सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को कड़ी चेतावनी दी है कि यदि बिहार में विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर अभियान में कोई गड़बड़ी या अवैधता साबित हुई तो कोर्ट पूरी प्रक्रिया को रद्द कर देगा। यह चेतावनी बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची के संशोधन को लेकर उठे विवाद के बीच आई है। कोर्ट ने साफ़ कहा कि मतदाता सूची को साफ़-सुथरा रखना ज़रूरी है, लेकिन इसका इस्तेमाल लोगों को वोट देने से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता।

बिहार में चुनाव आयोग ने 24 जून को विशेष गहन संशोधन यानी SIR अभियान की घोषणा की थी। इसका मक़सद मतदाता सूची को अपडेट करना है, ताकि सभी योग्य मतदाताओं को शामिल किया जा सके और अयोग्य नामों को हटाया जा सके। आयोग का कहना है कि पिछले 20 सालों में बड़े पैमाने पर नाम जोड़े और हटाए जाने से डुप्लिकेट एंट्रीज की आशंका बढ़ गई है। इस अभियान के तहत 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने हिस्सा लिया, जो 92% से ज्यादा है। लेकिन विपक्षी दल और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR जैसे चुनाव सुधार में लगे एनजीओ ने आरोप लगाया कि यह अभियान मनमाना और भेदभावपूर्ण है। उनका कहना है कि इससे करोड़ों गरीब, प्रवासी और अल्पसंख्यक मतदाताओं को वोट का हक छीना जा सकता है।
ताज़ा ख़बरें

'अंतिम सूची प्रकाशन से सुनवाई पर असर नहीं'

इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई को 7 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने 1 अक्टूबर से पहले सुनवाई की मांग की थी, क्योंकि इस तारीख को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होनी है, लेकिन जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने यह मांग ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा कि 28 सितंबर से दशहरा अवकाश के कारण एक सप्ताह के लिए कोर्ट बंद रहेगा, इसलिए सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।

जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं को आश्वासन दिया कि अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन से मामले के निर्णय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'अंतिम सूची के प्रकाशन से हमें क्या फर्क पड़ता है? अगर हमें लगता है कि कोई गैर-कानूनी कार्य हुआ है तो हम हस्तक्षेप करेंगे, चाहे सूची अंतिम हो या न हो।' यह बयान एडवोकेट प्रशांत भूषण द्वारा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से दिए गए तर्कों के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग अपने ही नियमों और मैनुअल का पालन नहीं कर रहा है।

प्रशांत भूषण ने दावा किया कि चुनाव आयोग को प्राप्त आपत्तियों को कानूनी रूप से अपलोड करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा।

पारदर्शिता पर जोर

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अनुरोध किया कि चुनाव आयोग को दैनिक आधार पर आपत्तियों और दावों का बुलेटिन प्रकाशित करने का निर्देश दिया जाए। इसके जवाब में चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि चुनाव आयोग साप्ताहिक अपडेट दे रहा है, क्योंकि आपत्तियों की जाँच जैसे कठिन कार्य के दौरान दैनिक अपडेट देना संभव नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को उपलब्ध जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में रखना चाहिए, क्योंकि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी। उन्होंने कहा, 'जितना संभव हो, आप जो कर रहे हैं, उसे सार्वजनिक डोमेन में लाएं... इससे पारदर्शिता आएगी।' जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग कम से कम प्राप्त आपत्तियों की संख्या को सार्वजनिक कर सकता है। हालाँकि, पीठ ने इन टिप्पणियों को आदेश का हिस्सा नहीं बनाया।

जल्द सुनवाई की मांग

राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. ए.एम. सिंघवी और एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट से मामले की सुनवाई जल्द करने का आग्रह किया। ग्रोवर ने तर्क दिया कि बिहार में नई विधानसभा का गठन 22 नवंबर तक होना है, जिसका मतलब है कि अक्टूबर के मध्य तक चुनाव अधिसूचित हो जाएँगे। इसलिए, प्रभावी हस्तक्षेप के लिए समय बहुत कम है। हालाँकि, पीठ ने 7 अक्टूबर की तारीख़ पर अडिग रहते हुए कहा कि यह कोर्ट के पुन: खुलने के बाद का पहला उपलब्ध दिन है।
देश से और ख़बरें

आधार कार्ड पर विवाद

एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने पिछले सप्ताह के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसमें एसआईआर प्रक्रिया में आधार कार्ड को पहचान के लिए 12वें दस्तावेज के रूप में उपयोग की अनुमति दी गई थी। उपाध्याय ने दावा किया कि बिहार में 'लाखों रोहिंग्या और बांग्लादेशी' हैं और आधार कार्ड के उपयोग की अनुमति देना विनाशकारी होगा। उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति भारत में 182 दिन रहकर आधार कार्ड प्राप्त कर सकता है और यह न तो नागरिकता का प्रमाण है और न ही निवास का।

जवाब में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है। उन्होंने कहा, 'ड्राइविंग लाइसेंस, आधार, कई दस्तावेज जाली हो सकते हैं... आधार का उपयोग क़ानून द्वारा मंजूर की गई सीमा तक किया जाना चाहिए।' हालाँकि, पीठ ने उपाध्याय के आवेदन पर नोटिस जारी किया।

बता दें कि 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि मतदाता सूची में शामिल होने के लिए आधार कार्ड, राशन कार्ड और EPIC को दस्तावेजों के रूप में माना जाए। 28 जुलाई को कोर्ट ने चुनाव आयोग को 1 अगस्त को बिहार के लिए प्रारंभिक मतदाता सूची प्रकाशित करने से रोकने से इनकार किया, लेकिन मौखिक रूप से आधार कार्ड और EPIC पर विचार करने को कहा। 22 अगस्त को कोर्ट ने चुनाव आयोग को 65 लाख हटाए गए मतदाताओं को आधार कार्ड के साथ ऑनलाइन आवेदन जमा करने की अनुमति देने का निर्देश दिया। 
सर्वाधिक पढ़ी गयी ख़बरें

आधार कार्ड मान्य दस्तावेज

8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार कार्ड को पहचान के लिए 12वें दस्तावेज के रूप में मानने का निर्देश दिया, लेकिन यह भी साफ़ किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा और चुनाव आयोग के अधिकारी आधार कार्ड की प्रामाणिकता की जांच कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के SIR को लेकर चल रहे विवाद में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। हालाँकि, याचिकाकर्ताओं की जल्द सुनवाई की मांग को ठुकराते हुए कोर्ट ने 7 अक्टूबर की तारीख़ तय की है। इस मामले में अगली सुनवाई में कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले निर्णय पर सभी की नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट की चेतावनी से चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ गया है। अब देखना यह है कि आयोग पारदर्शिता सुनिश्चित करता है या नहीं। यह मामला न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश के चुनावी प्रक्रिया पर असर डालेगा।