सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन्नाव रेप मामले में दोषी पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत पर रोक लगा दी। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर के उस आदेश के लागू होने पर स्टे ऑर्डर जारी किया, जिसमें सेंगर की आजीवन कारावास की सजा निलंबित कर उन्हें अपील लंबित रहने तक जमानत दी गई थी।

लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “विशेष तथ्यों को देखते हुए, जहां दोषी एक अलग अपराध में भी सजा काट रहा है, हम दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश को लागू करने पर रोक लगाते हैं। इस प्रकार, आरोपी को उक्त आदेश के तहत रिहा नहीं किया जाएगा।”

इस फैसले के साथ ही कुलदीप सिंह सेंगर जेल में ही रहेंगे, क्योंकि वे पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के एक अलग मामले में 10 वर्ष की सजा भी काट रहे हैं, जिसमें उन्हें जमानत नहीं मिली है। अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।
ताज़ा ख़बरें
मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई व्याख्या को रेखांकित करते हुए कहा कि अगर इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक कांस्टेबल या पटवारी भी लोक सेवक की श्रेणी में आ जाएगा, जबकि एक विधायक या सांसद को इससे बाहर रखा जा सकता है और वे छूट का दावा कर सकते हैं।
अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर वह अभियुक्तों की सुनवाई किए बिना निचली अदालतों या हाईकोर्टों द्वारा पारित जमानत आदेशों पर रोक नहीं लगाता है। लेकिन इस मामले में "खास तथ्य" शामिल हैं, क्योंकि सेंगर को एक अन्य मामले में आईपीसी की धारा 304 भाग II के तहत दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है। वह उस मामले में हिरासत में है। इसलिए जमानत के आदेश को स्टे किया जाता है।

उन्नाव रेप केस क्या है?

उन्नाव बलात्कार कांड 2017 का है, जब एक नाबालिग लड़की ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में तत्कालीन भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया था। इस मामले ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था, क्योंकि आरोप थे कि पुलिस ने शुरू में एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था और पीड़िता और उसके परिवार को धमकाया और परेशान किया गया था।

कुलदीप सिंह सेंगर को दिसंबर 2019 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने नाबालिग पीड़िता के अपहरण और बलात्कार के लिए दोषी ठहराया था। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, साथ ही 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उत्तर प्रदेश से दिल्ली ट्रांसफर किया गया था।

23 दिसंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की सजा निलंबित करते हुए उन्हें सशर्त जमानत दे दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि सेंगर ने पहले ही 7 वर्ष और 5 महीने जेल में बिता लिए हैं, जो POCSO एक्ट के तहत न्यूनतम सजा से अधिक है। जमानत की शर्तों में पीड़िता के निवास से 5 किलोमीटर दूर रहना, धमकी न देना और पासपोर्ट जमा करना शामिल था।

इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 26 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल की थी। पीड़िता और उनके परिवार ने भी हाईकोर्ट के आदेश को “मृत्यु तुल्य” बताया और सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा की थी। दिल्ली में जंतर-मंतर और अन्य जगहों पर प्रदर्शन भी हुए, जहां महिलाओं और कार्यकर्ताओं ने सेंगर की जमानत का विरोध किया।

उन्नाव रेप केस में ताज़ा अपडेट

  • सुप्रीम कोर्ट ने आज सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।
  • पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विश्वास जताते हुए कहा कि उन्हें न्याय की उम्मीद है।
  • सेंगर के वकीलों ने कानूनी प्रक्रिया पर भरोसा जताया है, जबकि पीड़िता पक्ष ने सुरक्षा की चिंता व्यक्त की है।
  • फिलहाल सेंगर जेल में ही रहेंगे और मामले की आगे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी।


यह मामला एक बार फिर राजनीतिक प्रभाव और न्याय प्रक्रिया पर बहस छेड़ रहा है। पीड़िता और उनके परिवार की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। भाजपा पर कुलदीप सेंगर को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप है। लंबे समय तक बीजेपी इस मामले में लीपापोती करती रही। हाल ही में जब दिल्ली हाईकोर्ट से सेंगर को ज़मानत मिल गई तो पीड़िता ने नेता विपक्ष राहुल गांधी से मिलकर परिवार की सुरक्षा को लेकर चिन्ता जताई। राहुल से मुलाकात होते ही केंद्र सरकार जागी और तब सीबीआई ने आनन-फानन में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। सीबीआई ने ही इस मामले की जांच की थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि कुलदीप सेंगर को जब दिल्ली हाईकोर्ट से ज़मानत मिल रही थी तो सरकार की ओर से इसे रोकने के लिए क़दम नहीं उठाए गए।