Cotton Import Duty USDA Indian Farmers: भारत ने कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी है। जिसका यूएसडीए ने स्वागत किया। यह फैसला भारत-अमेरिका व्यापार को बढ़ावा देगा, लेकिन भारतीय कपास किसानों पर इसका उल्टा असर पड़ सकता है।
पंजाब का कपास उत्पादक किसान
भारत सरकार ने हाल ही में कपास पर लगने वाले इंपोर्ट फीस को हटाने का महत्वपूर्ण फैसला लिया। उसका अमेरिका के कृषि विभाग (यूएसडीए) ने स्वागत किया। इस फैसले से भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, लेकिन इसका भारतीय कपास किसानों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कपास उत्पादक किसानों में इसे लेकर चिन्ता देखी जा रही है।
भारत सरकार के फैसले से विदेशी कपास, खासकर अमेरिकी कपास, भारतीय बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध होगा। यूएसडीए ने इस कदम को 'दोनों देशों के लिए लाभकारी' बताते हुए कहा कि इससे अमेरिकी कपास उत्पादकों को भारतीय बाजार में नई संभावनाएं मिलेंगी। यह निर्णय भारत यूएस ट्रेड डील पर बातचीत के दौरान आया है। अमेरिका लंबे समय से भारत से अपने कृषि उत्पादों के लिए बाजार पहुंच की मांग कर रहा है।
भारतीय किसानों पर प्रभाव
भारत विश्व के सबसे बड़े कपास उत्पादक देशों में से एक है, और यहाँ के लाखों किसान अपनी आजीविका के लिए कपास की खेती पर निर्भर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आयात शुल्क हटने से सस्ता अमेरिकी कपास भारतीय बाजार में प्रवेश करेगा, जिससे स्थानीय कपास की कीमतों पर दबाव पड़ सकता है।
बाजार में मुकाबला: अमेरिकी कपास, जो बड़े पैमाने पर उत्पादित होता है और अक्सर सब्सिडी पर आधारित होता है। यह भारतीय कपास की तुलना में सस्ता हो सकता है। इससे स्थानीय किसानों को अपनी फसल के लिए उचित मूल्य मिलने में कठिनाई हो सकती है, खासकर गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे कपास उत्पादक राज्यों में किसानों पर काफी असर पड़ सकता है।
आजीविका पर खतरा: कपास की खेती पर निर्भर छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह निर्णय चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सस्ते आयातित कपास के कारण उनकी आय में कमी आ सकती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी।
जैव प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता: अमेरिका में उत्पादित कपास में अक्सर जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) बीजों का इस्तेमाल होता है, जो भारतीय किसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक या बीटी कपास से भिन्न हो सकता है। यह गुणवत्ता और बाजार स्वीकार्यता के मामले में भी चुनौतियां पैदा कर सकता है। भारत में लंबे समय तक कई अमेरिकी कंपनियों ने जीएम बीजों के लिए काफी कोशिश की लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस पर रोक लगा दी थी।
वैश्विक व्यापार दबाव: यह कदम भारत-अमेरिका ट्रेड डील की दिशा में एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह भारतीय किसानों के हितों को नजरअंदाज करता है। कई मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को जियो पॉलिटिक्स दबाव के कारण अमेरिकी कपास स्वीकार करना पड़ रहा है, जिससे स्थानीय किसानों को नुकसान हो सकता है।
मोदी सरकार का रुख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि वह किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों से कोई समझौता नहीं करेंगे, भले ही उन्हें व्यक्तिगत रूप से इसका भारी मूल्य चुकाना पड़े। लेकिन कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी हटाने का निर्णय कुछ हद तक इस बयान से विरोधाभासी लग रहा है। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जोर देकर कहा कि भारत अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन जब फैसले सामने आते हैं तो वो किसान विरोधी होते हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को कपास किसानों के लिए सब्सिडी, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मजबूत करने और वैकल्पिक बाजारों की तलाश जैसे उपाय करने चाहिए। जिससे इस फैसले के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके। साथ ही, भारत अन्य क्षेत्रों जैसे रक्षा उपकरण, प्राकृतिक गैस और परमाणु रिएक्टरों के आयात के लिए अमेरिका को रियायतें दे सकता है, ताकि व्यापार संतुलन बनाए रखा जाए।
कपास पर आयात शुल्क हटाने का भारत सरकार का निर्णय अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है। लेकिन यह भारतीय कपास किसानों के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकता है। उसे कहीं भी भारत के कपास उत्पादक किसानों के लिए सही नहीं कहा जा सकता। सरकार को चाहिए कि वह किसानों के हितों की रक्षा के लिए तत्काल कदम उठाए, ताकि इस नीति का नकारात्मक प्रभाव कम से कम हो और किसानों की आजीविका सुरक्षित रहे।