सोशल मीडिया पर अपलोड की जाने वाली सामग्री की जवाबदेही तय करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि "किसी को तो जवाबदेह होना पड़ेगा"। सुप्रीम अदालत ने केंद्र सरकार को यूजर-जनरेटेड कंटेंट (User-Generated Content) से निपटने के लिए चार सप्ताह के भीतर नियम लाने का निर्देश दिया है।

यह टिप्पणी 'इंडियाज़ गॉट लैटेंट' (India's Got Latent) मामले की सुनवाई के दौरान की गई, जिसने यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया और सम्य रैना जैसे कई ऑनलाइन कंटेंट क्रिएटर्स को सुर्खियों में ला दिया था। लेकिन इस टिप्पणी का व्यापक संदर्भ भी है।

"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विकृति की ओर न ले जाए"

कोर्ट में सुनवाई के दौरान, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला केवल अश्लीलता का नहीं, बल्कि "विकृति" (Perversion) का है, जो यूजर-जनरेटेड कंटेंट में एक बड़ी कमी है। मेहता ने अपनी बात रखते हुए कहा, "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अमूल्य अधिकार है, लेकिन यह विकृति की ओर नहीं ले जा सकती।" चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा, "समस्या यही है कि मेरा अपना चैनल है, मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हूं... किसी को तो जवाबदेह होना पड़ेगा।" सीजेआई ने यह टिप्पणी  खासतौर पर यूट्यूब चैनलों के संदर्भ में की है।



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जस्टिस जॉयमाल्य बागची, जो बेंच का हिस्सा थे, ने 'राष्ट्र-विरोधी' (Anti-national) कंटेंट के मुद्दे पर प्रकाश डाला। उन्होंने पूछा, "जहां कंटेंट को राष्ट्र-विरोधी माना जाता है, क्या कंटेंट क्रिएटर इसकी जिम्मेदारी लेगा? हमें जिस मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है, वह है प्रतिक्रिया का समय। एक बार जब आपत्तिजनक सामग्री अपलोड हो जाती है, तो अधिकारियों के प्रतिक्रिया करने से पहले ही वह लाखों दर्शकों तक वायरल हो जाती है, इसे कैसे नियंत्रित किया जाए?"

'आधार कार्ड' से उम्र सत्यापन पर विचार

अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि समाज में बच्चों को भी अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है, लेकिन "अगर आप सब कुछ प्रसारित करने की अनुमति देते हैं, तो आप क्या करेंगे? क्या आप उम्मीद करते हैं कि निर्दोष लोग खुद जाकर अपना बचाव करेंगे... हर किसी की पहुंच इस कोर्ट तक नहीं होगी।" जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि ऐसी सामग्री के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए जो सामान्य उपभोग के लिए उपयुक्त न हो, और यह केवल 18 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए ही नहीं होनी चाहिए। उनका इशारा सोशल मीडिया चैनलों को देखने के लिए आयु तय होना चाहिए। यह आयु उसके आधार से तय हो सकती है।



चीफ जस्टिस ने इस संबंध में कुछ सुझाव वाले विचार दिए: "मुद्दा यह है कि डिस्क्लेमर (Disclaimer) दिया जाता है और शो शुरू हो जाता है। लेकिन जब तक आप देखने से मना करते हैं, तब तक वह शुरू हो चुका होता है। चेतावनी कुछ सेकंड के लिए हो सकती है... फिर शायद आपका आधार कार्ड मांगा जाए, ताकि आपकी उम्र सत्यापित हो सके, और फिर कार्यक्रम शुरू हो।" उन्होंने स्पष्ट किया कि ये विचार केवल उदाहरण मात्र हैं।

ऑटोनामस रेगुलेटरी अथॉरिटी की वकालतः कोर्ट ने एक स्वायत्त नियामक निकाय (Autonomous Regulatory Body) की स्थापना के लिए ज़ोर दिया, जिसमें न्यायपालिका और मीडिया सहित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं। पीठ ने कहा, "इसे एक पायलट आधार पर आने दीजिए और अगर यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करता है, तो इसे तब देखा जा सकता है। हमें एक जिम्मेदार समाज बनाने की ज़रूरत है, और एक बार ऐसा होने पर, अधिकांश समस्याएं हल हो जाएंगी।"

कॉमेडियन समय रैना का मामला: 'पैसे नहीं, गरिमा चाहिए'

सुनवाई के दौरान कॉमेडियन समय रैना का मामला भी उठा, जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से पीड़ित व्यक्तियों पर अपनी टिप्पणी के कारण विवादों में घिर गए थे। सीनियर एडवोकेट अपराजिता सिंह, जो SMA से पीड़ित लोगों के हितों के लिए लड़ रहे संगठन की ओर से पेश हुईं, ने कहा कि रैना द्वारा की गई टिप्पणियों से इन बच्चों को अपमानित और मज़ाक का पात्र बनाया गया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि समय रैना ने उनके खातों में ₹2.5 लाख जमा किए हैं, "लेकिन हमें वह नहीं चाहिए। हम अपनी गरिमा के लिए यहां हैं।"
इस पर चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, "आप एक बहुत कड़ा कानून लाने के बारे में क्यों नहीं सोचते, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC/ST Act) के समान हो, जिसमें यदि आप उन्हें नीचा दिखाते हैं, तो सज़ा का प्रावधान हो।" मेहता ने सहमति जताई, "हास्य किसी की गरिमा की कीमत पर नहीं हो सकता।"
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कोर्ट ने समय रैना को सुझाव दिया कि वह SMA से पीड़ित लोगों के लिए एक शो होस्ट करने पर विचार करें। बेंच ने कहा, "उन्हें आपका पैसा नहीं चाहिए। उन्हें गरिमा और सम्मान चाहिए। अपने मंच का उपयोग उनकी उपलब्धियों को दिखाने के लिए करें।"