निर्मला सीतारमण का पहला ही बजट बेहद फीका, बेस्वाद, हल्का और जल्द ही भूल जाने वाला है। इसमें न तो कोई दृष्टि है, न कोई योजना, न भविष्य की कोई चिंता और न ही अतीत से कुछ सीखने की कोशिश। पहले से बेहाल और तेज़ी से फिसलती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए कुछ नहीं किया गया है। न माँग बढ़ाने की कोशिश की गई है, न खपत के बारे में सोचा गया, न लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए कुछ है। और तो और, बेरोज़गारी जैसे मुद्दे पर सरकार बिल्कुल चुप है, मानो यह कोई मुद्दा ही नहीं है, जबकि ख़ुद सरकार ने माना है कि बेरोज़गारी 45 साल के सबसे ऊँचे स्तर पर है।
कैसे आगे बढ़ेगी अर्थव्यवस्था?
वित्त मंत्री ने बड़े ही फ़ख़्र से कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते पाँच साल में अर्थव्यवस्था में 1 खरब डॉलर जोड़ा है जबकि इसके पहले के 65 साल में वह काम नहीं हो सका। उन्होंने यह भी कहा कि इस साल के अंत तक 2 खरब डॉलर जोड़ा जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि इस साल 7 प्रतिशत तो अगले साल 8 प्रतिशत की दर से जीडीपी बढ़ेगी और 2025 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 5 खरब डॉलर की हो जाएगी।
जिस देश में खपत और माँग में लगातार कमी हो रही हो, उत्पादन तेज़ी से गिरा हो, बेरोज़गारी 45 साल के शिखर पर हो, वह भला कैसे 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था हो जाएगा, सवाल यह है।
कॉरपोरेट जगत को झुनझुना?
यह सवाल इसलिए भी ज़रूरी है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को धक्का देकर आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया है। कारपोरेट जगत के लिए एक ही अच्छी ख़बर यह है कि 400 करोड़ रुपये तक के कारोबार पर कारपोरेट टैक्स 5 प्रतिशत घटा कर 25 प्रतिशत कर दिया गया है। सवाल यह है कि सिर्फ़ करों में कमी करने से ही क्या अर्थव्यवस्था आगे बढ़ने लगेगी? कोई बड़ा सुधार नहीं
निर्मला सीतारमण ने किसी बड़े सुधार की घोषणा नहीं की है। बीमा, बैंकिंग या श्रम क़ानूनों में किसी ऐसे बड़े सुधार की बात नहीं की गई है, जिसका इंतजार कॉरपोरेट जगत कर रहा था। श्रम क़ानूनों में सुधार की चर्चा बहुत दिनों से हो रही थी, पर कोई ख़ास घोषणा नहीं की गई।
क्या 5 खरब की अर्थव्यवस्था बेरोज़गारी की बड़ी फ़ौज और लोगों की गिरती क्रय क्षमता के बावजूद हो जाएगी, इसका जवाब सरकार के पास शायद नहीं है। सरकार ने बेरोज़गारी दूर करने के नाम पर अपनी ओर से कुछ नहीं करने का फ़ैसला किया है।
मामला बेरोज़गारी का
इसने यह ज़िम्मेदारी दूसरों पर डालने की कोशिश की है। वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि 1 करोड़ युवाओं का कौशल विकास किया जाएगा, और महिलाओं को मुद्रा योजना के तहत कर्ज़ दिए जाएँगे। लेकिन यह सवाल पूछा जा सकता है कि कौशल विकास के नाम पर पैसे तो मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में भी पैसे दिए थे, उसका क्या नतीजा निकला? मध्यवर्ग को राहत नहीं
यह कहा जा सकता है कि सरकार ने मध्यवर्ग की उपेक्षा की है। हालाँकि अंतरिम बजट में ही 5 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी को कर से मुक्त कर दिया गया था, लेकिन उसका फ़ायदा मोटे तौर पर निम्न आयवर्ग के लोग ही उठा सकेंगे। मध्य आय वर्ग को फ़ायदा इसलिए नहीं होगा कि 5 लाख रुपये से अधिक आमदनी होते ही वह आदमी आयकर की श्रेणी में आ जाएगा। इसी तरह वित्त मंत्री ने स्टैंडर्ड डिडक्शन की कोई चर्चा तक नहीं की। इसी तरह पूँजी बाज़ार को उम्मीद थी कि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स में छूट दी जाएगी, जिससे शेयर बाज़ार को बल मिले, पर ऐसा नहीं हुआ। मध्यवर्ग को इससे भी फ़ायदा हो सकता था। सेस
