तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार द्वारा प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने के क़दम की कड़ी निंदा की है। यह रेफ़रेंस राज्यपालों और राष्ट्रपति के विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा से जुड़ा है। स्टालिन ने इसे लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को कमजोर करने और संविधान की मूल शक्ति संरचना को विकृत करने का 'घटिया प्रयास' क़रार दिया। वामपंथी दलों ने भी इस कदम की आलोचना की और इसे संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन बताया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति के विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय करना सही है? हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक फ़ैसला दिया था। इस फ़ैसले में कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों पर निर्णय में देरी के मामले में माना था कि विधेयकों को अनिश्चित काल तक लंबित रखना असंवैधानिक है। प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस में यह भी उल्लेख किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ परस्पर विरोधी फ़ैसलों के कारण अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के विधेयकों पर सहमति की न्यायिक समीक्षा को लेकर अस्पष्टता है।