मोदी सरकार के ‘अच्छे दिन’ के वादे अब क़र्ज़ के पहाड़ तले दबते नज़र आ रहे हैं! कांग्रेस ने आरबीआई के ताज़ा आँकड़ों के साथ सरकार पर जोरदार हमला बोला है, जिसमें प्रति व्यक्ति क़र्ज़ में भारी बढ़ोतरी की बात कही गई है। प्रति व्यक्ति क़र्ज़ का मतलब है कि देश के हर व्यक्ति पर औसतन इतना क़र्ज़ है। पार्टी ने कहा है कि क़र्ज़ ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। आखिर क्यों बढ़ रहा है क़र्ज़ का यह जाल और कांग्रेस ने हमला क्यों किया है? 

कांग्रेस ने इसे मोदी सरकार के उस ‘अच्छे दिन’ वाले नारे से जोड़ा है जिसका वादा कर वह सत्ता में आई है। कांग्रेस ने इसे ‘अच्छे दिन’ का क़र्ज़ क़रार देते हुए कहा कि मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों ने आम नागरिकों पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ा दिया है। पार्टी ने दावा किया कि व्यक्तिगत उधारकर्ताओं पर प्रति व्यक्ति क़र्ज़ में लगातार हो रही वृद्धि ने देश की आर्थिक स्थिति को और कमजोर किया है। कांग्रेस ने कहा है-
  • 2 साल में प्रति व्यक्ति क़र्ज़ 90,000 बढ़कर 4.8 लाख रुपये हो गया है।
  • आमदनी का 25.7% हिस्सा सिर्फ़ क़र्ज़ चुकाने में जा रहा है। 
  • सबसे ज़्यादा 55% लोन कथित रूप से क्रेडिट कार्ड, मोबाइल ईएमआई आदि के लिए जा रहा है।
  • असुरक्षित कर्ज 25% पार हो चुका है। 
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आरबीआई की रिपोर्ट- क़र्ज़ में बढ़ोतरी

आरबीआई की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में व्यक्तिगत उधारकर्ताओं का प्रति व्यक्ति क़र्ज़ मार्च 2023 में 3.9 लाख रुपये से बढ़कर मार्च 2025 में 4.8 लाख रुपये हो गया। यह दो साल में लगभग 90,000 की वृद्धि दिखाती है, यानी 23% की बढ़ोतरी हुई है।

आरबीआई की इस रिपोर्ट और सबसे ज़्यादा 55% लोन कथित रूप से क्रेडिट कार्ड, मोबाइल ईएमआई आदि के लिए जाने की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा है। पार्टी का कहना है कि इस रिपोर्ट का मतलब है कि इस महँगाई में परिवारों की आय में उनका गुजारा नहीं हो रहा है और वे क़र्ज़ लेने पर मजबूर हैं।
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सरकार की नीतियों पर सवाल

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार का ‘अच्छे दिन’ का वादा अब केवल एक नारा बनकर रह गया है। जयराम रमेश ने कहा, 'मोदी सरकार ने पिछले ग्यारह सालों में देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया है। लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में कोई प्रयास नहीं किया गया, केवल पूंजीपति मित्रों के लिए सारी नीतियां बनाई गईं, जिसके नुक़सान आज देश की जनता भुगत रही है। यह सच्चाई किसी न किसी तरह हर रोज हमारे सामने आ रही है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की ताज़ा रिपोर्ट से भारत की अर्थव्यवस्था की चिंताजनक तस्वीर सामने आई है।  सरकार की ओर से आंकड़ेबाज़ी और एक्सपर्टों का सहारा लेकर असली कमियों को छुपाने की कोशिश लगातार जारी है, लेकिन इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता कि देश पर क़र्ज़ का बोझ मोदीराज में चरम पर है।'

पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, 'मोदी सरकार की नीतियाँ केवल बड़े कॉरपोरेट और अमीरों के हित में हैं। आम आदमी की जेब पर डाका डाला जा रहा है। जीएसटी, नोटबंदी और बेरोजगारी ने मध्यम वर्ग को क़र्ज़ लेने के लिए मजबूर किया है।'

जयराम रमेश ने कहा कि सबसे चिंताजनक बात यह है कि मार्च 2025 तक भारत पर दूसरे देशों या बाहरी क़र्ज़ 736.3 बिलियन डॉलर था, जो पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत ज़्यादा है।

मध्यम वर्ग पर बोझ

कांग्रेस ने जोर देकर कहा कि मध्यम वर्ग और निम्न-आय वर्ग इस कर्ज संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और आय में कमी ने लोगों को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए क़र्ज़ लेने पर मजबूर किया है। 
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वैसे, सरकार दावा करती रही है कि व्यक्तिगत क़र्ज़ में वृद्धि इसलिए हुई है क्योंकि लोगों का बैंकों पर भरोसा बढ़ा है और वे घर और गाड़ी खरीदने के लिए क़र्ज़ ले रहे हैं। बता दें कि सरकार ने मुद्रा योजना और स्टैंड-अप इंडिया जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं। हालाँकि, कांग्रेस ने कहा है कि ये योजनाएँ केवल कागजों पर हैं। 

कांग्रेस का यह हमला ऐसे समय में आया है जब देश में कमजोर आर्थिक हालात और बेरोजगारी को लेकर पहले से ही बहस छिड़ी हुई है। प्रति व्यक्ति क़र्ज़ में वृद्धि निश्चित रूप से एक गंभीर मुद्दा है, जो देश की आर्थिक स्थिति पर सवाल उठाता है। कांग्रेस ने कहा कि वह इस मुद्दे को संसद में और सड़क पर उठाती रहेगी।