पेट्रोल, डीज़ल पर 1 रुपया प्रति लीटर की दर से सेस लगाने का पूरी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा, क्योंकि यह सीधे परिवहन से जुड़ा हुआ है।
पहले ईरान से तेल का आयात बंद होने और अब मध्य-पूर्व संकट के गहराने से पेट्रोल उत्पादों की कीमत बढ़ने के पूरे आसार हैं। उसके पहले ही सरकार ने सेस की घोषणा की।
लेकिन इसमें मजेदार बात यह है कि वित्त मंत्री ने अपने भाषण के दौरान कहा कि पेट्रोल-डीज़ल की कीमत गिर सकती है। यह कैसे होगा, यह समझ से परे है।
एफ़डीआई में छूट
सरकार ने नागरिक विमानन, बीमा इंटमीडियरीज़ और सिंगल ब्रांड रीटेल सेक्टरों में एफडीआई की छूट देने का एलान किया है। इसका सकारात्मक असर पड़ना चाहिए। विशेष रूप से रीटेल के क्षेत्र में बेहतर नतीजों की उम्मीद की जा सकती है। पर दिलचस्प बात यह है कि यह बीजेपी ही है, जिसने इस मुद्दे पर मनमोहन सिंह सरकार का यह कह कर ज़बरदस्त विरोध किया था कि इससे खुदरा व्यापार बर्बाद हो जाएँगे और लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिन जाएगी।इसी तरह सरकार के इस फ़ैसले का दूरगामी असर होगा कि रीटेल कंपनियों के स्थानीय स्रोत के नियम को उदार बनाया जाएगा।
रीटेल कंपनियों पर यह दबाव नहीं होगा कि वे स्थानीय कंपनियों से ही माल खरीदेंगे। इस नियम से उन रीटेल कंपनियों को फ़ायदा ज़रूर होगा, पर स्थानीय कंपनियों और उत्पादकों को नुक़सान होगा।
रक्षा में क्या हुआ?
सबसे ताज्जुब की बात तो यह है कि इस राष्ट्रवादी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में ही रक्षा मामले को पूरी तरह गोल कर दिया है। वित्त मंत्री ने इसकी चर्चा तक नहीं की। अंतरिम रक्षा बजट में पैसे ज़रूर दिए गए थे, लेकिन वह जीडीपी के हिसाब से बहुत ही कम थे। रक्षा मद में यह आबंटन जीडीपी के हिसाब से 1965 के युद्ध के बाद सबसे कम कहा जा सकता है। यह स्थिति तब हुई है जब देश में रक्षा उपकरणों की कमी है। इस पर काफ़ी बावेला मच चुका है। सेना ने साफ़ शब्दों में साल भर पहले ही कह दिया था कि 60 प्रतिशत से अधिक साजो सामान बेहद पुराने और बेकाम के हैं। इसके बावजूद सरकार ने कोई नई व्यवस्था नहीं की है।बैंकिंग को सहारा
बैंकिंग क्षेत्र के लिए यह अच्छी ख़बर ज़रूर है कि सरकार 70,000 करोड़ रुपये की पूँजी उसमें डालेगी। इससे सरकारी बैंकों को बेहतर काम करने का मौका मिलेगा, यह तय है। सीतारमण ने इसके साथ ही कहा कि एनपीए में कमी आई है और 4 लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ की वसूली हुई है। लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में सरकार ने रिज़र्व बैंक से कहा है कि वह अधिक लाभांश दे। एक तरह से सरकार रिज़र्व बैंक की बाँह मरोड़ कर पैसे निकलवाना चाहती है, जिससे वह अपनी योजनाओं को लागू कर सके।
स्टार्ट अप
इसी तरह सरकार के इस फ़ैसले से स्टार्ट अप कंपनियों को फ़ायदा होगा कि वह एंजेल इनवेस्टमेंट कंपनियों के आयकर की छानबीन नहीं करेगी। बात घूम कर फिर वही पहुँचती है कि यदि समाज के बड़े हिस्से के पास रोज़गार नहीं है, खपत कम हो रही है, माँग घट रही है, तो पहले से बेहाल अर्थव्यवस्था कैसे पटरी पर आएगी। इसके लिए सरकार ने क्या किया है? इस सवाल का जवाब निर्मला सीतारमण ने नहीं दिया। उन्होंने नहीं बताया कि लोगों की क्रय शक्ति कैसे बढ़ेगी, रोज़गार के मौके कैसे बनेंगे, अर्थव्यवस्था को सहारा कौन देगा। और यदि अर्थव्यवस्था को फिसलने से नहीं रोका गया तो यह 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बनेगी।
अपनी राय बतायें