एनसीपी (एसपी) नेता रोहित पवार और जयंत पाटिल
महाराष्ट्र में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हैं औऱ उससे ठीक पहले एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के दो गुटों में जबरदस्त मतभेद उभर आए हैं। हालांकि पार्टी ने हाल ही के लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की है। इसके बावजूद पार्टी नेताओं में मतभेद एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। जिसे विधानसभा चुनाव के नजरिए से सही नहीं माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव में एनसीपी (एसपी) ने 10 में से 8 लोकसभा सीटें जीतीं। प्रमुख विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की सदस्य के रूप में सबसे ज्यादा कामयाबी एनसीपी (एसपी) को मिली। सत्तारूढ़ महायुति की 17 सीटों के मुकाबले एमवीए ने 48 में से 30 सीटें हासिल कीं। एमवीए में एनसीपी (एसपी) के अलावा कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) शामिल हैं। महायुति गठबंधन में भाजपा, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल हैं।
एनसीपी (एसपी) ने 10 जून को अहमदनगर में अपना स्थापना दिवस मनाया था। इस मौके पर शरद पवार सहित तमाम नेताओं के भाषण भी हुए। लेकिन शरद पवार के पोते और पार्टी विधायक रोहित पवार और प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल गुट ने अपने-अपने भाषणों में एक दूसरे पर इशारों में तीखा हमला बोला। दोनों के भाषणों से शरद पवार सहित अन्य नेता और कार्यकर्ता बहुत चिंतित दिखाई दिए। क्योंकि यह कार्यक्रम पार्टी की शानदार जीत के बाद एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए रखा गया था।
हमले की शुरुआत रोहित पवार की तरफ से हुई। दरअसल, जहां पर कार्यक्रम हो रहा था, वहां कुछ पोस्टर लगे हुए थे, जिनमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल को चुनाव में जीत दिलाने वाले जनरल के रूप में पेश किया गया था।
रोहित ने यह भी कहा कि “कुछ नेता ऐसे होते हैं जो एक ही समय में दो नावों की सवारी करते रहते हैं। उन्हें बताया जाना चाहिए कि उन्हें एक ही जगह रहना होगा।” उन्होंने राज्य पार्टी इकाई से संबंधित विभिन्न संगठनात्मक मामलों के बारे में भी चिंता व्यक्त की, जिसका नेतृत्व जयंत अप्रैल 2018 से कर रहे हैं।
दरअसल, रोहित पवार ने यह बात उस संदर्भ में कही थी, जब पार्टी के कुछ पदाधिकारियों ने अजीत पवार गुट के कुछ नेताओं का मंत्री आदि बनने पर स्वागत किया था। हालांकि अजीत पवार ने पार्टी को तोड़ दिया और खुद सौदेबाजी के तहत महायुति सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। अजीत पवार के साथ टूटे विधायकों में से कुछ मंत्री बने थे। जयंत पाटिल और कुछ अन्य पदाधिकारियों ने इनका स्वागत किया था।
रोहित पवार ने आलाकमान को आगाह करते हुए कहा कि “ऐसे लोग होंगे जो वापस लौटना चाहेंगे। वे दावा करेंगे कि दूसरी तरफ होने के बावजूद उन्होंने चुनाव में हमारी मदद कैसे की। मैं कहना चाहता हूं कि किसी को भी अंदर लेने से पहले उन लोगों के बारे में सोचें जो जरूरत के समय हमारी पार्टी के साथ खड़े रहे। हमें अपने कैडर और कार्यकर्ताओं को मजबूत करने के बारे में सोचना चाहिए।”
गुस्से में तमतमाए जयंत पाटिल का जब नंबर आया तो उन्होंने भी हमला किया। जयंत पाटिल ने कहा कि ''मैं नवंबर के बाद (विधानसभा चुनाव के एक महीने बाद) पद छोड़ दूंगा। अगर आपको पार्टी के बारे में कुछ कहना है तो अकेले में कहें, सार्वजनिक रूप से नहीं। कृपया टीम वर्क के तहत काम करें, क्योंकि टीम वर्क से ही नतीजे मिलते हैं। यह अकेले मेरी जीत नहीं है।''
जयंत पाटिल ने कहा कि इस पोस्ट (अद्यक्ष) पर कई लोग पहले ही मेरे महीने गिन चुके हैं। अब, अगले चार महीनों (यानी चुनाव तक) की गिनती न करें...और ट्विटर आदि पर सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कहें। अगर आपको मुझसे कोई शिकायत है, तो सीधे शरद पवार के पास जाएं। शरद पवार अपनी मर्जी से कोई कदम उठाएं। लेकिन सार्वजनिक बयान न दें। बता दें कि रोहित पवार ट्विटर पर बहुत सक्रिय रहते हैं।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक रोहित और जयंत के बीच पिछले छह महीने से अधिक समय से तनातनी चल रही है। रोहित गुट की नजर पार्टी के प्रदेश यूथ विंग अध्यक्ष पद पर है। रोहित खुद इसका अध्यक्ष बनना चाहते हैं। जयंत इसका विरोध कर रहे हैं। पहली बार विधायक बने रोहित को खुद अब तक पार्टी में कोई पद नहीं मिला है। रोहित ने जब युवा संघर्ष यात्रा निकाली तो उनके कुछ समर्थकों को कथित तौर पर जयंत के दफ्तर ने फटकार तक लगाई।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में हैं। चुनाव से पहले तमाम दलों में नेता अपने-अपने तरीकों से दबाव बना रहे हैं। एनसीपी (शरचंद्र पवार) खेमे में उभरी गुटबंदी दरअसल अपने-अपने समर्थकों के लिए टिकट हासिल करने की कोशिश भी है। क्योंकि ज्यादा से ज्यादा टिकट हासिल करने का मतलब है कि पार्टी पर पकड़ मजबूत बनाना। यही वजह है कि रोहित पवार और जयंत पाटिल अपनी-अपनी तरह से पूरा दम दिखा रहे हैं।