोर्ट का रुख
SIR ड्यूटी के दौरान मरने वाले BLOs के लिए अनुग्रह राशि (ex-gratia compensation) मांगने वाले आवेदन में अन्य प्रार्थनाओं के संबंध में, पीठ ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति या याचिकाकर्ता बाद के चरण में आवेदन दायर कर सकते हैं।कोर्ट अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेट्री कज़गम (TVK) द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा है। जिसमें SIR कर्तव्यों में चूक को लेकर बूथ लेवल अधिकारियों के खिलाफ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत भारत के चुनाव आयोग द्वारा की जा रही दंडात्मक कार्रवाई को रोकने की मांग की गई है।
TVK की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उत्तर प्रदेश में BLOs के खिलाफ ECI द्वारा RP अधिनियम की धारा 32 के तहत FIR दर्ज की गई हैं। उन्होंने तर्क दिया कि BLOs, जो ज्यादातर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षक हैं, इतने कम समय में SIR कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उनमें से कई को अपने नियमित कर्तव्यों से पहले या बाद में, सुबह जल्दी या देर रात SIR ड्यूटी के लिए जाना पड़ता है।
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि ECI खुद इन कामों को नहीं कर सकता है। उसे राज्य के अधिकारियों को लेना पड़ता है। सीजेआई ने कहा, "राज्य सरकार इस दायित्व से पीछे नहीं हट सकती है, जाहिर है, वे (आयोग) एक कर्तव्य के तहत हैं... यदि मामले-दर-मामले के आधार पर कोई कठिनाई महसूस हो रही है, तो राज्य सरकार उन्हें छूट देगी और एक विकल्प देगी।"
- इस पर शंकरनारायणन ने पूछा, "ECI को FIR क्यों दर्ज करनी चाहिए?" सीजेआई ने जवाब दिया, "यह पहली बार नहीं है, पहले भी वे इसे दर्ज करते रहे हैं।"
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि BLOs पर दबाव एक कठोर वास्तविकता है। उन्होंने पूछा कि उत्तर प्रदेश में SIR के लिए केवल एक महीना क्यों दिया गया है जबकि चुनाव 2027 में होने हैं।
हालांकि, बेंच ने बताया कि किसी भी राज्य ने कठिनाइयों का हवाला देते हुए कोर्ट का रुख नहीं किया है। ECI की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि तमिलनाडु में 90% से अधिक फॉर्म उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने कहा कि ECI ने केवल तभी आपराधिक कार्यवाही का सहारा लिया जब BLOs ने अपने कर्तव्यों का पालन करने में अनिच्छा दिखाई।