सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रेजिडेंशियल रेफ़रेंस के मामले में केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उठाए गए 14 सवालों से जुड़ा है, जिसमें यह पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट गवर्नर और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय कर सकता है। इस मामले की सुनवाई अगले मंगलवार यानी 29 जुलाई 2025 को होगी। इसके साथ ही अदालत ने कहा है कि इसे अगस्त में विस्तार से सुना जाएगा।

अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, 'ये संविधान की व्याख्या के मुद्दे हैं। हमने अटॉर्नी जनरल से सहायता करने का अनुरोध किया है। केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया जाए। सॉलिसिटर जनरल केंद्र की ओर से पेश होंगे। सभी राज्य सरकारों को ईमेल के माध्यम से नोटिस भेजा जाए। इसे अगले मंगलवार के लिए सूचीबद्ध करें। सभी स्थायी वकीलों को भी नोटिस भेजा जाए।'
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यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु सरकार बनाम तमिलनाडु के गवर्नर मामले में एक अहम फ़ैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा था कि गवर्नर और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों पर फ़ैसला करने के लिए समय-सीमा का पालन करना होगा। कोर्ट ने तय किया था कि-
  • अगर गवर्नर किसी बिल को वापस विधानसभा को भेजते हैं और विधानसभा उसे दोबारा पास करती है तो गवर्नर को एक महीने के भीतर उस पर फ़ैसला करना होगा। 
  • अगर गवर्नर बिल को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर उस पर फ़ैसला करना होगा।
  • अगर इस समय सीमा का पालन नहीं होता है तो बिल को सहमति मिलना मान लिया जाएगा।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर गवर्नर या राष्ट्रपति बिल पर समय पर कार्रवाई नहीं करते तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकती है। कोर्ट ने अपने इस फ़ैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया, जो उसे न्याय करने के लिए विशेष शक्तियाँ देता है।
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राष्ट्रपति ने क्यों उठाए सवाल?

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 मई 2025 को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों पर राय मांगी। इन सवालों में पूछा गया कि
  • क्या सुप्रीम कोर्ट गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए बिल मंजूरी की समय सीमा तय कर सकता है, जब संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में ऐसी कोई समय सीमा नहीं है?
  • क्या अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करके कोर्ट गवर्नर और राष्ट्रपति की शक्तियों को बदल सकता है?
  • क्या गवर्नर का बिल पर मंजूरी न देना या उसे राष्ट्रपति के पास भेजना कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
  • क्या बिना गवर्नर की मंजूरी के कोई बिल क़ानून बन सकता है?
  • क्या केंद्र और राज्यों के बीच विवाद केवल अनुच्छेद 131 के तहत ही सुलझाए जा सकते हैं, या अन्य तरीक़ों से भी?
  • राष्ट्रपति ने कहा कि कोर्ट का 'डीम्ड असेंट' यानी बिल को स्वतः मंजूर मानने का विचार संविधान के नियमों के खिलाफ है और इससे गवर्नर व राष्ट्रपति की शक्तियां कम हो सकती हैं।

तमिलनाडु का मामला

यह सारा विवाद तमिलनाडु से शुरू हुआ। तमिलनाडु के गवर्नर आर.एन. रवि ने 2020 से 2023 के बीच विधानसभा द्वारा पारित 10 बिलों पर कोई फ़ैसला नहीं लिया। जब विधानसभा ने इन बिलों को दोबारा पास किया तो गवर्नर ने उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने बिल को अनिश्चित समय तक रोके जाने को ग़ैर-क़ानूनी और ग़लत बताया और कहा कि गवर्नर ऐसा नहीं कर सकते। कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए इन 10 बिलों को मंजूर मान लिया।

सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदुरकर शामिल थे। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से मदद मांगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र सरकार की ओर से पेश होंगे।

केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने इस प्रेजिडेंशियल रेफ़रेंस की वैधता पर सवाल उठाया है। केरल के वकील के.के. वेणुगोपाल और तमिलनाडु के वकील पी. विल्सन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही तमिलनाडु मामले में इन सवालों का जवाब दे चुका है।
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क्यों है यह मामला अहम?

यह मामला भारत के संघीय ढांचे और संविधान की व्याख्या से जुड़ा है। गवर्नर और राष्ट्रपति की भूमिका, खासकर बिलों को मंजूरी देने में, केंद्र और राज्यों के बीच रिश्तों को प्रभावित करती है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला यह तय करेगा कि क्या गवर्नर और राष्ट्रपति को समय सीमा के भीतर काम करना होगा और क्या उनकी कार्रवाइयों को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र को नोटिस भेजकर 29 जुलाई तक जवाब मांगा है। कोर्ट अगस्त में इस मामले की विस्तृत सुनवाई शुरू करेगा। इस बीच तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य इस रेफरेंस की वैधता पर सवाल उठा रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार इसका समर्थन कर रही है।

यह मामला देश के संवैधानिक ढाँचे और केंद्र-राज्य संबंधों के लिए बेहद अहम है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला यह तय करेगा कि गवर्नर और राष्ट्रपति को बिलों पर कितनी जल्दी फ़ैसला लेना होगा और क्या उनकी कार्रवाइयों को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। यह मामला विधायी प्रक्रिया को तेज करने और मनमाने देरी को रोकने की दिशा में भी अहम है।